विदेश जाओ – पूरे पैसे वीज़ा लगने के बाद

किसी सब्जी वाले के पास जाओ , उसे अपनी जेब से 100 रुपये निकाल के दो , उसे बोलो कि लंगड़ा आम दे , वह कहेगा कि इस मौसम में मैं दे नहीं सकता , आप अपने पैसे बिना वापस लिए खाली हाथ घर वापस आ जाना | यानी 100 रुपये का नुकसान करवा आना |

अब आप कहोगे कि ऐसे थोड़े ही होता है , हम पहले सोच समझ के दुकान पर जाते हैं , सामान चुनते हैं , और जब वह चीज़ मिल जाती है तभी उसके पैसे देते हैं | चाहे वह सब्जी हो , कपडे हो , गैस का सिलिंडर हो , बिजली का सामान हो – हर एक चीज़ में पहले सामान लिया जाता है और फिर पैसे दिए जाते हैं |

हम लोग पूरे पैसे तभी देते हैं जब हमें सामान मिल जाता है

तो फिर हम लोग वीज़ा लेने के समय ऐसा क्यों नहीं करते हैं ?

हम लोग एजेंटों के पास जाते हैं , पैसे जमा करवा आते हैं , और अगर वीज़ा ना मिले तो दिए हुए पैसे भी वापस नहीं लेते | इससे बड़ी दुःख की बात यह है कि हम 50-100 रुपये नहीं , पूरे दो – ढाई लाख रुपये का नुकसान करवाते हैं , और वह भी केवल एक बार में | हम अपने माँ – बाप की बरसों की मेहनत , चंद मिनटों में मिट्टी कर आते हैं |

ऐसा करने से काम तो होता नहीं , बस नुकसान ही होता है , लोगों की कोठियां तक बिक जाती हैं |

दोस्तों , अगर आप चाहते हो कि आपको वीज़ा मिले , तो अपने पूरे पैसे वीज़ा लगने के बाद ही दो | क्योंकि इससे कौन से दलालों को चुनना है? धन – संपत्ति ही नहीं , वीज़ा लगने से पहले पैसे देने पर और भी कई नुकसान होते हैं |

1. गलत उम्मीद से दुःख होता है

वीज़ा ना लगने से बन्दे का आत्मविश्वास (confidence) काम होने लगता है , यह देख कर कि उसके दोस्तों का वीज़ा आ गया मगर उसका खुद का नहीं लगा | उसे लगने लगता है कि उसमें कोई कमी है , जबकि असली कमी तो उस एजेंट में थी जिसने उसे गलत सलाह दी | वीज़ा लगने के लिए सही कोर्स में आवेदन (apply) करना चाहिए | एक प्रमाणित (certified) एजेंट सच बता देता है , अगर उसे लगे कि वीज़ा नहीं लगेगा , बजाये इसके कि बच्चे को गलत उम्मीद देकर पैसे ठगे | वीज़ा ना लगने से कुछ लोग इतने ज़्यादा उदास हो जाते है , कि एक प्रमाणित एजेंट के पास जाने से भी कतराने लगता है , मनोबल खोने के कारण , कि क्या फायदा जब वीज़ा लगना ही नहीं | निराश मत हो , सारे एजेंट एक जैसे नहीं होते , अच्छे वाला एजेंट आपका फायदा ही करवाएगा |

2. फ़ालतू में समय बर्बाद होता है

एक बार वीज़ा ना लगने के कारण एक व्यक्ति को फिर से नया एजेंट ढूंढना पढता है , कई बार ऐसे लोगों को 5-6 बार वीज़ा के लिए नामंजूरी (rejection) मिलती है जिसके चलते वह 10-12 लाख तक खो बैठते हैं , कुछ लोग तो कर्ज़ा तक ले बैठते हैं | मैंने कुछ ऐसे IELTS Centre भी देखे हैं जिनके पास जब बच्चे पूछताछ करने आते हैं तो उस IELTS Centre वाले को पता होता है कि उनका वीज़ा नहीं लगेगा , फिर भी IELTS की तैयारी करवाते हैं | याद रखिये , IELTS होने से आपका वीज़ा लगना आसान हो जाता है मगर कुछ देशों में यह ज़रूरी नहीं होता | आप IELTS की घर बैठ कर तैयारी कर सकते हैं और अच्छे बैंड भी ला सकते हैं |

