वाइफ स्वैपिंग के बाद तलाक के लिए कोर्ट पहुंचा पति
राजधानी के फैमिली कोर्ट में पत्नियों की अदला-बदली (वाइफ स्वैपिंग) का पहला मामला सामने आया है. वाइफ स्वैपिंग के कारण एक दंपति के बीच तलाक की स्थिति बन गई है. पारिवारिक न्यायालय में पति ने पत्नि से तलाक की अर्जी लगाई है.
लखनऊ: राजधानी के फैमिली कोर्ट में पत्नियों की अदला-बदली (वाइफ स्वैपिंग) का पहला मामला सामने स्वैप क्या है आया है. पारिवारिक न्यायालय में पति ने पत्नि से तलाक की अर्जी लगाई है. राजेश और दिनेश (नाम काल्पनिक हैं) दोनों कॉलेज से साथ थे. दोनों दोस्तों में पहले अच्छे संबंध थे. इसीलिए दोनों दोस्त आपसी सहमति से एक-दूसरे की पत्नी की अदला-बदली करते थे. कई बार दोनों कपल ने दोस्ती यारी में वाइफ स्वैपिंग की जिसमें चारों की सहमति थी. लेकिन राजेश की पत्नी की फीलिंग दोस्त दिनेश के प्रति ज्यादा बढ़ गई और दोनों के बीच ज्यादा अटैचमेंट हो गई.
दोस्त से नजदीकियां बढ़ने के बाद पत्नी अपने पति (राजेश) से किनारा करने लगी. यह बात राजेश को बर्दाश्त नहीं हुई और पत्नी के बीच मनमुटाव बढ़ने लगा. आए दिन दोनों के बीच खूब झगड़े होने लगे. लंबे समय तक झगड़ा चलने के बाद राजेश ने अपनी पत्नी से तलाक के लिए कहा. लेकिन राजेश की पत्नी तलाक नहीं देना चाहती है. वहीं वह दिनेश (दोस्त) के साथ भी रहना चाहती है. लेकिन राजेश (काल्पनिक नाम) अब चाहता है कि पत्नी सिर्फ मेरे साथ रहे या फिर डिवोर्स ले लें.
राजधानी के फैमिली कोर्ट का पहला केस
राजधानी के परिवारिक न्यायालय में एक शख्स ने अपनी पत्नी से तलाक के लिए अर्जी डाली. इसमें तलाक का आधार पत्नी के क्रूरतापूर्व व्यवहार को बताया है. स्वैपिंग के दौरान दोस्त से पत्नी की नजदीकी के चलते एक शख्स ने अपनी पत्नी से अलग होने का फैसला कर लिया है. यही नहीं उसने परिवारिक न्यायालय में पत्नी से छुटकारा पाने के लिए तलाक की अर्जी भी दे दी है. लेकिन किसी भी कानून की किताब में पत्नी की अदला-बदली के मामले में तलाक हो ऐसा नहीं लिखा है. तलाक के लिए कोई दमदार वजह होनी चाहिए जिस कारण से तलाक लिया जा सके. दरअसल याची और उनके मित्र आपसी सहमति से एक दूसरे की पत्नियों की अदला-बदली (वाइफ स्वैपिंग) करते थे. जिसमें चारों की सहमति होती थी.
वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धांत कुमार ने बताया कि वाइफ स्वैपिंग का मामला कोई आम बात नहीं है. इस तरीके के केस जब आते हैं तो कई बार हमें भी नहीं पता चलता है कि यह मामला वाइफ स्वैपिंग का है. लेकिन, जब केस को लड़ते हैं, वाद-विवाद बढ़ता है, दलीलें पेश होती हैं. उस समय पता चलता है कि असली वजह कुछ और है. इस तरह के मामले व्यक्ति के चरित्र को दर्शातें है. इसलिए जो भी केस आते हैं, वह खुलकर कभी नहीं बोलते हैं. बल्कि पति या पत्नी एक-दूसरे के क्रूरतापूर्ण व्यवहार को ही ढाल बनाते हैं. अधिवक्ता ने बताया कि हिंदू विवाह कानून में सेक्शन 311 में पति-पत्नी के बीच क्रूरता का जिक्र है. विवाह में क्रूरता को जब परिभाषित किया जाता है तो यह भी सोचना होता है कि कितना गंभीर मामला है और आरोप क्या लगे हैं. उन्होंने बताया कि सबसे अहम बात यह हो जाती है कि अगर क्रूरता का आरोप लगाया गया है तो किस प्रकार की क्रूरता है और कितनी बार क्रूरता दोहराई गई है.
वाइफ स्वैपिंग क्या है?
पहले लोग मानते थे कि वाइफ स्वैपिंग विदेशी कल्चर है, लेकिन अब यह कई शहरों में फैल चुका है. हाई प्रोफाइल लोगों को इसमें कोई बुराई नजर नहीं आती है. वे इसे सिर्फ सेक्स प्लेजर के रूप में देखते हैं. ये बड़े लोग किसी पार्टी में आते तो अपनी पत्नियों के साथ हैं, लेकिन घर किसी और की पत्नी के साथ जाते हैं. इन्हें वाइफ स्वैपिंग के लिए कोई गिल्ट नहीं होता है. पहले बडे होटल में सेक्रेट पार्टी की जाती है फिर एक बाऊल में सभी पुरुष अपने कार की चाबी डाल देते हैं. बाद में पत्नियों को वह चाबी उठानी पड़ती है. अब जिस पत्नी को जिस पुरुष के कार की चाबी मिलती है उसे उसके साथ जाना पड़ता है. कई बार वाइफ स्वैपिंग अपनी शादी को बचाने के लिए भी करते है. वहीं, कभी-कभी पत्नी की मर्जी न हो तो भी उसे पति की वजह से जबरन इन सब में शामिल होना पड़ता है, कई पत्नियों को तो पहली बार धोखे से पति साथ ले जाते हैं. इस पर कई फिल्में बन चुकी हैं.
अतीत की वो छोटी घटना जिससे पैदा हुआ था Cotton Swab को बनाने का ख़्याल. जानिए इसका दिलचस्प इतिहास
History of Cotton Swab : इतिहास गवाह है कि बहुत-सी ज़रूरत की चीज़ों के आविष्कार के वक़्त ये नहीं सोचा गया था कि ये आगे चलकर बड़े-बड़े कामों में अहम भूमिका निभाएंगी. Cotton Swab के साथ भी कुछ ऐसा ही है, जो आज कोविड संक्रमण की जांच में सबसे अहम भूमिका निभा रहा है. वैसे क्या आप जानते हैं ये हमारे बीच कब से अस्तित्व में है? अगर नहीं, तो आइये इस लेख में आपको बताते हैं कि कब और कैसे Cotton Swab का आविष्कार हुआ था. साथ में और भी कई संबंधित बातें इस लेख में आपको बताई जाएंगी.
ज़िंदगी का एक हिस्सा बन चुका है
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Cotton Swab कोई नई चीज़ नहीं है कि बल्कि ये आधुनिक ज़िंदगी का एक हिस्सा बन चुका है. घर से लेकर अस्पतालों व मेडिकल लैब तक में इसका इस्तेमाल किया जाता है. घर में इसका इस्तेमाल अमूमन कान साफ़ करने व महिलाएं मेकअप के वक़्त स्वैप क्या है करती हैं. वैसे बता दें कि कॉटन स्वाब से कान साफ़ नहीं करना चाहिए.
