5. यदि दो नॉन अमेरिकी देश भी एक दूसरे के साथ व्यापार करते हैं तो भुगतान के रूप में वे अमेरिकी डॉलर लेना पसंद करते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि यदि उनके हाथ में डॉलर है तो वे किसी भी अन्य देश से अपनी जरूरत का सामान आयात कर लेंगे.
वैश्विक बाज़ार में डॉलर का वर्चस्व
इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख के अंतर्गत वैश्विक बाज़ार में डॉलर के वर्चस्व और उसकी भूमिका पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
अमेरिकी डॉलर निस्संदेह वैश्विक वित्तीय प्रणाली का प्रमुख चालक है। केंद्रीय बैंकों के लिये प्रमुख आरक्षित मुद्रा से लेकर वैश्विक व्यापार एवं उधार लेने हेतु मुख्य साधन के रूप में अमेरिकी डॉलर विश्व भर के बैंकों और बाज़ारों के लिये महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहा है। वर्ष 2017 में जारी एक शोध पत्र के मुताबिक कुल अमेरिकी डॉलर का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा अमेरिका से बाहर मौजूद है। यह आँकड़ा विश्व की अन्य अर्थव्यवस्थाओं के लिये डॉलर के महत्त्व को स्पष्ट करता है। हालाँकि गत वर्षों में कई देशों की सरकारों डॉलर वैश्विक मुद्रा क्यों? ने डॉलर पर अपनी निर्भरता को कम करने का प्रयास किया है, उदाहरण के लिये वर्ष 2017 में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने रुसी बंदरगाहों पर अमेरिकी डॉलर के माध्यम से व्यापार न करने का आदेश दिया था। परंतु जानकारों का मानना है कि डी-डॉलराइज़ेशन या वैश्विक बाज़ार में अमेरिकी डॉलर के वर्चस्व में कमी निकट भविष्य में संभव नहीं है।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा के रूप में डॉलर
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा वह मुद्रा होती है जिसे दुनिया भर में व्यापार या विनियम के माध्यम के रूप में स्वीकार किया जाता है। अमेरिकी डॉलर, यूरो और येन आदि विश्व की कुछ महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय मुद्राएँ हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा को आरक्षित मुद्रा के रूप में भी जाना जाता है।
- संयुक्त राष्ट्र (UN) ने दुनिया भर की 180 प्रचलित मुद्राओं को मान्यता प्रदान की है और अमेरिकी डॉलर भी इन्हीं में से एक है, परंतु खास बात यह है कि इनमें से अधिकांश का प्रयोग मात्र घरेलू स्तर पर ही किया जाता है।
- विश्व भर के बैंकों की डॉलर पर निर्भरता को वर्ष 2008 के वैश्विक संकट में स्पष्ट रूप से देखा गया था।
- आरक्षित मुद्रा के रूप में
- अंतर्राष्ट्रीय क्लेम को निपटाने और विदेशी मुद्रा बाज़ार में हस्तक्षेप करने के उद्देश्य से दुनिया भर के अधिकांश केंद्रीय बैंक अपने पास विदेशी मुद्रा का भंडार रखते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के मुताबिक, अमेरिकी डॉलर विश्व की सर्वाधिक लोकप्रिय अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा है। आँकड़ों के मुताबिक, 2019 की पहली तिमाही तक विश्व के सभी ज्ञात केंद्रीय बैंकों के कुल विदेशी मुद्रा भंडार का 61 प्रतिशत हिस्सा अमेरिकी डॉलर का है।
- अमेरिका डॉलर के बाद यूरो को सबसे लोकप्रिय अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा माना जाता है, विदित हो कि वर्ष 2019 की पहली तिमाही तक विश्व के सभी केंद्रीय बैंकों के कुल विदेशी मुद्रा भंडार का 20 प्रतिशत हिस्सा यूरो का है।
- गौरतलब है कि वर्ष 2010 से जापानी येन (Yen) डॉलर वैश्विक मुद्रा क्यों? की आरक्षित मुद्रा के रूप में भूमिका में 5.4 प्रतिशत की गिरावट आई है, जबकि चीनी युआन (Yuan) और अधिक महत्त्वपूर्ण हो गया है, यद्यपि यह अभी मात्र 2 प्रतिशत का ही प्रतिनिधित्व करता है।
डॉलर के विकास की कहानी
- उल्लेखनीय है कि पहला अमेरिकी डॉलर वर्ष 1914 में फेडरल रिज़र्व बैंक द्वारा छापा गया था। 6 दशकों से कम समय में ही अमेरिकी डॉलर एक अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा के रूप में उभर कर सामने आ गया, हालाँकि डॉलर के लिये इतने कम समय में ख्याति हासिल करना शायद आसान नहीं था।
- यह वह समय था जब अमेरिकी अर्थव्यवस्था ब्रिटेन को पछाड़ते हुए विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभर रही थी, परंतु ब्रिटेन अभी भी विश्व का वाणिज्य केंद्र बना हुआ था क्योंकि उस समय तक अधिकतर देश ब्रिटिश पाउंड के माध्यम से ही लेन -देन कर रहे थे।
- साथ ही कई विकासशील देश अपनी मुद्रा विनिमय में स्थिरता लाने के लिये उसके मूल्य का निर्धारण सोने (Gold) के आधार पर कर रहे थे
- इस व्यवस्था को ब्रेटन वुड्स समझौते के नाम से जाना जाता है।
डॉलर दुनिया की सबसे मज़बूत मुद्रा क्यों मानी जाती है?