3. तकलीफें झेलनी पढ़ती हैं

कभी भी किसी अप्रमाणित (unregistered) एजेंट के पास मत जाओ , वह आपका केवल नुकसान करेगा | कुछ लोग ऐसे कहेंगे कि बस थोड़े से रुपये दो , आपको वीज़ा मिल जायेगा | वह चीनी (Chinese) माल की तरह अपने धंधे को दिखाते हैं , कि सस्ता है इसलिए ले लो | मगर असलियत कुछ और ही होती है | मैं ऐसे लोग भी जानता हूँ जो विदेश जाना चाहते थे पढ़ाई के लिए , उन्हें किसी एजेंट ने नौकरी का झांसा दिया , उनसे पैसे ले लिए , और वह भोले -भले लोग घर बैठ गए | इससे अच्छा रहता कि वह अध्ययन (study) के लिए चले जाते , जिसमें विदेश जाना आसान है |

4. जीना मुश्किल हो जाता है

वीज़ा ना मिलने के कारण कौन से दलालों को चुनना है? वह व्यक्ति यहीं का होकर रह जाता है | जो फिर भी थोड़ा बहुत पढ़ा हुआ होता है , वह तो दिल्ली – बैंगलोर जाकर किसी अच्छी कंपनी में नौकरी कर सकता है , समस्या तो उन लोगों को आती है जो इतने पढ़े हुए या फिर अमीर नहीं होते | यहां उन्हें अच्छी नौकरियां मिलती नहीं , और जो मिलता है उसमें रोज़ के खर्चे निकलते नहीं | वीज़ा अस्वीकार (refusal) होने के बाद ऐसे लोग यहां रहकर वह काम नहीं कर पाते जिनकी उनमें क्षमता होती है | एप्पल और फेसबुक जैसी कंपनियों का बढ़िया काम केवल विदेश में ही हो सकता है , यहां नहीं | जो लोग विदेश चले जाते हैं , वह आगे निकल जाते हैं , अच्छी ज़िन्दगी बिताते हैं , बड़े – बड़े घर बनाते हैं | अच्छे लोग मुश्किलें ना झेलें , इसलिए ज़रूरी है कि वह विदेश जाने की कोशिश करें |

5. लालची एजेंटों को प्रोत्साहन मिलता है

आप जानते हैं कि वीज़ा एजेंट काम होने से पहले पैसे क्यों लेते हैं ? क्योंकि लोग खुद उन्हें काम होने से पहले पैसे देते हैं | महान कवि Shakespeare ने कहा था कि “security is mortals chiefest enemy” यानी कि सुरक्षा का एहसास होना एक मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन है | जब किसी एजेंट को पहले पैसे मिल जाते हैं , तो बहुत से लोग अपना काम ठीक से करने के लिए प्रेरित (motivated) महसूस नहीं करते हैं | उन्हें फ़र्क़ नहीं पढ़ता कि बच्चे को वीज़ा ना मिले , क्योंकि उन्हें तो अपने पैसे मिल गए होते हैं | यही अगर उन्हें कहा जाए कि पैसे तभी मिलेंगे जब वीज़ा आएगा , तो वह वीज़ा दिलवाने के लिए ज़्यादा गंभीर (serious) हो जाएंगे |

पूरे पैसे वीज़ा लगने के बाद

दोस्तों , एक अच्छा एजेंट आपको सही रास्ते से विदेश पहुंचा देता है | मेरी आपको नेक सलाह है कि आप जिस भी एजेंट के पास जाओ , उसे कहो कि कौन से दलालों को चुनना है? आप पूरे पैसे वीज़ा लगने के बाद ही दोगे | इससे आपके प्रतिषेध (refusal) वाले पैसे भी बचेंगे , समय पर सब काम हो जाएगा , आपका मनोबल भी बना रहेगा और आपके वीज़ा मिलने की संभावना बढ़ जायेगी |

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मैं यह नहीं कहता हूँ कि मैं सबसे अच्छा हूँ , मगर मैं सबसे अच्छा बनने की कोशिश ज़रूर करता हूँ

