और इसके अतिरिक्त विशिष्ट कार्य करने के लिए विशिष्ट कारक उपस्थित होते हैं
स्वॉट विश्लेषण क्या होता है
एक छात्र के रुप में सफल होने के लिए आपको एक विशेष रणनीति की आवश्यकता होती है। रणनीतिक निर्णय लेते समय, विचार करने के लिए बहुत सारे कारक होते हैं। संबंधित परिस्थितियों, विकल्पों और आंकड़ों से अभिभूत होना आसान है। स्वॉट आंतरिक विशलेषण है। इसकी सहायता से हम अपनी खुबियों, कमजोरियों, अवसरों और चुनौतियों के बारे में जान सकते है । इसमें हमें अपने आप से कुछ सवाल पुछकर उनका उत्तर देना है। सामान्य तौर पर यह पाया गया है कि जितनी आसानी से हम दुसरों की कमियों और खुबियों का मुल्यांकन कर सकते उतनी आसानी कारक विश्लेषण तकनीक से स्वयं का मुल्यांकन नहीं कर पाते है। परन्तु ये बात भी सच है कि जितनी सटीकता और वास्तविकता से हम अपना मुल्यांकन कर सकते है ऐसा ओर कोई दूसरा व्यक्ति नहीं कर सकता है। हमारी खुबियां और कमियां हम से बेहतर भला और कौन जान सकता है ?
स्वॉट (SWOT) में व्यवसाय उद्यम या परियोजना का लक्ष्य उल्लिखित करना और आंतरिक और बाह्य कारक, जो उस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अनुकूल और प्रतिकूल हैं, उनको पहचानना शामिल है। एसडब्ल्यूओटी ये चार श्रेणियां वर्णन करती हैं कि क्या निर्णय का एक पहलू नकारात्मक या सकारात्मक है, और क्या यह संगठन के लिए बाहरी या आंतरिक है। गहन स्वॉट विश्लेषण ध्वनि रणनीतिक योजना की रीढ़ हो सकती है। आप सही रुप से स्वॉट का अनुसरण करके अपने करियर को एक नई दिशा दे सकते हैं। स्वॉट ना केवल आपकी कमजिरयों औऱ शक्तियों को बताता है बल्कि यह आपको भय और आप क्या करना चाहते हैं उसे भी बताता है। आपको आपके लक्ष्य के प्रति एकाग्र करने में स्वॉट अहम भूमिका अदा करता है।
स्वॉट का मूल्याकंन कैसे करें
एक अच्छा SWOT विश्लेषण सही प्रश्न पूछने से शुरू होता है। नीचे एक खाका है जिसे आपने अपने स्वॉट विश्लेषण पर शुरू किया है। जैसे कि आप इसे पूरा करते समय अपने आप से निम्नलिखित प्रश्न पूछने का प्रयास करें, और उपयुक्त सेल में प्रत्येक के लिए सबसे मुख्य जवाब की कल्पना करें। जितना हो सके, दिमाग पर जोर डालें। प्रत्येक चतुर्थांश के लिए चार या पांच वस्तुओं पर ध्यान देने की कोशिश करें। इसके अलावा, विशिष्ट और ठोस रहें, अस्पष्ट बयानों से बचें।
SWOT स्वॉट विश्लेषण इतना प्रभावशाली होता है कि इससे आपको नए करियर के अवसर ढूंढ़ने में सहायता मिल सकती है और आप अच्छी तरह से इनका उपयोग कर सकते हैं। साथ ही आप अपने आप के कमजोर बिंदुओं को समझकर, बिना निष्क्रिय रहे इन जोखिमों को संभाल सकते हैं और इनका निवारण कर सकते हैं। सबसे पहले एक पेन और कागज साथ में लें और किसी एकान्त और शांत जगह पर चले जाएं । यह शांत जगह आपका कमरा, छत, कुछ भी हो सकती है । अब कागज को चार बराबर हिस्सों में बांट लें और उसके चार भागों में अंग्रजी के अक्षर S (Strengths) ताकत, W (Weaknesses) कमजोरियां, O (Opportunities) अवसर और T (Threats) खतरें को लिखें । इसमें से पहले और तीसरे हिस्से वाली चीजें आपके लिए उपयोगी है तथा दुसरे और चौथे हिस्से वाली चीजें कि नुकसानदायी हो सकती है।