ख़ूनी को पकड़ने में भी अहम भूमिका
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मामूली-सा दिखने वाला कॉटन स्वाब ख़ूनी को पकड़ने में भी फ़ॉरेंसिक विशेषज्ञ की मदद करता है. दरअसल, इसके ज़रिए संदिग्ध व्यक्ति के DNA के सैंपल लिए जाते हैं ताकि क्राइम सीन पर मिले सैंपल से उसे मैच कराया जा सके. इसके बाद इसकी रिपोर्ट बनाई जाती है जो आरोपी को पकड़ने और उसे सज़ा देने में मदद करती है. बता दें कि फ़ॉरेंसिक विशेषज्ञ Moistened Cotton Swabs का इस्तेमाल DNA सैंपल के लिए करते हैं.
लकड़ी से प्लास्टिक तक का सफ़र
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पहले जो कॉटन स्वाब इस्तेमाल में लिए जाते थे वो लकड़ी के होते थे यानी सूईनुमा तीली पर रुई लगी होती थी. लेकिन, आज लड़की के साथ-साथ प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जाने लगा है. इन्हें बनाने के लिए अच्छी गुणवत्ता वाली प्लास्टिक का इस्तेमाल किया जाता है. वैसे आजकल सस्ते कॉटन स्वाब भी उपलब्ध हैं जिसकी गुणवत्ता सही नहीं होती और इन्हें इस्तेमाल भी नहीं करना चाहिए.
क्या है कॉटन स्वॉब का इतिहास?
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कॉटन स्वाब के आविष्कारक का नाम Leo Gerstenzang बताया जाता है. Leo Gerstenzang पोलैंड के रहने वाले थे जिन्होंने 1920 के दशक में पहला कॉटन स्वाब बनाया था. इसके आविष्कार का ख़्याल एक छोटी घटना से जुड़ा है. दरअसल, माना जाता है कि एक बार लियो ने अपनी पत्नी को तीली पर रुई लपेटकर बच्चे का कान साफ़ करते देखा था. ये दृश्य देखकर ही उन्हें कॉटन स्वाब बनाने का ख़्याल आया था.
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इसके बाद इन्होंने “Baby Gays” नाम से कॉटन स्वाब को एक उत्पाद के रूप में बनाया. इन्होंने अपनी एक कंपनी भी बना ली थी जिसका नाम था Leo Gerstenzang Infant Novelty Company. 1926 तक इसे “Baby Gays” कहा गया और बाद में इसका नाम Q-Tips कर दिया गया था. वहीं, 1948 तक इसकी मांग काफी बढ़ गई थी, जिससे बाद इसका बड़े स्तर पर निर्माण किया गया था. इसके बाद 1950 के दशक में ये मेकअप की दुनिया में प्रवेश कर गया था. इसके बाद इसका इस्तेमाल विभिन्न क्षेत्रों में किया जाने लगा और वर्तमान में ये एक महत्वपूर्ण टूल के रूप में जाना जाता है.
आम कॉटन स्वाब से कितना अलग है कोविड की जांच वाला स्वाब
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ज़रूरत के हिसाब से विभिन्न कामों के लिए कॉटन स्वाब को अलग-अलग तरीक़े से बनाया गया स्वैप क्या है है. वहीं, कोविड की जांच में इस्तेमाल होने वाला और कान साफ़ करने व मेकअप में इस्तेमाल होने वाला स्वाव काफी अलग होता है. दरअसल, कोविड संक्रमण की जांच के सैंपल के लिए Nasopharyngeal Swab का इस्तेमाल किया जाता है. इस जांच में जो स्वाब इस्तेमाल होते हैं वो लंबे होते हैं ताकि नाक के ज़रिए नाक और गले के पीछे से सैंपल लिया जा सके.
इस जांच के लिए CDC और WHO ने Synthetic Fiber Swabs के लिए कहा है. वहीं, कोविड के बढ़ते मामले और जांच की वजह से Synthetic Fiber Swabs की कमी को पूरा करने के लिए Cotton-tipped plastic swabs भी इस्तेमाल किए जा रहे हैं, जिन्हें लगभग सिथेंटिक फ़ाइबर स्वॉब के बराबर माना गया है.
