महादेव मेला हर साल महा शिवरात्रि के अवसर पर आयोजित किया जाता है। पिन बार सेटअप आकार दूर-दूर से लोग चौरागढ़ पचमढ़ी में महादेव की पूजा करने आते हैं। यह कहावत है कि महादेव जाने से पहले, भूर भगत (छिंदवाड़ा) को पार करना आवश्यक है। भूर भगत के पीछे एक कहानी है।बताया जाता है भूरा बचपन से ही प्रभु की आराधना में लीन रहते थे। एक बार भजन के दौरान वे समाधि में चले गए। चौबीस घंटे बाद उनकी समाधि टूटी। उसके बाद वे घर त्यागकर प्रभु की भक्ति में लीन हो गए। किवदंतियों के अनुसार चौरागढ़ की पहाडि़यों में साधना के दौरान महादेव के दर्शन उन्हें हुए।
महादेव से उन्होंने वरदान मांगा कि मैं आपके ही चरणों में रहूं और यहां आने वाले को आपका मार्ग बता सकूं। भूराभगत में एक शिला के रूप में वे मौजूद हैं। संत भूराभगत की प्रतिमा एेसे स्थान पर विराजमान है जिसे देखने से अनुमान लगता है मानों भगवान भोलेनाथ के मुख्यद्वार पर द्वारपाल की तरह वे बैठे हों। उसी के कारण यहां भी मेला भरता है। गुलाल, सिंदूर, कपूर, खारक, सुपारी और बड़े त्रिशूल भक्त यहां चढ़ाते है।

महादेव मेला

जिले के बारे में

शहडोल जिला मध्य प्रदेश के उत्तर पिन बार सेटअप आकार पूर्वी भाग में स्थित है। 15‐8-2003 को जिले के विभाजन के कारण, जिले का क्षेत्र 5610 वर्ग किलोमीटर बना हुआ है। यह राज्य में क्षेत्रफल की दृष्टि से सभी जिलों में 23 वें स्थान पर है। यह दक्षिण पूर्व में अनूपपुर, उत्तर में सतना और सीधी और पश्चिम में उमरिया से घिरा हुआ है। यह जिला 110 किलोमीटर तक फैला हुआ है। पूर्व से पश्चिम और 170 कि.मी. उत्तर से दक्षिण तक। यह जिला 22o 52 ‘उ. अक्षांश से 25o 41’उ. अक्षांश और 80o 10’देशांतर से 82o 12’ पू. देशांतर के बीच स्थित है।
जिला शहडोल मुख्यतः पहाड़ी जिला है। यह एसएलपी और मिश्रित जंगलों के कुछ जेब और बेल्ट के साथ गड्ढे वाला है। जिले का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 6205 वर्ग किमी है। किमी। जिला शहडोल के निकटवर्ती जिले डिंडोरी, सतना, पिन बार सेटअप आकार सीधी, उमरिया, अनूपपुर और रीवा हैं।

शारीरिक रूप से, संरचनात्मक भू-आकृतियाँ, जिनका अर्थ पठार और निम्न पिन बार सेटअप आकार स्तर के मैदानी समुद्र तल से 450 मीटर से 500 मीटर की ऊँचाई के साथ निचले मैदान हैं, जिले के उत्तरी, उत्तरी पूर्वी और उत्तर पश्चिमी और मध्य भागों में विकसित होते हैं। जिले के दक्षिणी भाग में, माईकल रेंज की पहाड़ियाँ और ऊँचाइयाँ और उच्च से मध्यम स्तर (500 मी से 990 मी) पठार और सपाट शीर्ष, छतों की तरह कदम विकसित किए जाते हैं। बाढ़ के मैदानों का प्रतिनिधित्व करने वाले जलोढ़ भूमि फार्म जिले की पश्चिमी सीमा के साथ मौजूद हैं। जिले के दक्षिणी भाग में सतपुड़ा पहाड़ियों में सिंगिंगगढ़ हिल (23 ° 03’40 “: 81 ° 27’37”) पर समुद्र तल से क्षेत्र की अधिकतम ऊंचाई 1123 मी है।

जिले के बारे में

चंपारण बिहार प्रान्त का एक जिला था। अब पूर्वी चंपारण और पश्चिमी चंपारण नाम के दो जिले हैं। भारत और नेपाल की सीमा से लगा यह क्षेत्र स्वाधीनता संग्राम के दौरान काफी सक्रिय रहा है। महात्मा गाँधी ने अपनी मशाल यहीं से अंग्रेजों के खिलाफ नील आंदोलन से जलायी थी। बेतियापश्चिमी चंपारण का जिला मुख्यालय है और मोतिहारी पूर्वी चम्पारण का। चंपारण से ३५ किलोमीटर दूर दक्षिण साहेबगंज-चकिया मार्ग पर लाल छपरा चौक के पास अवस्थित है प्राचीन ऐतिहासिक स्थल केसरिया। यहाँ एक वृहद् बौद्धकालीन स्तूप है जिसे केसरिया स्तूप के नाम से जाना जाता है।

