5. व्यापारिक विपत्र-: यह एक विनिमय प्रपत्र होता है जो व्यावसायिक फर्मों की कार्य पूंजी की आवश्यकता के लिए वित्तीयन में प्रयुक्त होता है। इनका प्रयोग उधार क्रय विक्रय की दशा में किया जाता है। इसे विक्रेता द्वारा क्रेता पर लिखा जाता है। जब क्रेता इसे स्वीकार करता है तो यह विपत्र विपणन योग्य विलेख बन जाता है तथा इसे व्यापारिक/वाणिज्यिक विपत्र कहते हैं इसे देय तिथि से पहले बट्टे पर बैंक से भुनाया जा सकता है।
वित्तीय बाजार क्या है ? Financial Market meaning in hindi .
बाजार किसी अर्थव्यवस्था का वह अंग है, वचनातिरक (fund surplus) पक्ष और अवाभाव (tund scarce) पक्ष के बीच धन का (transaction) होता है। यह लेन-देन व्याज (intrest)अथवा लाभांश (dividend) के आधार पर सम्पन होता है।
1. इस भौतिक रूप से विद्यमान वित्तीय बाज़ार क्या हैं बाजार में धन का लघु अवधि (short term) या दीर्घ अवधि (Long term) के लिए हो सकता है। प्रत्येक ऐसा लेन देन जिसकी समय सीमा 1 दिन से 364 दिनों की हो सकती है, लघु अवधि का वित्त बाजार है। इसी बजार को मुद्रा बाजार (Money Market) कहा जाता है।
इसी प्रकार एक वर्ष या इससे अधिक अवधि के इस तरह वित्तीय बाज़ार क्या हैं केे धन के लेन-देन को दीर्घावधिक वित्त बाजार का अंग मानते हैं जो पूँजी बाजार (Capital Market) कहलाता हैं।
* प्रत्येक वित्त बाजार के दो अंग होते हैं- मुद्रा बाजार और पूँजी बाजार- पहला लघु अवधि का वित्त बाजार और दूसरा दीर्घ अवधि का वित्त बाजार है।
Components of Money
• M1 = जनता के पास करेंसी नोट एवं सिक्के + बैंकों की मांग जमा (बचत खाता + चालू खाता) + RBI के पास अन्य जमाएँ
अर्थात् M4. द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था में उपलब्ध सभी प्रकृति की तरलता (liquidity) वाली मुद्राओं की माप हो जाती है।
जैसे-जैसे हम M1, से M4 की तरफ बढ़ते हैं मुद्रा की तरलता (liquidity) घटती है। अर्थात् इनमें सर्वाधिक तरलता(liquidity) M1 की है तथा न्यूनतम तरलता M4 की है।
* तरलता (liquidity) का तात्पर्य है उनकी लघु एवं दीर्घ अवधि की आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षमता। जहाँ किसी मुद्रा की उच्च तरलता (liquidity) उसे लघु अवधि की धन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बेहतर बनाता है वहीं उनके द्वारा धन की दीर्घावधिक आवश्यकता की पूर्ति नहीं की जा सकती यह भी पता चलता है।
* M1 जनता को उपलब्ध मुद्रा की मात्रा है। इसे संकीर्ण मुद्रा (Narrow Money) भी कहते हैं, क्योंकि इसकी तरलता सबसे अधिक है और निवेश में इसकी भूमिका नहीं के बराबर है।
वित्तीय बाजार क्या है? वित्तीय बाजार के कार्य और प्रकार
वित्तीय बाजार वित्तीय सम्पत्तियों जैसे अंश, बांड के सृजन एवं विनिमय करने वाला बाजार होता है। यह बचतों को गतिशील बनाता है तथा उन्हें सर्वाधिक उत्पादक उपयोगों की ओर ले जाता है। यह बचतकर्ताओं तथा उधार प्राप्तकर्ताओं के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करता है तथा उनके बीच कोषों को गतिशील बनाता है। वह व्यक्ति/संस्था जिसके माध्यम से कोषों का आबंटन किया जाता है उसे वित्तीय मध्यस्थ कहते हैं। वित्तीय बाजार दो ऐसे समूहों के बीच एक मध्यस्थ की भूमिका निभाते हैं जो निवेश तथा बचत का कार्य करते हैं। वित्तीय बाजार सर्वाधिक उपयुक्त निवेश हेतु उपलब्ध कोषों का आबंटन करते हैं।