Online Fraud : बिना OTP शेयर किए, खेते से पार हुए लाखों रुपये
Online Fraud हमारे देश में लगातार साइबर फ्रॉड की घटनाएं बड़ी तेजी से बढ़ती जा रही हैं। इसको लेकर कई बार चेतावनी भी दी जाती है लेकिन लोग साइबर फ्रॉड के चपेट में आ ही जाते है ओटीपी शेयर न करने की चेतावनी भी दी जाती है। लेकिन, लोग कई बार ये गलती कर देते है और उनके खाते से पैसे पार हो जाते है। लेकिन क्या आपने ये सुना है कि बिना OTP शेयर किये भी आपके खाते से पैसे पार हो सकते है, जी हा ऐसा हो सकता है।
Online Fraud वहीं कुछ दिन पहले साइबर स्कैम के चलते दिल्ली के एक शख्स के खाते से 50 लाख रुपये निकाल लिए गए. उसके मोबाइल पर केवल कई मिसकॉल थे। जालसाजों ने बिना ओटीपी मांगे कई ट्रांजैक्शन पूरे कर लिए। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह घटना सुरक्षा सेवा में निदेशक के पद पर कार्यरत एक व्यक्ति के साथ हुई.
बिना ओटीपी के कैसे हुआ फ्रॉड?
Online Fraud इस मामले में पीड़िता ने बताया कि उसने ओटीपी साझा नहीं किया था, फिर भी उसके साथ धोखा हुआ. इस तरह के घोटाले अक्सर जामताड़ा में बैठे अपराधी करते हैं। ये नए-नए तरीकों से यूजर्स को फंसाते हैं। इस मामले को लेकर माना जा रहा है कि जालसाजों ने सिम की अदला-बदली की होगी. आरटीजीएस ट्रांसफर शुरू करने या ओटीपी के लिए ब्लैंक या मिस्ड कॉल प्राप्त हो रहे थे। यह भी संभव है कि स्कैमर्स को सिम स्वैप के जरिए ओटीपी मिला हो।
क्या है सिम स्वैप फ्रॉड?
सिम स्वैप या सिम स्विच फ्रॉड में, स्कैमर टू-फैक्टर ऑथेंटिकेशन को बायपास करके पीड़ित के मोबाइल नंबर तक पहुंच प्राप्त करते हैं। इससे स्कैमर्स को टारगेट के मोबाइल नंबर पर कॉल या मैसेज भी आने लगते हैं। Online Fraud सिम बदलने के लिए जालसाज सिम प्रदाता से संपर्क करते हैं और असली मालिक होने का ढोंग करते हैं। जब फ्रॉड सिम एक्टिवेट हो जाता है तो स्कैमर्स को पीड़ित के मोबाइल नंबर पर कंट्रोल मिल जाता है। वे इसका उपयोग कॉल और संदेश प्राप्त स्वैप क्या है करने या भेजने के लिए करते हैं।
Cyber Crime: दिल्ली के एक व्यक्ति को लगा आधा करोड़ का चूना, बिना OTP साझा किए वारदात को दिया अंजाम, जानिए कैसे.