चंपारण बिहार के तिरहुत प्रमंडल के अंतर्गत भोजपुरी भाषी जिला है। हिमालय के तराई प्रदेश में बसा यह ऐतिहासिक जिला जल एवं वनसंपदा से पूर्ण है। चंपारण का नाम चंपा + अरण्य से बना है जिसका अर्थ होता है- चम्‍पा के पेड़ों से आच्‍छादित जंगल। बेतिया जिले का मुख्यालय शहर हैं। बिहार का यह जिला अपनी भौगोलिक विशेषताओं और इतिहास के लिए विशिष्ट स्थान रखता है। महात्मा गाँधी ने यहीं से अंग्रेजों के खिलाफ नील आंदोलन से सत्याग्रह की मशाल जलायी थी।

धरातलीय संरचना

हिमालय की तलहठी में बसे पश्चिमी चम्‍पारण की धरातलीय बनावट में कई अंतर स्पष्ट दिखाई देते हैं। सबसे उत्तरी हिस्सा सोमेश्वर एवं दून श्रेणी है जहाँ की मिट्टी में शैल-संरचना का अभाव है और सिंचाई वाले स्थान पर भूमि कृषियोग्य है। यह सोमेश्वर श्रेणी से सटा तराई क्षेत्र है जो थारू जनजाति का निवास स्थल है। हिमालय के गिरिपाद क्षेत्र से रिसकर भूमिगत हुए जल के कारण तराई क्षेत्र को यथेष्ट आर्द्रता उपलब्ध है इसलिए यहाँ दलदली मिट्टी का विस्तार है। तराई प्रदेश से हटने पर समतल और उपजाऊ क्षेत्र मिलता है जिसे सिकरहना नदी (छोटी गंडक) दो भागों में बाँटती है। उत्तरी भाग में भारी गठन वाली कंकरीली पुरानी जलोढ मिट्टी पाई जाती है जबकि दक्षिण हिस्सा चूनायुक्त अभिनव जलोढ मिट्टी से निर्मित है और गन्ने की खेती के लिए अघिक उपयुक्त है। उत्तरी भाग में हिमालय से उतरने वाली कई छोटी नदियाँ सिकरहना में मिलती है। दक्षिणी भाग अपेक्षाकृत ऊँचा है लेकिन यहाँ बड़े-बड़े चौर भी मिलते है। सदावाही गंडक, सिकरहना एवं मसान के अलावे पंचानद, मनोर, भापसा, कपन आदि यहाँ की बरसाती नदियाँ है।

जलवायु

अपने पड़ोसी जिलों की तुलना में पश्चिमी चंपारण की जलवायु शीतल एवं आर्द्र है। हिमालय से आनेवाली ठंडी हवाओं के कारण यहाँ सर्दी अधिक होती है। गर्मी में तापमान ४३० सेंटीग्रेड तक पहुँच जाता है। जून के अंत में मॉनसूनी वर्षा आरंभ हो जाती है। तराई क्षेत्र में सालाना १४० मिमी से अधिक वर्षा होती है। उत्तरी भाग में होनेवाली तीव्र वर्षा कई बार आवागमन में अवरोध का कारण बनता है।

अनुमंडलः 1. बेतिया 2. बगहा 3.नरकटियागंज
प्रखंडः गौनहा, चनपटिया, जोगापट्टी, ठकराहा, नरकटियागंज, नौतन, पिपरासी, बगहा-१, बगहा-२, बेतिया, बैरिया, भितहा, मधुबनी, मझौलिया, मैनाटांड, रामनगर, लौरिया, सिकटा
पंचायतों की संख्या: 315
गाँवों की संख्या: 1483

महत्वपूर्ण व्यक्तित्व
राजकुमार शुक्ल
प्रजापति मिश्र
शेख गुलाब
केदार पाण्डेय
तारकेश्वर नाथ तिवारी
श्यामाकांत तिवारी
असित नाथ तिवारी
व्यापार एवं उद्योग
नेपाल से सड़क मार्ग द्वारा चावल, लकड़ी, मसाले का आयात होता है जबकि यहाँ से कपड़ा, पेट्रोलियम उत्पाद निर्यात किए जाते हैं। जिले तथा पड़ोस क नेपाल में वनों का विस्तार होने से लकड़ियों का व्यापार होता है। उत्तम किस्म की लकड़ियों के अलावे बेतिया के आसपास पिन बार सेटअप आकार बेंत मिलते हैं जो फर्नीचर बनाने के काम आता है। बगहा, बेतिया, चनपटिया एवं नरकटियागंज पिन बार सेटअप आकार व्यापार के अच्छे केंद्र है। जिले में कृषि आधारित उद्योग ही प्रमुख है। मझौलिया, बगहा, हरिनगर तथा नरकटियागंज में चीनी मिल हैं। कुटीर उद्योगों में रस्सी, चटाई तथा गुड़ बनाने का काम होता है।
शिक्षा एवं संस्कृति
प्राथमिक विद्यालय- १३४०
मध्य विद्यालय- २८४
उच्च विद्यालय- ६८
डिग्री महाविद्यालय- ३
औद्योगिक प्रशिक्षण केंद्र- १