लोग कहेंगे, मंत्री का भाई दलाली करता है

बालेश्वर त्यागी, पूर्व मंत्री, उत्तर प्रदेश
एक दिन कल्याण सिंह के साथ मैं और संस्थागत राज्य मंत्री हरिद्वार दूबे मुख्यमंत्री कार्यालय के पंचम तल से लिफ्ट से नीचे आ रहे थे। हरिद्वार दूबे ने कहा कि कलराज मिश्र को आवश्यक बैठक के लिए दिल्ली बुलाया गया है। उनके लिए हवाई जहाज की व्यवस्था कर दीजिए। कल्याण सिंह ने पूछा, ‘साथ कौन जाएगा?’ उन्होंने कहा, ‘बालेश्वर त्यागी को भेज दीजिए।’ मैं मन ही मन बड़ा प्रसन्न हुआ। मेरे लिए जीवन की पहली हवाई यात्रा थी, इसलिए बड़ा चाव भी था। हवाई अड्डे पर राजकीय विमान तैयार था। उसमें पायलट समेत 4 सीटें थीं।

जैसे ही हवाई जहाज ऊपर उड़ा, डर लगने लगा। जहाज बहुत छोटा था। बार-बार नीचे-ऊपर हिचकोले खाता था। कभी ऊपर उठता तो कभी ऐसा लगता कि नीचे गिर रहा है। मैंने दोनों हाथों से कसकर सीट पकड़ ली। अनायास हनुमान चालीसा याद आ गया। मन में बार-बार यही लग रहा था कि आज जान नहीं बचेगी। जब उड़ते-उड़ते एक घंटा हो गया तो मैंने साहस बटोर कर पायलट से पूछा कि हम कहां पहुंच गए? उसने बताया कि फर्रुखाबाद के ऊपर हैं। मैंने कहा, ‘रास्ते में फर्रुखाबाद तो नहीं आता।’ उसने कहा, ‘हवा बहुत तेज है। इसलिए रास्ता बदला है।’ अब तो और भी डर लगने लगा। कलराज मिश्र विमान में बैठते ही सो गए थे। लगभग डेढ़ घंटे बाद मैंने फिर पायलट से पूछा, ‘अभी दिल्ली नहीं पहुंचे?’ उसने कहा, ‘अभी बुलंदशहर के ऊपर हैं। हवाई पट्टी खाली न होने के कारण ट्रैफिक कंट्रोल ने यहीं चक्कर लगाने को कहा है।’ मैं सोचने लगा कि कितना अच्छा होता मैं उस दिन एनेक्सी में उपस्थित नहीं होता तो इस यात्रा से बच जाता। अब मन ही मन हरिद्वार दूबे को गालियां देने लगा था कि उसने मुझे मरने के लिए भेज दिया। आखिर जैसे-तैसे एक घंटा और पचास मिनट बाद हम दिल्ली उतरे। लेकिन वापसी में जहाज ऐसा चला जैसे पानी पर तैर रहा हो। एक घंटे में लखनऊ पहुंच गए। सकुशल वापसी के लिए भगवान को धन्यवाद दिया।

