EctoLife - Erasing humanity from humans. Grow your baby in a pod, with fake nutrients in a fake environment. What could go wrong? pic.twitter.com/KugieSbNh3 — George Ttevel Ezbarr (@GEZBARR) December 14, 2022

Baby in a Pod: अब फैक्ट्री में बनेंगे बच्चे, जानिए क्या है 'बेबी पॉड', दुनिया का पहला कृत्रिम गर्भ?

Baby in a Pod: EctoLife अब दुनिया की पहली कृत्रिम गर्भ सुविधा देने वाली फैक्ट्री बनेगी. यह उन मां बाप के लिए वरदान है जिनके बच्चे नहीं हो रहे हैं.

By: ABP Live | Updated at : 16 Dec 2022 09:54 AM (IST)

Baby in a Pod (PhOTO-@GEZBARR)

Baby in a Pod: क्या आपने कभी किसी फैक्ट्री में बच्चे के 'उत्पादन' की कल्पना की है? मतलब किसी फैक्ट्री में बच्चे पैदा किया जाए..नहीं तो अब ऐसा संभव है. जी हां.. असलियत में अब ये संभव है. दुनिया में पहली बार बच्चा बनाने वाली फैक्ट्री को लेकर एक रिपोर्ट जारी की गई है. आइए जानते क्यों बुद्धि विकल्प? हैं विस्तार से क्या है पूरा माजरा.

EctoLife अब दुनिया की पहली कृत्रिम गर्भ सुविधा देने वाली फैक्ट्री बनेगी. यह उन मां बाप के लिए वरदान है जिनके बच्चे नहीं हो रहे हैं. EctoLife वेबसाइट के मुताबिक, यह अवधारणा बर्लिन स्थित हाशम अल-घाइली के दिमाग की उपज है. हाशम अल-घाइली पेशे से एक निर्माता, फिल्म निर्माता और विज्ञान के जानकार हैं

आइए अब जानते हैं कि आखिर 'कृत्रिम गर्भ सुविधा' क्या है?

कृत्रिम गर्भ को लेकर मिरर डॉट यूके की रिपोर्ट में काफी कुछ जानकारी मिलती है. अल-घाइली ने कृत्रिम गर्भ को लेकर कहा है कि यह अगले 10 साल में हकीकत बन जाएगा. उन्होंने कहा कि ऐसा तभी संभव है जब सभी तरह की नैतिक प्रतिबंध को हटा दिया जाए. उन्होंने आगे कहा कि ये कंसेप्ट 100 प्रतिशत विज्ञान पर आधारित है. सभी सुविधाओं को एक डिवाइस में मिलाकर एक प्रोटोटाइप बनाना बाकी है. उन्होंने कहा कि अगर नैतिक प्रतिबंधों में ढील दी जाती है, तो मैं इसे 10 से 15 साल पहले एक्टोलाइफ को हर जगह व्यापक रूप से इस्तेमाल करने की भविष्यवाणी करता हूं."

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कैसे होगा बच्चों का निर्माण

एक पारदर्शी "ग्रोथ पॉड्स" में एक साल में करीब 30,000 बच्चों को विकसित किया जाएगा. एक्टोलाइफ सुविधा, नवीकरणनीय ऊर्जा पर काम करेगी और ऐसे 75 प्रयोगशालाओं के निर्माण का लक्ष्य रखा गया है. एक प्रयोगशाला में 400 ग्रोछ पॉड यानि क्यों बुद्धि विकल्प? कृत्रिम गर्भाशय रखे जाएंगे, जिनसे बच्चों का उत्पादन किया जाएगा. इन पॉड्स को मां के गर्भ में मौजूद वातावरण के समान वातावरण प्रदान करने के लिए डिजाइन किया गया है.

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एक स्क्रिन के जरिए पोड में बच्चे की ग्रोथ पर नजर रखी जाएगी. हाशम अल-घाइली ने इस बारे में कहा कि, प्रसव के समय, बच्चे को "एक बटन के जरिए हल्का धक्का देकर" उस फली से निकाला जा सकता है. उन्होंने कहा कि, "एक्टोलाइफ आपको एक सुरक्षित, दर्द-मुक्त बच्चा पैदा करने का विकल्प प्रदान करता है, जो आपको बिना तनाव के अपने बच्चे को जन्म देने में मदद करता है.