पिन बार सेटअप आकार

ग्वालियर पुलिस मध्य प्रदेश राज्य के पुनर्गठन के बाद जिला ग्वालियर मैं प्रथम बार 1 नवम्बर १९५६ मे अपने नए लोकतान्त्रिक स्वरुप मे पुराने कानूनों के कवच मे आम जनता की सुरक्षा के लिए सामने आई , लगभग ५६ साल के सफ़र मे डकेती उन्मूलन समस्या के साथ साथ पुलिस ने ग्वालियर को सुरक्षा प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाहन किया |

पिन बार सेटअप आकार

दरभंगा जिले का गठन 1 जनवरी १८७५ को हुआ | दरभंगा 25.63 – 25′.27 उत्तर और ८५.४० – ८६.25 पूरब में अवास्थित है | इसके उत्तर में मधुबनी, दक्षिण में समस्तीपुर , पूरब में सहरसा तथा पश्चिम में सीतामढ़ी एवं मुजफ्फरपुर जिला है | इस जिले का भौगौलिक क्षेत्रफल २२७९.29 बर्ग किलोमीटर में है | वर्तमान में यह जिला तीन अनुमंडलों अंतर्गत 18 प्रखंडो /अंचलों में बंटा हुआ है |

वैदिक स्रोतों के मुताबिक आर्यों की विदेह शाखा ने अग्नि के संरक्षण में सरस्वती तट से पूरब में सदानीरा (गंडक) की ओर कूच किया और विदेह राज्य की स्थापना की। विदेह के राजा मिथि के नाम पर यह प्रदेश मिथिला कहलाने लगा। रामायणकाल में मिथिला के एक राजा जो जनक कहलाते थे, सिरध्वज जनक की पुत्री सीता थी।[1] विदेह राज्य का अंत होने पर यह प्रदेश वैशाली गणराज्य का अंग बना। इसके पश्चात यह मगध के मौर्य, शुंग, कण्व और गुप्त शासकों के महान साम्राज्य का हिस्सा रहा। १३ वीं सदी में पश्चिम बंगाल के मुसलमान शासक हाजी शम्सुद्दीन इलियास के समय मिथिला एवं तिरहुत क्षेत्रों का बँटवारा हो गया। उत्तरी भाग जिसके अंतर्गत मधुबनी, दरभंगा एवं समस्तीपुर का उत्तरी हिस्सा आता था, सुगौना के ओईनवार राजा कामेश्वर सिंह के अधीन रहा। ओईनवार राजाओं को कला, संस्कृति और साहित्य का बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है। कुमारिल भट्ट, मंडन मिश्र, गदाधर पंडित, शंकर, वाचास्पति मिश्र, विद्यापति, नागार्जुन आदि महान विद्वानों के लेखन से इस क्षेत्र ने प्रसिद्धि पाई। ओईनवार राजा शिवसिंह के पिता देवसिंह ने लहेरियासराय के पास देवकुली की स्थापना की थी। शिवसिंह के बाद यहाँ पद्मसिंह, हरिसिंह, नरसिंहदेव, धीरसिंह, भैरवसिंह, रामभद्र, लक्ष्मीनाथ, कामसनारायण राजा हुए। शिवसिंह तथा भैरवसिंह द्वारा जारी किए गए सोने एवं चाँदी के सिक्के यहाँ के इतिहास ज्ञान का अच्छा स्रोत है।
दरभंगा शहर १६ वीं सदी में दरभंगा राज की राजधानी थी। १८४५ इस्वी में ब्रिटिश सरकार ने दरभंगा सदर को अनुमंडल बनाया और १८६४ ईस्वी में दरभंगा शहर नगर निकाय बन गया।[2] १८७५ में स्वतंत्र जिला बनने तक यह तिरहुत के साथ था। १९०८ में तिरहुत के प्रमंडल बनने पर इसे पटना प्रमंडल से हटाकर तिरहुत में शामिल कर लिया गया। स्वतंत्रता के पश्चात १९७२ में दरभंगा को प्रमंडल का दर्जा देकर मधुबनी तथा समस्तीपुर को इसके अंतर्गत रखा गया।

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