स्पीयरमेन का द्विकारक सिद्धांत Spearman’s Two Factor Theory
स्पीयरमेन एक ब्रिटेन मनौवैज्ञानिक थे जिन्होने 1904 में बुद्धि के द्विकारक सिद्धांत का वर्णन किया। इनका जन्म 10 फरवरी 1863 तथा मृत्यु 17 सितंबर 1945 हुवा। उन्होने बुद्धि के विषय में कारक विश्लेषण तकनीक बहुत से प्रयोग किए। जो निम्नलिखित है :
उन्होने कारक विश्लेषण के द्वारा कई प्रयोगात्मक विश्लेषण किये और इन अंकड़ो कारक विश्लेषण तकनीक का विश्लेषण कर के ये बताया की बुद्धि दो संरचनाओ का मूल है यानी बुद्धि में दो प्रकार के कारक होते हैं
बुद्धि की संरचना में एक कारक सामान्य तत्व होता है जिसे ( G – Factor ) और दुसरा विशिष्ट कारक (S – Factor) कहा जाता है।
सामान्य तत्व – ये सभी प्रकार की मानासिक क्रियाओ कारक विश्लेषण तकनीक के मूल हैं।
सामान्य तत्व ( General Factor/ G – कारक ) की सही विशेषताएं होती है
- स्पीयरमेन का मना है की G – कारक को मानासिक ऊर्जा कहा है, अर्थत सभी मानासिक कार्य को करने के लिए G कारक की उपस्थिति अनिवार्य है, और ये उपस्थिति अलग अलग व्यक्तियों में अलग अलग हो सकती है।
- यह कारक जन्म जात एवं अपरिवर्तनीय हैै अर्थात यह कारक जीन द्वारा हमें जन्म से मिलता है। और G कारक पर किसी भी कारक विश्लेषण तकनीक तरह की शिक्षण प्रक्षिक्षण और पूर्व अनुभूति का प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि यह कारक वंनशानुक्त है यह हमें जन्म से प्राप्त हुआ है।
- प्रत्येक व्यक्ति में G – कारक को मात्रा निश्चित है परन्तु इसका मतलब ये नही है कि सभी व्यक्तियों मे यह बराबर है प्रत्येक व्यक्ति में इस कारक की मात्रा अलग अलग हो सकती है, अर्थात किसी में, मानासिक कार्य करने की क्षमता अधिक भी हो सकती है और किसी में कम भी।
- G – कारक एक विषय से दूसरे विषय में स्थांतरित भी हो सकता है।
विशिष्ट कारक की विशेषताएं :
- S – कारक का स्वरूप परिवर्तनशील है। अर्थत एक मानसिक क्रिया अगर कोई व्यक्ति अगर गाना गा रहा है तो उस मे S – कारक अधिक हो सकता है, परन्तु हो सकता है, उस में पेंटिंग के लिए S – कारक काम हो ।
- विशिष्ट कारक में यह जन्मजात ना होकर अर्जित होता है, जैसा हमने कहा G कारक अनुवांशिक है, यह जन्मजात है, यह हमे अनुवांशिक रूप से मिल रहा है। पर विशिष्ट कारक जन्मजात नही कारक विश्लेषण तकनीक है ये अर्जित किया जाता है। अर्थत इसे शिक्षण या पूर्व अनुभूतियों द्वारा इसे बढ़ा सकते हैं। जैसे हम ट्रेनिंग देकर पेंटर बना सकते है।
3.व्यक्ति में जिस विषय से सम्बंधित S – कारक होता है, उसी से सम्बंधित कुशलता में वह विशेष सफतता प्राप्त करता है।
इसका उदाहरण लता मंगेशकर से ले सकते है G कारक तो उपस्थित था ही साथ में गान के लिए S कारक विशिष्ट रूप से था। जिस से गान में उन्हें सफलता प्राप्त हुई।
SWOT स्वोट विश्लेषण क्या है? स्वोट विश्लेषण की विशेषताएँ