हाशम अल-घाइलीआगे कहते हैं कि कृत्रिम गर्भ से एमनियोटिक लिक्विड के बहने के बाद आप अपने बच्चे को ग्रोथ पॉड से आसानी से निकाल पाएंगे." इतना ही नहीं इस प्रक्रिया में माता-पिता अपने बच्चे की बुद्धि, लंबाई, उसके बाल, आंखों का रंग त्वचा की टोन का भी चयन कर सकते हैं.

Published at : 16 Dec 2022 09:51 AM (IST) Tags: ​ Artificial Womb artificial womb हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: News in Hindi

नीतीश का विपक्षी एकता का प्रेम

नीतीश का विपक्षी एकता का प्रेम

लोकतन्त्र में विपक्ष इस प्रणाली की ‘प्राण वायु’ माना जाता है जिसमें मत भिन्नता व ‘असहमति’ को बराबर का स्थान प्राप्त होता है क्योंकि जनतन्त्र समग्र जनता की प्रतिध्वनि होता है। बहुमत और अल्पमत का अर्थ यह कदापि नहीं होता कि जो पक्ष अल्पमत में रहकर ‘विपक्ष’ कहलाता है वह जनता का प्रतिनिधित्व न करता हो। बहुमत को सत्ता तो बेशक प्राप्त होती है मगर अल्पमत की आवाज भी सत्ता के समक्ष सर्वदा एक चुनौती बनी रहती है। इसे देखते हुए बिहार के मुख्यमन्त्री श्री नीतीश कुमार का यह वक्तव्य महत्वपूर्ण है कि वह बिहार की सत्ता की बागडोर अपने युवा उपमुख्यमन्त्री श्री तेजस्वी यादव के हाथ में सौंपकर देश में समूचे विपक्ष की एकता के लिए प्रयास करेंगे। नीतीश बाबू हालांकि अब वह रुतबा खो चुके हैं जो 2014 में उनके नाम के साथ जुड़ा हुआ था और उन्हें विपक्ष की ओर से प्रधानमन्त्री पद का सशक्त दावेदार बताया जा रहा था। इस हकीकत से नीतीश बाबू स्वयं भी परिचित लगते हैं, इसीलिए उन्होंने यह भी कहा है कि वह प्रधानमन्त्री या अगले 2025 के बिहार विधानसभा चुनावों में अब मुख्यमन्त्री पद के उम्मीदवार नहीं हैं। उनके इस कथन को क्या यह मान लिया जाये कि वह राष्ट्रीय राजनीति में ऐसे उत्प्रेरक की भूमिका निभाना चाहते हैं जिसका मिशन विपक्षी एकता हो? यदि यह सत्य है तो उन्हें सबसे पहले देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस को साधना होगा क्योंकि पूरे देश में एकमात्र यही ऐसी पार्टी है क्यों बुद्धि विकल्प? जो विचारधारा और सिद्धान्तों के आधार पर सत्तारूढ़ भाजपा का विकल्प बनने की क्षमता रखती है।