पिता के साथ बैठा था भाई
1991 के विधानसभा चुनाव में मैं पहली बार विधायक चुना गया। चुनाव में बीजेपी को पूर्ण बहुमत प्राप्त हुआ। कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने। 19 दिन बाद मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ तो मुझे राज्य मंत्री (राजस्व) बनाया गया। मंत्री बनने के बाद पहली बार गाजियाबाद आया तो रेल से हापुड़ में ही उतर गया। वहां जलपान में शामिल होने के बाद सड़कमार्ग से गाजियाबाद के लिए चला। रास्ते में स्वागत के कई कार्यक्रम थे। बीजेपी पहली बार गाजियाबाद विधानसभा का चुनाव जीती थी। कार्यकर्ताओं में बड़ा उत्साह था। स्थान-स्थान पर स्वागत होता रहा। स्वागतों का दौर पूरा करके तीन बजे के कौन से दलालों को चुनना है? करीब घर पहुंचा। घर पहुंचते ही पिताजी से मिला। वह मेरे साथ गाजियाबाद में ही रहते थे। तुरंत बोले, ‘बड़ी देर कर दी, ये तेरा छोटा भाई सुबह से इंतजार कर रहा है।’ मैंने उससे पूछा, ‘क्या कोई बात है?’ भाई ने कहा, ‘गांव का जो पटवारी है, उसका रिश्तेदार कानूनगो है। उसका कहीं तबादला हो गया है, उसे रुकवाना है। यह कई दिन से घर दौड़ रहा है।’ मैं छोटे भाई और पिताजी को घर में अंदर ले गया और दरवाजा बंद करके बोला, ‘मंत्री बनने के बाद लाल बत्ती की एक सरकारी गाड़ी मिली है। लखनऊ सचिवालय में एक दफ्तर मिला है। एक पीएस मिला है। दो पीए मिले हैं। सुरक्षाकर्मी मिले कौन से दलालों को चुनना है? हैं। यदि ये अच्छा लगता हो तो ठीक है और नहीं तो मुख्यमंत्री जी को लौटा देते हैं और कह देते हैं कि हम इसे संभालने में असमर्थ हैं।’ पिताजी ने कहा कि तूने ये क्या बात कही? मैंने कहा, ‘आज तो पहला ही दिन है, यह सुबह से अपना काम छोड़ कर यहां बैठा है। फिर इसे काम वाले लखनऊ लेकर जाएंगे। होटल में ठहराएंगे, हो सकता है शराब भी पिलाएं। अपना तो काम चौपट हो जाएगा और लोग कहने लगेंगे कि मंत्री का भाई दलाली करता है। मेरा भी राजनीतिक जीवन संकट में पड़ जाएगा।’ पिताजी तो मेरी बात से प्रसन्न हुए, लेकिन छोटे भाई को मेरी बात अच्छी नहीं लगी।

मिलने आया गन फैक्ट्री का मालिक
अभी मैं गृह विभाग में राज्य मंत्री बना ही था कि एक दिन सचिवालय में एक नवयुवक मुझसे मिला। उसके साथ एक और व्यक्ति था। उस नवयुवक ने बताया कि उसकी एक गन फैक्ट्री देहरादून में है, राजस्थान में विस्फोटकों की फैक्ट्री है। मैंने कहा कि आपको गृह विभाग से कोई समस्या हो तो बताओ। उसने कहा कि अभी तो कोई समस्या नहीं है। अभी तो केवल औपचारिक मुलाकात के लिए आया था। चलते-चलते बोला कि मैं आपके आवास पर आना चाहता हूं। मैं दारुलशफा के बी ब्लॉक में रहता था। शाम लगभग 6 बजे वह नवयुवक अकेला मेरे पास आया। मैंने पूछा कि आपके साथ एक और सज्जन थे, वह कहां रह गए? उसने बताया कि बाहर बैठे हैं। मैंने कहा, ‘उन्हें भी बुला लें।’ जब वह सज्जन भी आ गए तो मैंने उनका परिचय पूछा। पता चला कि वह गाजियाबाद के ही रहने वाले हैं। मैंने कहा, ‘ये तो गलत हो जाता, मेरा मतदाता बाहर रहता और पहली बार मिलने आने वाला व्यक्ति अंदर चाय पीता।’ थोड़ी बातचीत के बाद उस नवयुवक ने नोटों का एक बंडल जेब से निकाला और मुझे देने लगा। मैंने पूछा, ‘यह क्या है?’ उसने कहा, ‘कुछ नहीं, वैसे ही छोटी-सी सेवा है। ये हम सभी की करते हैं।’ मैंने कहा, ‘मैं तो सेवा नहीं लेता।’ उसने कहा, ‘पार्टी फंड में जमा करा देना।’ मैंने कहा, ‘पार्टी ने मुझे फंड इकट्ठा करने का कोई दायित्व नहीं दे रखा है। आपके मन में पार्टी के सहयोग का भाव जगा है तो विधानसभा मार्ग पर बीजेपी का कार्यालय है, वहां जाकर जमा करा आओ।’ उसने मुझसे पूछा कि आप कभी किसी से पैसे नहीं लेते? मैंने कहा, ‘लेता हूं। लेकिन चुनाव के समय झोली फैलाकर चंदा लेता हूं।’

सच्चे पत्रकार को चुनकर सम्मान खो चुकी संस्था के तेवर वापस लाएं!