नई दिल्ली। अपना ओटीपी कभी भी किसी के साथ साझा न करें। यह चेतावनी हमेशा साइबर अपराध अधिकारियों द्वारा लोगों को साइबर धोखाधड़ी के बारे में जागरूक करने के लिए साझा की जाती है, जो कॉल/एसएमएस/ईमेल के माध्यम से वन-टाइम-पासवर्ड (ओटीपी) पूछकर किया जाता है। लेकिन क्या हो अगर हम आपसे कहें कि बिना ओटीपी शेयर किए भी आप फंस सकते हैं? हाल ही में हुए एक साइबर फ्रॉड में दिल्ली के एक शख्स ने मिस्ड कॉल के जरिए 50 लाख रुपए गंवाए। विशेष रूप से, जालसाजों ने उनसे किसी भी ओटीपी के बारे में नहीं पूछा, फिर भी पीड़ित के कई खातों में कई लेनदेन किए।
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दक्षिण दिल्ली स्थित एक सुरक्षा सेवा के निदेशक के रूप में काम करने वाले एक व्यक्ति ने कथित तौर पर साइबर धोखाधड़ी में 50 लाख रुपये खो दिए। टीओआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, पीड़ित को कुछ दिन पहले शाम 7 बजे से 8.45 बजे के बीच उसके सेल फोन पर बार-बार ब्लैंक और मिस्ड कॉल मिले। जबकि उन्होंने कुछ कॉलों को नजरअंदाज कर दिया, जब उन्होंने अंगूठी उठाई तो दूसरी तरफ से कोई नहीं बोला। स्वैप क्या है हालांकि, कुछ देर बाद जब पीड़ित ने मैसेज देखने के लिए अपने मोबाइल फोन को चेक किया तो रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (आरटीजीएस) यानी करीब आधा करोड़ के फंड-ट्रांसफर के रियल टाइम सेटलमेंट के मैसेज देखकर चौंक गए।
मामला दर्ज किया गया था और प्रारंभिक जांच में संदेह है कि यह मामला झारखंड के जामताड़ा में स्थित हो सकता है। रिपोर्ट यह भी सुझाव देती है कि प्राप्तकर्ता जिसने अपने खाते में सभी धोखाधड़ी वाले पैसे प्राप्त किए हैं, वह कोई है जिसने कमीशन के लिए धोखेबाजों को अपने खाते किराए पर दिए स्वैप क्या है हैं।
जामताड़ा घोटाला आम तौर पर साइबर धोखाधड़ी से जुड़ा हुआ है, जिसमें जामताड़ा शहर में स्थित धोखेबाज पीड़ितों से पैसे का लेन-देन करने के लिए बैंक खाता संख्या, पासवर्ड, ओटीपी आदि चोरी करने के लिए स्क्रीन-मिररिंग ऐप डाउनलोड करने के लिए कहते हैं। हाल के एक मामले में भी पुलिस को संदेह है कि जालसाज ने "सिम स्वैप" किया होगा। आरटीजीएस ट्रांसफर शुरू करने और ओटीपी को सक्रिय करने के लिए ब्लैंक या मिस्ड कॉल किए गए थे। यह संभव है कि स्कैमर्स को निकटवर्ती कॉल के आईवीआर में ओटीपी का उल्लेख मिला हो।
टीओआई ने पुलिस अधिकारी के बयान के हवाले से कहा, "इस धोखाधड़ी में स्कैमर्स लोगों के मोबाइल फोन वाहकों से भी संपर्क करते हैं और उन्हें सिम कार्ड सक्रिय करने के लिए बरगलाते हैं। एक बार ऐसा होने पर वे फोन पर नियंत्रण कर लेते हैं।"
क्या है सिम स्वैप फ्रॉड
सिम स्विच फ्रॉड तब होता है जब धोखेबाज टू-फैक्टर ऑथेंटिकेशन और वेरिफिकेशन में खामियों का फायदा उठाकर स्वैप क्या है पीड़ित के अकाउंट तक पहुंचने के लिए आपके फोन नंबर का इस्तेमाल करते हैं। सिम स्विचिंग के लिए, जालसाज आपके मोबाइल फोन के सिम प्रदाता से संपर्क करते हैं और उन्हें अपना सिम कार्ड सक्रिय करने के लिए मनाते हैं। एक बार धोखाधड़ी सिम सक्रिय हो जाने के बाद, स्कैमर्स के पास पीड़ित के फोन नंबर पर नियंत्रण होता है और वे नियंत्रण कॉल या टेक्स्ट प्राप्त कर सकते हैं।
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