इस पार्टी के नेता श्री राहुल गांधी आजकल जिस ‘भारत-जोड़ो’ यात्रा पर निकले हुए हैं उसमें ऐसी संभावनाएं छिपी हुई हैं जो भारतीय जनता पार्टी को हर विषय और मुद्दे पर आमने-सामने ला सकती हैं। दूसरा इसका अर्थ यह भी निकलता है कि श्री राहुल गांधी की इस सफल यात्रा से ऐसी संभावनाएं बन रही हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर 2024 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस व भाजपा का सीधे ही मुकाबला हो जाये। यदि ऐसा होता है तो विभिन्न क्षेत्रीय दल हांशिये पर जा सकते हैं क्योंकि राष्ट्रीय चुनावों में देश के ज्वलन्त मुद्दे केन्द्र में रहते हैं और इन मुद्दों पर लगभग सभी क्षेत्रीय दलों का कोई स्पष्ट एकल नजरिया नहीं हैं। इनके लिए अपने क्षेत्रीय व दलगत मुद्दे ज्यादा महत्व रखते हैं जबकि राष्ट्रीय राजनीति में अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दों का भी विशिष्ट महत्व होता है। इस सन्दर्भ में भारत के मतदाताओं की बुद्धि व राजनैतिक समझ पर पूरा भरोसा होना चाहिए क्योंकि ये मतदाता इतने चतुर व सुजान हैं कि प्रत्येक चुनाव की महत्ता को समझते हैं। इसका प्रमाण हाल ही में हुए गुजरात, हिमाचल व दिल्ली नगर-निगम के चुनाव हैं जिनमें मतदाताओं ने तीनों जगह अलग-अलग जनादेश दिया है। गुजरात जहां भाजपा ने रिकार्ड मतों से जीता वहीं हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस सम्मानजनक बहुमत के साथ सत्ता में आयी और दिल्ली नगर निगम में आम आदमी पार्टी प्रशासन पर काबिज हुई। ठीक ऐसा ही हम उत्तर प्रदेश के बारे में भी कह सकते हैं जहां समाजवादी पार्टी भाजपा के बाद नम्बर दो की पार्टी मानी जाती है।

राज्य विधानसभा चुनावों में जातिगत व समुदायगत समीकरण पूरी ताकत के साथ काम करते हैं परन्तु जब राष्ट्रीय चुनाव आते हैं तो मतदाताओं का दिमाग और राजनीतिक सुविज्ञता दूसरे चक्र में काम करने लगती है। बेशक कुछ राज्य इसके अपवाद हो सकते हैं जैसे दक्षिण में तमिलनाडू या आन्ध्र प्रदेश और पूर्व में ओडिशा। मगर कमोबेश मतदाताओं का ध्यान राष्ट्रीय समस्याओं पर ही केन्द्रित रहता है। इसमें उन क्षेत्रीय दलों को लाभ जरूर होता है जो किसी राष्ट्रीय दल के गठबन्धन में रहते हैं। अभी तक विपक्षी एकता के लिए जिस तरह प. बंगाल की नेता सुश्री ममता बनर्जी और तेलंगाना के मुख्यमन्त्री के. चन्द्रशेखर राव ने प्रयास किये हैं वे बजाय विपक्ष को जोड़ने के तोड़ने वाले ही कहे जायेंगे क्योंकि भारत में आज भी बिना कांग्रेस या भाजपा की अगुवाई के कोई संयुक्त मोर्चा बनना संभव नहीं है।

तीसरे मोर्चे का ख्वाब कम्युनिस्टों के रसातल में जाने के साथ ही ‘तीसरे लोक’ में पहुंच चुका है। अतः अब यह नीतीश बाबू को सोचना है कि विपक्षी एकता को लेकर उनका एजेंडा केवल क्षेत्रीय दलों का तालमेल होगा अथवा राष्ट्रीय विकल्प देने का विचार। क्योंकि क्षेत्रीय दलों को भी यह वास्तविकता स्वीकार करनी पड़ेगी कि कांग्रेस के इस अवसादकाल के दौरान भी पिछले लोकसभा चुनावों में इसे कुल पड़े 78 करोड़ मतों में से 12 करोड़ के लगभग मत पड़े थे। इसके साथ ही इस पार्टी का अस्तित्व भारत के प्रत्येक राज्य में आज भी है चाहे यह बेशक खंडहरों में ही क्यों न हो। राहुल क्यों बुद्धि विकल्प? गांधी का भारत जोड़ो यात्रा के पीछे छिपा हुआ एजेंडा यह भी माना जा रहा है कि वह कांग्रेस के खंडहरों की बिखरी हुई ईंटों को पुनः इमारत में तब्दील करना चाहते हैं। प्रख्यात शायर ‘फिराक गोरखपुरी’ ने संभवतः एेसी ही परिस्थितियों के बारे में यह शेयर कहा था,

बुद्ध एक अधिकार क्यों हैं

दिग्नागा पर धर्मकीर्ति की भाष्य पर गेशे येशे थाबखे द्वारा दी गई शिक्षाओं की एक श्रृंखला का एक हिस्सा वैध अनुभूति पर संग्रह , जोशुआ कटलर द्वारा अनुवाद के साथ तिब्बती बौद्ध अध्ययन केंद्र.

