अक्टूबर 1997 में महारानी एलिजाबेथ की खिलाफ अमृतसर में प्रदर्शनतस्वीर: AP/picture alliance
विश्वविद्यालय द्वारपाल सेवाएं
आपको जिन कुछ दस्तावेज़ों की आवश्यकता होगी, उनमें ट्रांसक्रिप्ट शामिल हैं जो आपके द्वारा अब तक किए गए सभी पाठ्यक्रमों की मार्कशीट हैं, जिसमें आपके ग्रेड, क्रेडिट और आपको प्राप्त की गई डिग्री का विवरण शामिल है।
आपको अकादमिक दस्तावेजों को शामिल करना होगा जिसमें स्कूल या स्नातक स्तर पर आपके द्वारा अध्ययन किए गए पाठ्यक्रमों और मॉड्यूल और आपको प्राप्त ग्रेड के बारे में विवरण शामिल होंगे। आप जिन विश्वविद्यालयों में आवेदन करते हैं, वे आपसे इन दस्तावेजों की आधिकारिक प्रतियां जमा करने की अपेक्षा करेंगे, न कि कोई विदेशी मुद्रा व्यापार अमृतसर स्क्रीनशॉट या प्रिंटआउट।
ये अकादमिक प्रतिलेख महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे इस बात का प्रमाण हैं कि आपने जिस पाठ्यक्रम के लिए आवेदन किया है उसे करने के लिए आपके पास आवश्यक शैक्षणिक योग्यताएं हैं।
आपने जिस विश्वविद्यालय के लिए आवेदन किया है, उसकी आवश्यकताओं के आधार पर सभी मार्कशीट की मूल या प्रमाणित प्रतियां, उन सभी संस्थानों से डिग्री प्रमाण पत्र शामिल करना चाहिए, जिनमें आपने अपनी माध्यमिक शिक्षा के बाद अध्ययन किया है।
औपनिवेशिक अतीत के तार
सबसे लंबे समय तक इस राजशाही की गद्दी संभालने वाली के रूप में महारानी एलिजाबेथ का कभी कॉलोनी रहे भारत के साथ एक पहेलीनुमा रिश्ता था. उनके निधन पर भारत में 11 सितंबर को राजकीय शोक मनाने की घोषणा की गई है.
1952 में जब महारानी एलिजाबेथ की ताजपोशी हुई तब भारत एक आजाद देश बन चुका था. लेकिन उनकी ताजपोशी पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू सम्मानित अतिथि के रूप में मौजूद थे. भारत अभी विदेशी मुद्रा व्यापार अमृतसर भी राष्ट्रमंडल समूह का सदस्य है, जिसकी मुखिया अपने निधन तक महारानी एलिजाबेथ थीं.
किस्मत से महारानी बनी थीं एलिजाबेथ द्वितीय
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अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ दशकों तक संघर्ष करने के बावजूद भारत ने ब्रिटेन और ब्रिटेन की राजशाही के प्रति कटुता का भाव नहीं दिखाया. लेकिन अंग्रेजी हुकूमत के दौरान भारत के खिलाफ हुए अत्याचार से जुड़े सवालों से वो अनछुई नहीं रहीं.विदेशी मुद्रा व्यापार अमृतसर
भारत में विरोध
जुलाई 2015 में कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने भी एक भाषण में यही बात कही थी. उसके बाद मोदी ने थरूर के भाषण की तारीफ की थी लेकिन वो इस मांग का समर्थन करते है या नहीं यह नहीं कहा था.
1983 में नई दिल्ली में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के साथ महारानी एलिजाबेथ और उनके पतितस्वीर: Ron Bell/PA Wire/empics/picture alliance
इसके बावजूद इस तरह के सवाल हमेशा बने रहे और दूसरी पूर्व कॉलोनियों की तरह भारत में भी एलिजाबेथ और शाही परिवार के अन्य सदस्यों का पीछा करते रहे. एलिजाबेथ अपने राज के दौरान सिर्फ तीन बार भारत आईं.
वो आखिरी बार भारत 1997 में आई थीं, जिस साल भारत अंग्रेजी हुकूमत से अपनी आजादी की 50वीं वर्षगांठ मना रहा था. दिल्ली में उनके आगमन से पहले ब्रिटेन विदेशी मुद्रा व्यापार अमृतसर के उच्च आयोग के बाहर उनके खिलाफ इतना भारी प्रदर्शन हो रहा था कि पुलिस को प्रदर्शनकारियों को हटाने के लिए वॉटर कैनन का इस्तेमाल करना पड़ा था.
क्या करेंगे चार्ल्स
वो हत्याकांड आज भी दोनों देशों के रिश्तों में एक कांटे की तरह है. एलिजाबेथ अपने पति प्रिंस फिलिप के साथ जलियांवाला बाग गईं, वहां सिर झुकाया, 30 सेकंड का मौन रखा और शहीदों को श्रद्धांजलि भी दी, लेकिन माफी नहीं मांगी.
एक अलग कार्यक्रम में उन्होंने कहा, "यह कोई रहस्य नहीं है कि हमारे अतीत में कुछ कठिन प्रकरण हुए हैं और जलियांवाला बाग ऐसा ही एक परेशान कर देने वाला उदाहरण है. लेकिन हम कितना भी चाहें, इतिहास को दोबारा लिखा नहीं जा सकता."
टावर ऑफ लंदन के ज्वेल हाउस में रखे एलिजाबेथ के शाही मुकुट में जड़ा कोहिनूर विदेशी मुद्रा व्यापार अमृतसर हीरा भी ब्रिटेन के औपनिवेशिक अतीत की एक कड़ी है. कोहिनूर दुनिया के सबसे बड़े तराशे हुए हीरों में से है और कहा जाता है कि सैकड़ों साल पहले उसकी खोज भारत की ही एक खदान में हुई थी.
जनवरी 1961 में जयपुर के महाराज और महारानी के साथ बाग का शिकार कर तस्वीर खिचवातीं महारानी एलिजाबेथतस्वीर: United Archives/picture alliance
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