स्वोट विश्लेषण किसी विशेष परिस्थिति को मूल्यांकित करने की विश्लेषणात्मक प्रविधि है। स्वोट (SWOT) चार शब्दों का संक्षिप्त रूप है। S से तात्पर्य Strength अर्थात् शक्तिया, W से Weakness कमजोरिया, O से Opportunities अवसर तथा T से Threats चुनौतिया। किसी भी परिस्थिति के ये चार पक्ष होते हैं जो उसका समग्र विश्लेषण करने के लिए आवश्यक हैं। विभिन्न प्रकार के व्यावसायिक प्रबंधन के साथ-साथ शैक्षिक प्रबंधन में भी इसका महत्व बढ़ गया है।
स्वोट (SWOT) के चार पक्षों में से दो पक्ष, अवसर तथा चुनौतिया बां कारक कारक विश्लेषण तकनीक हैं, जबकि शक्तिया तथा कमजोरिया आन्तरिक कारक हैं। शैक्षिक प्रबंधन तथा नियोजन की रणनीतियों में SWOT विश्लेषण की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
किसी भी संगठन के समुचित विकास के लिए नियमित मूल्यांकन (continuous evaluation) आवश्यक है। वस्तुत: मूल्यांकन समग्र प्रबंधन प्रक्रिया का अविभाज्य अंग है। समुचित, वैध एवं विश्वसनीय मूल्यांकन किसी भी संगठन का सुदृढ़ आधर है, जिस पर किसी भी संगठन का भावी विकास निर्भर करता है।
SWOT स्वोट विश्लेषण की विशेषताएँ
- इसके आधर पर विद्यालयों में प्रशासनिक सिद्धांतों का प्रयोग किया जा सकता है।
- इसके आधर पर प्रशासक सहज ही अनुमान लगा लेते हैं कि विद्यालय प्रणाली की उप-प्रणालियों में कहा क्या कमी है व इसे केसे दूर किया जा सकता है।
- जो प्रबंधक, प्रणाली के दृष्टिकोण से संगठन में आने वाली समस्याओं को देखता है, वह आसानी से समस्या-समाधन के विकल्पों का पता लगा लेता है।
- प्रबंधक समस्या या विद्यालय पर डालने वाले प्रभावों (यथा संस्थागत, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक व सांस्कृतिक) का विश्लेषण कर पाता है।
- यह एक ऐसा ढांचा है जिसके आधर पर शिक्षा जैसे जटिल संगठनों की समस्याओं को नियंत्रित किया जा सकता है तथा भविष्य में संबंध में निर्णय लिया जा सकता है।
- यह एक नया दृष्टिकोण प्रदान करता है कि फ्प्रबंधक एक समग्र प्रणाली के कार्य कर रहा है।
- यह पूर्व प्रबंध-नौकरशाही मान्यताओं के विपरीत, विद्यालय संगठन को एक गतिमान, परस्पर क्रियापूर्ण व तर्कसंगत व्यापक प्रणाली मान कर चलता है।
- इसके आधर पर शैक्षिक समस्याओं की पहचान कर उनका समाधन ढूढा जा सकता है, चाहे ये समस्याए गिरते शैक्षिक स्तर, अनुशासन या अन्य किसी भी प्रकार की क्यों न हों। यही कारण है कि अनेक विद्वानों, यथा- कूट्ज तथा ओडोनेल (Koontz and O’Donnel, 1976) ह्यूज तथा बोडिच (Huse and Bowdetch, 1977) एवं वुड निकल्सन तथा पिफन्डले (Wood Nicholson and Findley, 1979)
स्पीयरमेन का द्विकारक सिद्धांत Spearman’s Two Factor Theory
स्पीयरमेन एक ब्रिटेन मनौवैज्ञानिक थे जिन्होने 1904 में बुद्धि के द्विकारक सिद्धांत का वर्णन किया। इनका जन्म 10 फरवरी 1863 तथा मृत्यु 17 सितंबर 1945 हुवा। उन्होने बुद्धि के विषय में बहुत से प्रयोग किए। जो निम्नलिखित है :
उन्होने कारक विश्लेषण के द्वारा कई प्रयोगात्मक विश्लेषण किये और इन अंकड़ो का विश्लेषण कर के ये बताया की बुद्धि दो संरचनाओ का मूल है यानी बुद्धि में दो प्रकार के कारक होते हैं
बुद्धि की संरचना में एक कारक सामान्य तत्व होता है जिसे ( G – Factor ) और दुसरा विशिष्ट कारक (S – Factor) कहा जाता है।