एक समय था जब एक अमेरिकी डॉलर सिर्फ 4.16 रुपये में खरीदा जा सकता था, लेकिन इसके बाद साल दर साल रुपये का सापेक्ष डॉलर महंगा होता जा रहा है अर्थात एक डॉलर को खरीदने के लिए अधिक डॉलर खर्च करने पास रहे हैं. ज्ञातव्य है कि 1 जनवरी 2018 को एक डॉलर वैश्विक मुद्रा क्यों? डॉलर का मूल्य 63.88 था और 18 फरवरी, 2020 को यह 71.39 रुपये हो गया है. आइये इस लेख में जानते हैं कि डॉलर दुनिया में सबसे मजबूत मुद्रा क्यों मानी जाती है?
दुनिया का 85% व्यापार अमेरिकी डॉलर की मदद से होता है. दुनिया भर के 39% क़र्ज़ अमेरिकी डॉलर में दिए जाते हैं और कुल डॉलर की संख्या के 65% का इस्तेमाल अमरीका के बाहर होता है. इसलिए विदेशी बैंकों और देशों को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में डॉलर की ज़रूरत होती है. आइये इस लेख के माध्यम से जानते हैं कि आखिर डॉलर को विश्व में सबसे मजबूत मुद्रा के रूप में डॉलर वैश्विक मुद्रा क्यों? क्यों जाना जाता है?
डॉलर इंडेक्स के इतिहास पर नजर
1973 में अमेरिका की सेंट्रल बैंक यूएस फेडरल रिज़र्व ने डॉलर इंडेक्स की शुरुआत की थी और उसका आधार (बेस) 100 रखा था। तब से लेकर आज तक डॉलर इंडेक्स में सिर्फ एक बार परिवर्तन किया डॉलर वैश्विक मुद्रा क्यों? गया है जब यूरोप के सभी देशों ने मिलकर एक साझा मुद्रा का चलन शुरू किया था। फ्रांसीसी फ्रैंक, जर्मन मार्क, इटालियन लीरा, डच गिल्डर और बेल्जियम फ्रैंक आदि के डॉलर वैश्विक मुद्रा क्यों? स्थान पर यूरोप की साझा मुद्रा यूरो को इंडेक्स में सम्मिलित किया गया था। शुरुआत के समय से ही लेकर अब तक डॉलर इंडेक्स 90 से 110 अंकों के बीच बना रहा है। इसका उच्चतम स्तर 1984 में 165 अंकों के साथ था। 2007 में मंदी के दौर में इसका न्यूनतम स्तर आया 70 अंकों का था।
पूरी दुनिया की नज़र जिस इंडेक्स पर बनी रहती है। इसका सबसे बड़ा कारण है अंतरराष्ट्रीय कारोबार अमेरिकी डॉलर में किया जाता है। यूएस फेड के जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार 1999 से लेकर 2019 के बीच अमेरिकी महाद्वीप में 96% कारोबार डॉलर में हुआ था। यूएस फेड की मानें तो 2021 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देशों द्वारा घोषित किए गए कुल विदेशी मुद्रा भंडार का 60% भाग अमेरिकी डॉलर का है।
US Dollar Index Explained (USDX / DXY)
Importance of Dollar Index: जब भी अंतरराष्ट्रीय कारोबार की चर्चा होती है तो डॉलर इंडेक्स का आकलन जरूर होता है। फिर चाहे उसमें यूरोपीय यूरो या पाउंड के चढ़ने-उतरने की बात हो, रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद बाजार में मंदी की बात हो, चीन और रूस की आर्थिक स्थिति की बात हो या फिर अन्य विदेशी मुद्राओं के फिसलने और उछलने की बात हो जब भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बाजार में मुद्रा (करेंसी) के बारे में कोई भी चर्चा हो। आइए जानते हैं कि अमेरिकी मुद्रा या डॉलर इंडेक्स सभी कारोबारियों के लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
