भारतीय रुपये (र्) को मिली अंतरराष्ट्रीय पहचान
- भारतीय रुपये के चिन्ह (र्) से मतलब भारतीय रुपये (भारत की आधिकारिक मुद्रा) के लिए प्रयोग किया जानेवाला मुद्रा चिन्ह है।
- इसकी डिजाइन को भारत सरकार ने 15 जुलाई, 2010 को सार्वजनिक रूप से जारी किया था।
- अमेरिकी डॉलर, ब्रिटिश पाउंड, जापानी येन और यूरोपीय संघ के यूरो के बाद रुपया पांचवीं ऐसी मुद्रा है, जिसे उसके प्रतीक-चिह्न् (र्) से पहचाना जा रहा है।
गेहूं vs कैनेडियन डॉलर Today - गेहूं vs कैनेडियन डॉलर Chart
लाइव मूल्य चार्ट पर अलग अलग मुद्राओं, इंडेक्सेस, शेयरों, वस्तुओं और PCI सहित उपकरणों, के सैकड़ों पूरा डेटा प्रदान करते हैं। इसके बाद के संस्करण चार्ट मेनू में आप यंत्र की श्रेणी और इसकी आलेखीय प्रदर्शन के लिए साधन ही चुन सकते हैं। आप (1 मिनट से एक सप्ताह के लिए) करने के लिए अलग चार्ट समय सीमा का उपयोग चुन सकते हैं। प्रारंभ और समाप्ति समय सीमा के नीचे पैनल में ले जाकर तुम दोनों वर्तमान और यंत्र के ऐतिहासिक मूल्य आंदोलनों देख सकते हैं। इसके अलावा, आप चार्ट के ऊपरी बाएँ कोने में बटन के माध्यम से मूल्य चार्ट-मोमबत्ती या रेखाएँ चार्ट – के प्रदर्शन के प्रकार का चयन करने के लिए एक अवसर है.
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जानिए, शेरशाह सूरी ने सबसे पहले मुद्रा को रुपया कहा, बैंक नोट से शुरू हुआ था करेंसी नोट
ग्वालियर। भारत में हालांकि मुद्रा का सफर तो हजारों साल पुराना है, लेकिन पहला करेंसी नोट 1770 में 'बैंक ऑफ हिन्दुस्तान' नाम से एक निजी बैंक ने मुद्रा vs डॉलर विवरण सबसे पहले बैंक नोट के रूप में जारी किया था। इसके बाद 1770 से 1935 के बीच कई निजी बैंकों ने बैंक नोट जारी किए थे। हालांकि मुद्रा को रुपया नाम सबसे पहले शेरशाह सूरी ने दिया था। बैंक नोट से शुरू हुआ था देश में करेंसी नोट का चलन.
नकली होने की अफवाह में इन दिनों 10 रुपए का सिक्का बाजार से गायब हो रहा है, इस पर dainikbhaksr.com पर प्रस्तुत है, देश में करेंसी नोट के सफर पर रोचक जानकारी.
- नोट एक अंगरेजी शब्द है, जिसका अर्थ 'WRITTEN PROMICE' होता है. इसमें लिखा होता है कि मैं धारक को इतने रुपये अदा करने का वचन देता हूं।
- यह नोट लिख कर कोई बैंक जब किसी निर्धारित मूल्य के रुपये छाप कर कागजी रुपये जारी करता है, तो बैंक द्वारा जारी किये गये उन कागजी रुपयों को अंगरेजी में बैंक नोट कहा जाता है।
- रुपये के धारक को इसे अदा करने की बैंक की वचनबद्धता (लिखित वायदा) बैंक नोटों की पहचान है।
- पहला नोट बैंक ऑफ हिंदुस्तान से जारी होने के बाद पूर्वी भारत में बंगाल बैंक, कलकत्ता बैंक, कॉमर्शियल बैंक, यूनियन बैंक आदि प्रमुख निजी बैंकों ने बैंकनोट जारी किए।
- इसी तरह से दक्षिण भारत में कर्नाटक बैंक, एशियाटिक बैंक, गवर्नमेंट बैंक, बैंक ऑफ मद्रास आदि प्रमुख निजी बैंकों ने बैंक नोट मुद्रा vs डॉलर विवरण जारी किए। पश्चिमी भारत में भी बैंक ऑफ बंबई, ओरिएंटल बैंक, कॉमर्शियल बैंक ऑफ इंडिया आदि प्रमुख निजी बैंकों ने बैंक नोट जारी किया था.
फॉरेन एक्सचेंज मार्केट क्या होता है?