सामान्य तत्व – ये सभी प्रकार की मानासिक क्रियाओ के कारक विश्लेषण तकनीक मूल हैं।
सामान्य तत्व ( General Factor/ G – कारक ) की सही विशेषताएं होती है
- स्पीयरमेन का मना है की G – कारक को मानासिक ऊर्जा कहा है, अर्थत सभी मानासिक कार्य को करने के लिए G कारक की उपस्थिति अनिवार्य है, और ये उपस्थिति अलग अलग व्यक्तियों में अलग अलग हो सकती है।
- यह कारक जन्म जात एवं अपरिवर्तनीय हैै अर्थात यह कारक जीन द्वारा हमें जन्म से मिलता है। और G कारक पर किसी भी तरह की शिक्षण प्रक्षिक्षण और पूर्व अनुभूति का प्रभाव नहीं पड़ता क्योंकि यह कारक वंनशानुक्त है यह हमें जन्म से प्राप्त हुआ है।
- प्रत्येक व्यक्ति में G – कारक को मात्रा निश्चित है परन्तु इसका मतलब ये नही है कि सभी व्यक्तियों मे यह बराबर है प्रत्येक व्यक्ति में इस कारक की मात्रा अलग अलग हो सकती है, अर्थात किसी में, मानासिक कार्य करने की क्षमता अधिक भी हो सकती है और किसी में कम भी।
- G – कारक एक विषय से दूसरे विषय में स्थांतरित भी हो सकता है।
विशिष्ट कारक की विशेषताएं :
- S – कारक का स्वरूप परिवर्तनशील है। अर्थत एक मानसिक क्रिया अगर कोई व्यक्ति अगर गाना गा रहा है तो उस मे S – कारक अधिक हो सकता है, परन्तु हो सकता है, उस में पेंटिंग के लिए S – कारक काम हो ।
- विशिष्ट कारक में यह जन्मजात ना होकर अर्जित होता है, जैसा हमने कहा G कारक अनुवांशिक है, यह जन्मजात है, यह हमे अनुवांशिक रूप से मिल रहा है। पर विशिष्ट कारक जन्मजात नही है ये अर्जित किया जाता है। अर्थत इसे शिक्षण या पूर्व अनुभूतियों द्वारा इसे बढ़ा सकते हैं। जैसे हम ट्रेनिंग देकर पेंटर बना सकते है।
3.व्यक्ति में जिस विषय से सम्बंधित S – कारक होता है, उसी से सम्बंधित कुशलता में वह विशेष सफतता प्राप्त करता है।
इसका उदाहरण लता मंगेशकर से ले सकते है G कारक तो उपस्थित था ही साथ में गान के लिए S कारक विशिष्ट रूप से था। जिस से गान में उन्हें सफलता प्राप्त हुई।
कारक विश्लेषण तकनीक
उमाशंकर मिश्र
प्र दूषण जैसे पर्यावरणीय कारक मनुष्य के स्वास्थ्य, प्रतिरक्षात्मक व्यवहार और पारिस्थितिक तंत्र के जीनोम को प्रभावित करते हैं। इस प्रक्रिया में कई भौतिक, रासायनिक या फिर जैविक एजेंट आनुवंशिक रूपांतरणों का कारण बनकर उभरते हैं। इस तरह के आनुवांशिक बदलावों के लिए जिम्मेदार इन एजेंट्स को म्यूटेजेन कहते हैं, जो कैंसर जैसे रोगों को जन्म देने के लिए जाने जाते हैं।
रासायनिक तत्व, पराबैंगनी अथवा एक्स-रे विकिरण जैसे एजेंट्स म्यूटजेन के कुछेक उदाहरण हैं। “अधिकतर मामलों में इस तरह के परिवर्तनों के पीछे निहित कारणों को निर्धारित करना एक चुनौती के रूप में देखी गई है। हालांकि, यह स्पष्ट है कि पर्यावरणीय बदलाव मनुष्यों के साथ-साथ वनस्पतियों और अन्य जीवों पर भी प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं। इसलिए, रासायनिक एजेंटों का सुरक्षित उपयोग और निपटान सुनिश्चित करना जरूरी है।”
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