डॉलर इंडेक्स सिर्फ अमेरिकी मुद्रा ही नहीं बल्कि दुनिया की 6 प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की मजबूती आर कमजोरी के आकलन का इंडेक्स है। इन 6 अलग-अलग करेंसियों में उन देशों की मुद्राएँ सम्मिलित हैं जो अमेरिका कारोबार में डॉलर वैश्विक मुद्रा क्यों? भागीदार हैं। इन 6 मुद्राओं में, यूरो, ब्रिटिश पाउंड, स्वीडिश क्रोना, स्विस फ्रैंक आदि यूरोपीय मुद्राएँ शामिल हैं, साथ ही जापानी येन और कनाडाई डॉलर भी सम्मिलित हैं।
क्यों आती है रुपये में कमजोरी, डॉलर से ही क्यों होती है तुलना
Dollar Vs Rupee: रुपये में कमजोरी कई वजह से होती है। इसका सबसे आम कारण है डॉलर की डिमांड बढ़ जाना। अंतरराष्ट्रीय बाजार में होने वाली किसी भी उथल-पुथल से निवेशक घबराकर डॉलर खरीदने लगते हैं। डॉलर वैश्विक मुद्रा क्यों? ऐसे में डॉलर की मांग बढ़ जाती है और बाकी मुद्राओं में गिरावट शुरू हो जाती है। शेयर बाजार की उथल-पुथल का भी रुपये की कीमत पर असर होता है।
रुपये की तुलना डॉलर से ही क्यों
वैश्विक स्तर पर अधिकांश मुद्राओं की तुलना डॉलर से होती है। रुपये की डॉलर से ही तुलना क्यों होती है? इस सवाल का जवाब छिपा है द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुए ‘ब्रेटन वुड्स एग्रीमेंट’ में। इस समझौते में न्यूट्रल ग्लोबल करेंसी बनाने का प्रस्ताव रखा गया था।
विस्तार
रुपये की गिरावट पर बोलते हुए भारतीय स्टेट बैंक के अध्यक्ष दिनेश खारा ने कहा कि डॉलर सूचकांक के मजबूत होने के कारण भारतीय रुपया अनिवार्य रूप से कमजोर हुआ है लेकिन अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राओं की तुलना में इसकी पकड़ अच्छी है। ग्लोबल मार्केट में मजबूती और कच्चे तेल की कीमतों में डॉलर वैश्विक मुद्रा क्यों? गिरावट के बीच शुक्रवार को रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 82.19 पर बंद हुआ।
खारा ने कहा कि भारतीय रुपया काफी अच्छा कर रहा है। उन्होंने कहा, "हमसे बेहतर केवल डॉलर वैश्विक मुद्रा क्यों? इंडोनेशिया और ब्राजील हैं। जो आम तौर पर एक कमोडिटी आधारित अर्थव्यवस्था हैं। इसलिए केवल दो मुद्राएं हैं जिन्होंने हमसे बेहतर प्रदर्शन किया।"
उन्होंने कहा, "रुपये में कमजोरी का मुख्य कारण अनिवार्य रूप से डॉलर इंडेक्स का मजबूत होना है।
भारतीय स्टेट बैंक के अध्यक्ष दिनेश खारा ने कहा कि वैश्विक मंदी जिसकी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक की ओर से आशंका जताई जा रही है, भारत में अन्य देशों की तुलना में अधिक असर नहीं छोड़ेगा।
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