(1) बचतों को गतिशील बनाना तथा उन्हें उत्पादक उपयोग में सरणित करना:- वित्तीय बाजार बचतों को बचतकर्ता से निवेशकों तक अंतरित करने को सुविधापूर्ण बनाता है। अत: यह अधिशेष निधियों को सर्वाधिक उत्पादक उपयोग में सरणित करने में मदद करते हैं।
वित्तीय बाजार के प्रकार
- मुद्रा बाजार
- पूंजी बाजार ।
1. मुद्रा बाजार
अवधि एक वर्ष तक की होती है। इस बाजार के प्रमुख प्रतिभागी भारतीय रिजर्व बैंक, व्यापारिक बैंक, गैर बैंकिग, वित्त कम्पनियाँ, राज्य सरकारें, म्युचुअल फंड आदि हैं। मुद्रा बाजार के महत्वपूर्ण प्रलेख निम्नलिखित हैं।
1. याचना राशि-याचना राशि का प्रयोग मुख्यत: बैंकों द्वारा उनके अस्थायी नकदी की आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए प्रयोग किया जाता है ये दिन-प्रतिदिन के आधार पर एक दूसरे से ऋण लेते तथा देते है। इसका पुनभ्र्ाुगतान मांग पर देय होता है और इसकी परिपक्वता अवधि एक दिन वित्तीय बाज़ार क्या हैं से 15 दिन तक की होती है याचना राशि पर भुगतान किए जाने वाले ब्याज की दर को याचना दर कहते है।
प्राथमिक बाजार व द्वितीयक बाजार में अंतर
1. कार्य-प्राथमिक बाजार का मुख्य कार्य नवीन प्रतिभूतियो के निगर्मन द्वारा दीर्घकालीन कोष एकत्र करना है वहीं द्वितीयक बाजार विद्यमान प्रतिभूितयो को सतत एवं तात्कालिक बाजार उपलब्ध कराता है।
2. प्रतिभागी-प्राथमिक बाजार में मुख्य भाग लेने वाली वित्तीय संस्थाएं, म्यूच्यूअल फण्ड, अभिगोपक और व्यक्तिगत निवेशक हैं, जबकि द्वितीयक बाजार में भाग लेने वाले इन सभी के अतिरिक्त वे दलाल भी हैं जो शेयर बाजार (स्टाक एक्सचेंज) के सदस्य हैं।
3. सूचीबद्ध कराने की आवश्यकता-प्राथमिक बाजार की प्रतिभूतियों को सूचीबद्ध कराने की आवश्यकता नहीं पड़ती, जबकि द्वितीयक बाजार में केवल उन्हीं प्रतिभूतियों का लेन-देन हो सकता है जो सूचीबद्ध होती हैं।
4. मूल्यों को निर्धारण-प्राथमिक बाजार के सम्बन्ध मे प्रतिभूतियों का मूल्य निर्धारण प्रबंधन द्वारा सेबी के निर्देशों को ध्यान में रखते हुए किया जाता है, जबकि द्वितीयक बाजार में प्रतिभूतियों का मूल्य बाजार में विद्यमान मांग व पूर्ति के समन्वय द्वारा निर्धारित किया जाता है, जो समय के अनुसार परिवर्तित होता रहता है।
वित्तीय बाजार के कार्य।
वित्तीय प्रणाली के कार्यों के बारे में संक्षेप में वित्तीय बाज़ार क्या हैं चर्चा की जाती है।
एक वित्तीय प्रणाली में, लोगों के बचत को घरों से व्यापारिक संगठनों में स्थानांतरित किया जाता है। इनसे उत्पादन बढ़ता है और बेहतर माल का निर्माण होता है, जिससे लोगों के जीवन स्तर में वृद्धि होती है।
व्यवसाय के लिए वित्त की आवश्यकता होती है। इन्हें बैंकों, घरों और विभिन्न वित्तीय संस्थानों के माध्यम से उपलब्ध कराया जाता है। वे बचत जुटाते हैं जिससे पूंजी निर्माण होता है।
भुगतान की सुविधा।
वित्तीय प्रणाली माल और सेवाओं के लिए भुगतान के सुविधाजनक तरीके प्रदान करती है। क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, चेक आदि जैसे भुगतान के नए तरीके त्वरित और आसान लेनदेन की सुविधा प्रदान करते हैं।
तरलता प्रदान करता है।
वित्तीय प्रणाली वित्तीय बाज़ार क्या हैं में, तरलता का मतलब नकदी में बदलने की क्षमता है। वित्तीय बाजार निवेशकों को अपने निवेश को तरल करने का अवसर प्रदान करता है, जो शेयरों, डिबेंचर, बॉन्ड्स आदि जैसे उपकरणों में होते हैं। कीमत बाजार की शक्तियों के संचालन और मांग के अनुसार दैनिक आधार पर निर्धारित की जाती है।
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