आसान भाषा में कहें तो फॉरेन एक्सचेंज एक अंतरराष्ट्रीय बाजार है जहां दुनियाभर की मुद्राएं खरीदी और बेची जाती हैं. यह बाजार डिसेंट्रलाइज्ड होता है. यहां एक निश्चित रेट पर एक करेंसी के बदले दूसरी करेंसी खरीदी या बेची जाती है. दोनों करेंसी जिस भाव पर खरीदी-बेची जाती है उसे ही एक्सचेंज रेट कहते हैं. यह एक्सचेंज रेट मांग और आपूर्ति के सिंद्धांत के हिसाब से घटता-बढ़ता रहा है.
करेंसी का डिप्रीशीएशन तब होता है जब फ्लोटिंग एक्सचेंज रेट पर करेंसी की कीमत घटती है. करेंसी का डिवैल्यूऐशन तब होता है जब कोई देश जान बूझकर अपने देश की करेंसी की कीमत को घटाता है. जिसे मुद्रा का अवमूल्यन भी कहा जाता है. उदाहरण के तौर पर चीन ने अपनी मुद्रा का अवमूल्यन किया. साल 2015 में People’s Bank of China (PBOC) ने अपनी मुद्रा चीनी युआन रेनमिंबी (CNY) की कीमत घटाई.<
मुद्रा का अवमूल्यन क्यों किया जाता है?
करेंसी की कीमत घटाने से आप विदेश में ज्यादा सामान बेच पाते हैं. यानी आपका एक्सपोर्ट बढ़ता है. जब एक्सपोर्ट बढ़ेगा तो विदेशी मुद्रा ज्यादा आएगी. आसान भाषा में समझ सकते हैं कि एक किलो चीनी का दाम अगर 40 रुपये हैं तो पहले एक डॉलर में 75 रुपये थे मुद्रा vs डॉलर विवरण तो अब 80 रुपये हैं. यानी अब आप एक डॉलर में पूरे दो किलो चीनी खरीद सकते हैं. यानी रुपये की कीमत गिरने से मुद्रा vs डॉलर विवरण विदेशियों को भारत में बना सामान सस्ता पड़ेगा जिससे एक्सपोर्ट बढ़ेगा और मुद्रा vs डॉलर विवरण देश में विदेशी मुद्रा भंडार भी बढ़ेगा.
डॉलर की कीमत सिर्फ रुपये के मुकाबले ही नहीं बढ़ रही है. डॉलर की कीमत दुनियाभर की सभी करेंसी के मुकाबले बढ़ी है. अगर आप दुनिया के टॉप अर्थव्यवस्था वाले देशों से तुलना करेंगे तो देखेंगे कि डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत उतनी नहीं गिरी है जितनी बाकी देशों की गिरी है.
यूरो डॉलर के मुकाबले पिछले 20 साल के न्यूनतम स्तर पर है. कुछ दिनों पहले एक यूरो की कीमत लगभग एक डॉलर हो गई थी. जो कि 2009 के आसपास 1.5 डॉलर थी. साल 2022 के पहले 6 महीने में ही यूरो की कीमत डॉलर के मुकाबले 11 फीसदी, येन की कीमत 19 फीसदी और पाउंड की कीमत 13 फीसदी गिरी है. इसी समय के भारतीय रुपये में करीब 6 फीसदी की गिरावट आई है. यानी भारतीय रुपया यूरो, पाउंड और येन के मुकाबले मुद्रा vs डॉलर विवरण कम गिरा है.
डॉलर क्यों मजबूत हो रहा है?
रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से दुनिया में अस्थिरता आई. डिमांड-सप्लाई की चेन बिगड़ी. निवेशकों ने डर की वजह से दुनियाभर के बाज़ारों से पैसा निकाला और सुरक्षित जगहों पर निवेश किया. अमेरिकी निवेशकों ने भी भारत, यूरोप और दुनिया के बाकी हिस्सों से पैसा निकाला.
अमेरिका महंगाई नियंत्रित करने के लिए ऐतिहासिक रूप से ब्याज दरें बढ़ा रहा है. फेडरल रिजर्व ने कहा था कि वो तीन तीमाही में ब्याज दरें 1.5 फीसदी से 1.75 फीसदी तक बढ़ाएगा. ब्याज़ दर बढ़ने की वजह से भी निवेशक पैसा वापस अमेरिका में निवेश कर रहे हैं.
2020 के आर्थिक मंदी के समय अमेरिका ने लोगों के खाते में सीधे कैश ट्रांसफर किया था, ये पैसा अमेरिकी लोगों ने दुनिया के बाकी देशों में निवेश भी किया था, अब ये पैसा भी वापस अमेरिका लौट रहा है.
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