लंबे समय बाद मौका मिला है कि एक पत्रकार को चुनकर सम्मान खो चुकी संस्था को पुनः सम्मान दिलाया जाये. अध्यक्ष पद पर बहुतेरे लोग हैं, जिनका चरित्र सभी साथियों को पता है. ज्ञानेंद्र शुक्ला ऐसे पत्रकार हैं, जिन्होंने मीडिया करियर के उतार चढ़ाव के बीच बहुतेरे लोगों की तरह दलाली और कमीशनखोरी में करियर बनाने की बजाय बच्चों को पढ़ाने का सम्मानजनक पेशा चुनने को प्राथमिकता दी. मैथ से एमएससी करनेवाले ज्ञानेंद्र जी के लिए वोट इसलिए भी जरूरी है कि जो व्यक्ति अपने लिये सम्मानजनक राह चुनता है, वो कभी आपके सम्मान पर आंच नहीं आने देगा.

जाहिर है कि जब हम अपने लिए सम्मान जनक रास्ता नहीं तलाश सकते तो अपने साथियों को सम्मान दिलाना दूर की कौड़ी है. आपका लीडर दलाली में लिप्त होगा तो आपकी छवि भी दलाल की बनायेगा. इसलिए चुनाव के इस बेहतर मौके का उपयोग अपने लिए एक सम्मान पैदा करने वाले पत्रकार को अध्यक्ष बनाकर कीजिए. उम्मीद है कि जितने भी पढ़ने लिखने वाले पत्रकार हैं वो एक पत्रकार को प्राथमिकता देंगे किसी दलाल और पत्रकारिता का धंधा करने वाले को नहीं. धन्यवाद. जागो पत्रकारों.

Gyanendra Shukla-

यूपी मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति के चुनाव के संदर्भ में अपनों के लिए ख़त…

आप सभी अवगत हैं कि मैं यूपी मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ रहा हूं. चूंकि हमारी पत्रकार बिरादरी हमेशा सत्ता से पक्ष से विपक्ष से सवाल करती है. लिहाजा सवाल पूछे जाने व समझे जाने जरूरी हैं कि आंतरिक चुनावी प्रक्रिया में आखिर किन वजहों से मेरे जैसे बेहद आम पत्रकार को समिति के चुनावी दंगल में उतरना पड़ा… कामकाज को लेकर पत्रकारों को असुविधा से निजात पाने के लिए निर्मित हुई समिति में पहले आपसी सौहार्द से पदाधिकारियो का चयन हो जाता था.

मूर्धन्य पत्रकारों ने इस समिति की गरिमा में चार चांद लगाए. यूं तो समिति का कोई वैधानिक अस्तित्व नहीं रहा लेकिन स्वस्थ परंपराओँ ने इसका मान सदैव ऊंचा रखा. पत्रकारीय सरोकारों से जुड़े तमाम अहम मुद्दों को लेकर समिति के रुख को सत्ताधीश स्वीकृत देते रहे. पर बदलते वक्त के साथ समिति जेबी संस्था में तब्दील हुई तो इसकी साख व सम्मान धूमिल हुए. जिस समिति को मैंने पत्रकारिता जीवन के प्रारंभ से बेहद सम्मानित पाया बदलते वक्त के साथ उसकी साख पर बट्टा लगते देखना निजी तौर से निराशाजनक रहा. चूंकि तमाम मुद्दों को लेकर सदैव मुखर रहा हूं तंत्र-सरकार-पक्ष-विपक्ष की आलोचना करता रहा पर अपनी ही बिरादरी के भीतर पनप रही विसंगतियों को लेकर मुखर न होने की बेचैनी भी पलती रही. डेढ़ वर्ष पूर्व साजिशन केस में फंसाए गए एक जूनियर साथी की मदद को लेकर जब समिति के पदाधिकारियों से मदद का आग्रह किया गया तो तमाम किंतु-परंतु, मान्यता-गैर मान्यता, बड़े-छोटे के पेंच फंसाकर मदद से इंकार कर दिया गया हालांकि अदालत के जरिए न्याय की राह प्रशस्त हुई. पत्रकारों के खिलाफ केस हों या उनकी नौकरियों के संकट समिति ने रस्म अदायगी से अधिक कुछ नहीं किया जिसने दिल मे चुभन पैदा की. कोरोना काल में तो सबके मानिंद पत्रकारों पर भी कहर टूट गया. जब सारी जनता घरों में बंद थी तब स्वास्थ्य कर्मियों व खाकीधारियों की कौन से दलालों को चुनना है? तरह पत्रकार भी तमाम खतरे उठाते बाहर थे. पर पत्रकारों को कोरोना वॉरियर्स का तमगा तक नहीं मिला, अपने फर्ज की अदायगी के दौरान तमाम पत्रकारों का निधन हो गया. हजारों की तादाद में नौकरियां छिन गईं, सैलरी में बेतहाशा कटौती कर दी गई. पर हमारी समिति मूकदर्शक बनी रही.

इस एक साल में बेहद आम पत्रकारों ने अपने सीमित संसाधनों के बूते तमाम साथियों की मदद की, पर निजी कोशिशों को छोड़ दें तो किसी ठोस मदद की न तो समिति की कोशिशें दिखीं न ही मंशा. जाहिर है जब बेहद मुश्किल दौर में पत्रकार बिरादरी को सहानुभूति व मदद की दरकार थी तो पत्रकारों के रहनुमा शांत व नदारद रहे. जब भी हमारी बिरादरी को मदद और साथ देने की जरूरत रही हमारे रहनुमा निजी हितों व आपसी खींचतान में ही मशगूल रहे हमें जायज मांगों तक को पूरा करने के लाले पड़ने लगे. तंत्र ने अपनी सहुलियत के लिहाज से मान्यता प्राप्त-गैर मान्यता प्राप्त, छोटे-बड़े पत्रकार के भेदभाव को बढ़ावा दिया. नतीजतन हमारे हालात बद से बदतर होते गए. छोटे-मंझोले अखबार निकालने वाले पत्रकारो के सामने अस्तित्व का संकट है. दुर्भाग्य से हमारे पेशे के लिए ये पंक्तियां सटीक हो रही हैं….

“हालाते जिस्म, सूरती—जाँ और भी ख़राब
चारों तरफ़ ख़राब यहाँ और भी ख़राब”.

इन भयावह हालातो में ये साफ हो गया कि जब तक समिति में मौजूदा निजाम कायम रहेगा तब तक हम पत्रकारों की बात और जज्बात सत्ता-समाज-सियासत के सामने ठोस तरीके से रखना नामुमकिन होगा. पर बात वहीं आकर फंसी दिखी कि आखिर बदलाव हो कैसे, साम-दाम-दंड-भेद-छल-कपट से जीत का व्यूह रचने वालों से मुकाबले के लिए कौन आहूति दे?कौन आगे आए? पर कहते हैं कि सिर्फ आलोचना करने/ उंगली उठाने/सवाल करने से बात नहीं बनती.. किसी न किसी पत्रकार को आगे आना ही पड़ता तो मेरे जैसे साधारण पत्रकार ने झिझक व संकोच तोड़ आगे बढ़ने का बीड़ा उठाया. समिति को जेबी संगठन के ठप्पे से मुक्त करने के लिए मैंने खुद को अर्पित करने का निर्णय लिया. समिति पर कब्जेदारी की श्रंखला तोड़ने की कड़ी में ये भी संकल्प लेता हूं कि चुने जाने के बाद दोबारा इस पद के लिए दावेदारी कदापि नहीं करूंगा. इस संकल्प के साथ मैदान हूं कि आम पत्रकारो की आवाज मजबूती से उठाऊंगा, आसमानी तारे तोड़ लाने का वायदा तो नहीं करता पर ये पुख्ता भरोसा जरूर दिलाता हूं कि समिति की साख व सम्मान को इस कदर मजबूत करूंगा कि हमारी बिरादरी की छवि पक्ष-विपक्ष-तंत्र के सामने निखर सकेगी…रोजी-रोटी-सम्मान का हक़ पाने के साथ छोटे-बड़े की विसंगति को हटाकर हम अपनी बात व मुद्दों को ठोस तरीके से रख सकेंगे.

शायद छल-छद्म-धनबल-कपट की इस निर्णायक लड़ाई में पत्रकार साथियो का स्नेह और विश्वास मेरा हौसला है….इन पंक्तियो के साथ अल्प विराम लेता हूं..

“यक़ीन हो तो कोई रास्ता निकलता है
हवा की ओट भी ले कर चराग़ जलता है”

ज्ञानेन्द्र कुमार शुक्ला
प्रत्याशी, अध्यक्ष पद
यूपी मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति, लखनऊ

28 साल बाद पार्षद चुनेंगे नपा अध्यक्ष, अब शुरू होगी जोड़तोड़

नगर पालिका चुनाव में बुधवार को शहर के मतदाताओं ने अपने वार्डों के 39 प्रत्याशियों को चुन लिया लेकिन अब नगर पालिका अध्यक्ष कौन बनेगा, इस पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं। विदिशा नपा में 28 साल बाद यह मौका आया हैं जब अध्यक्ष का चुनाव शहर के मतदाता नहीं, निर्वाचित पार्षद करेंगे। बुधवार को हुए मतदान के परिणाम 17 जुलाई

28 साल बाद पार्षद चुनेंगे नपा अध्यक्ष, अब शुरू होगी जोड़तोड़

विदिशा(नवदुनिया प्रतिनिधि)। नगर पालिका चुनाव में बुधवार को शहर के मतदाताओं ने अपने वार्डों के 39 प्रत्याशियों को चुन लिया लेकिन अब नगर पालिका अध्यक्ष कौन बनेगा, इस पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं। विदिशा नपा में 28 साल बाद यह मौका आया हैं जब अध्यक्ष का चुनाव शहर के मतदाता नहीं, निर्वाचित पार्षद करेंगे। बुधवार को हुए मतदान के परिणाम 17 जुलाई को घोषित हो जाएंगे। इसके पहले ही भाजपा और कांग्रेस में अध्यक्ष के लिए जोड़तोड़ शुरू हो जाएंगी। विदिशा नपा में वर्ष 1994 में पार्षदों ने सरोज जैन को नपा अध्यक्ष चुना था। राज्य सरकार द्वारा नपा चुनाव की प्रक्रिया में चुनाव से पहले किए गए बदलाव ने दो साल से नपा अध्यक्ष के चुनाव की तैयारी कर रहे नेताओं को बड़ा झटका दिया था। सरकार के अप्रत्यक्ष प्रणाली से नपा अध्यक्ष के निर्वाचन के बाद अध्यक्ष पद के दावेदारों को पार्षद के चुनाव मैदान में उतरना पड़ा। अध्यक्ष पद के लिए सीधा चुनाव नहीं होने से भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों में ध एक अनार, सौ बीमारध वाली स्थिति ला दी।दोनों दलों में अध्यक्ष पद के एक से अधिक दावेदार पार्षद का चुनाव लड़े, जिसके चलते यह चुनाव रोचक हो गया। कुछ दावेदार एक - दूसरे को नुकसान पहुंचाने में भी पीछे नहीं रहे। अब मतदान के बाद प्रत्याशी अपनी जीत - हार के गणित में जुट गया हैं। जिन्हें अपने जीतने का भरोसा हैं वे आज से ही अध्यक्ष बनने की जोड़तोड़ में जुट जाएंगे।अध्यक्ष बनने के लिए 20 पार्षदों का बहुमत जरूरी होगा।

28 साल बाद पार्षद चुनेंगे अध्यक्ष

117 साल पुरानी नगर पालिका में 28 साल बाद जनता के चुने हुए पार्षद अपना अध्यक्ष चुनेंगे। आखरी बार वर्ष 1994 में पार्षदों ने सरोज जैन को नपा अध्यक्ष चुना था इसके बाद वर्ष 1999 में अध्यक्ष पद के लिए प्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव हुआ था, जिसमें शहर के मतदाताओं ने अशोक ताम्रकार को सीधे नपा अध्यक्ष चुना था। वर्ष 1999 से वर्ष 2020 तक विदिशा नपा में चार अध्यक्ष रहे, इनमें ताम्रकार के अलावा हरिबाबू अग्रवाल, ज्योति शाह और मुकेश टंडन शामिल हैं। वर्ष 2020 से 2022 तक नपा में कलेक्टर प्रशासक रहें।

Vidisha News: मुख्यमंत्री ने जिला योजना अधिकारी को मंच से किया निलंबित

पहले अध्यक्ष रह चुके हैं मुख्यमंत्री

विदिशा नपा का इतिहास बड़ा गौरवपूर्ण रहा हैं। स्थानीय इतिहास के जानकार गोविंद देवलिया के मुताबिक विदिशा नपा का गठन सिंधिया रियासत के समय एक जनवरी 1904 को हुआ था। 1940 तक कलेक्टर नपा के प्रशासक हुआ करते थे।वर्ष 1940 में पहली बार जन प्रतिनिधि के रूप में बाबू तखतमल जैन इस नगर पालिका के अध्यक्ष बने। वे दो साल तक इस पद पर बने रहे। कुछ वर्षो बाद वे मध्य भारत प्रांत के मुख्यमंत्री भी रहे।

IPL 2022 Auction: 10 टीमें, 561 करोड़ रुपये और 590 खिलाड़ी, जानिए मेगा ऑक्शन में कौन-कौन हुआ है शामिल

IPL Auction 2022 Registered Players: आईपीएल 2022 ऑक्शन में कुल 590 खिलाड़ी रजिस्टर हुए हैं. इनमें से 229 कैप्ड और 354 अनकैप्ड प्लेयर हैं. सात खिलाड़ी एसोसिएट देशों से हैं.

IPL 2022 Auction: 10 टीमें, 561 करोड़ रुपये और 590 खिलाड़ी, जानिए मेगा ऑक्शन में कौन-कौन हुआ है शामिल

आईपीएल 2022 ऑक्शन (IPL 2022 Auction) बेंगलुरु में 12 और 13 फरवरी को होना है. आईपीएल मेगा ऑक्शन का आयोजन इस बार काफी बड़ा है. इस बार 10 टीमों के बीच खिलाड़ियों को लेकर संघर्ष होगा. ऑक्शन में टीमों के पास 561 करोड़ रुपये पर्स में होंगे जबकि कुल 590 खिलाड़ियों की किस्मत का फैसला होगा. करीब 10 साल बाद आईपीएल (IPL 2022) में टीमों की संख्या आठ के बजाए 10 हुई है. ऐसे में ऑक्शन टेबल पर रोमांच जबरदस्त रहेगा. दो दिन तक चलने वाले मेगा ऑक्शन में इस बार कुल 590 खिलाड़ी (IPL Auction 2022 Players) शामिल हैं. इनमें कई पुराने नाम हैं तो कई ऐसे खिलाड़ी हैं जो पहली बार नीलामी का हिस्सा बने हैं. लेकिन इनमें से आधे ही टीमों का हिस्सा बन पाएंगे. ऑक्शन में सबसे कौन से दलालों को चुनना है? कम बेस प्राइस 20 लाख रुपये है और सबसे ज्यादा दो करोड़ रुपये है.

टूर्नामेंट में इस बार दुनिया भर से 1200 से ज्यादा खिलाड़ियों ने अपना नाम दर्ज कराया था, जिसके बाद फ्रेंचाइजियों की पसंद के आधार पर कुल 590 खिलाड़ियों को अंतिम लिस्ट में जगह मिली. इन 590 खिलाड़ियों में 229 खिलाड़ी (कैप्ड) वो हैं, जो अपने देश का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं, जबकि 354 खिलाड़ी अनकैप्ड हैं यानी, जिन्होंने अभी तक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट का स्वाद नहीं चखा. वहीं 7 खिलाड़ी ICC के एसोसिएटेड सदस्य देशों से हैं. इन खिलाड़ियों में 370 भारत के और 220 विदेशी खिलाड़ी हैं. विदेशी खिलाड़ियों में सबसे ज्यादा 47 ऑस्ट्रेलिया से हैं.

IPL 2022 Auction Full List

अब ये 590 खिलाड़ी कौन हैं, ये जानने की उत्सुकता हर किसी को है. इस लिस्ट में भारत से लेकर विदेशी खिलाड़ियों तक कई बड़े चेहरे हैं. ऐसे में नीलामी से पहले आपको बताते हैं सभी 590 खिलाड़ियों के नाम.

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मतदाताओं की संख्या: 784