  • पिछले अनुभाग का सारांश और उसका उद्देश्य
  • बौद्धों के अभ्यास और परित्याग के लिए जोर देने पर एक नया खंड पेश करना
  • How कर्मा हमारे अनुभव के निर्माता हैं
  • जैसे शिक्षक की तलाश करने के कारण बुद्धा

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गेशे येशे थबखे

गेशे येशे थाबखे का जन्म 1930 में मध्य तिब्बत के लहोखा में हुआ था और 13 साल की उम्र में एक भिक्षु बन गए थे। 1969 में डेपुंग लोसेलिंग मठ में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद, उन्हें गेशे ल्हारम्पा से सम्मानित किया गया, जो तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुक स्कूल में सर्वोच्च डिग्री है। वह सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हायर तिब्बती स्टडीज में एक एमेरिटस प्रोफेसर हैं और मध्यमा और भारतीय बौद्ध अध्ययन दोनों के एक प्रख्यात विद्वान हैं। उनकी रचनाओं में के हिंदी अनुवाद शामिल हैं निश्चित और व्याख्यात्मक अर्थों की अच्छी व्याख्या का सार लामा चोंखापा और कमलाशिला की टिप्पणी द्वारा धान की पौध सूत्र . उनकी अपनी टीका, राइस सीडलिंग सूत्र: बुद्ध की शिक्षाओं पर निर्भर समुत्थान , जोशुआ और डायना कटलर द्वारा अंग्रेजी में अनुवादित किया गया था क्यों बुद्धि विकल्प? और विजडम पब्लिकेशंस द्वारा प्रकाशित किया गया था। गेशेला ने कई शोध कार्यों को सुगम बनाया है, जैसे कि चोंखापा का पूरा अनुवाद आत्मज्ञान के पथ के चरणों पर महान ग्रंथ , द्वारा शुरू की गई एक प्रमुख परियोजना तिब्बती बौद्ध अध्ययन केंद्र न्यू जर्सी में जहां वह नियमित रूप से पढ़ाते हैं।

प्‍यार करने वालों के लिए क्‍यों सूली पर चढ़ गए थे इश्‍क के ये 'खुदा'

प्‍यार करने वालों के लिए क्‍यों सूली पर चढ़ गए थे इश्‍क के ये

वैलेंटाइन वीक शुरू हो चुका है और अब प्‍यार करने वालों को बेसब्री से वैलेंटाइन डे का इंतजार होगा। हो भी क्‍यों ना, इस दिन प्‍यार करने वाले पूरी शिद्दत से अपने प्‍यार का जश्‍न मनाते हैं और इसे यादगार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। प्‍यार का एहसास इतना खूबसूरत है कि दो दिल बिना किसी स्‍वार्थ के एक दूसरे के लिए धड़कनें लगते हैं, मगर कहने को तो यह कहा जा सकता है कि प्‍यार करने वालों के लिए तो हर दिन ही वैलेंटाइन डे है, फिर 14 फरवरी को ही क्‍यों प्‍यार को सेलिब्रेट किया जाता है। तो चलिए आपको बताते हैं कि आखिर क्‍यों 14 फरवरी को वैलेंटाइन डे मनाया जाता है। वैसे तो इसको लेकर कई कहानियां व मान्‍यताएं प्रचलित हैं, मगर जो सबसे ज्‍यादा चर्चित है, वो ये है।

इश्‍क के इस 'खुदा' की याद में ही मनाते हैं वैलेंटाइन डे


कहा जाता है कि वैलेंटाइन डे का नाम संत वैलेंटाइन के नाम पर क्यों बुद्धि विकल्प? रखा गया है। दरअसल, रोम में तीसरी सदी में क्‍लॉडियस नाम के राजा का राज हुआ करता था। क्‍लॉडियस का मानना था कि शादी करने से पुरुषों की शक्ति और बुद्धि खत्‍म क्यों बुद्धि विकल्प? हो जाती है। इसी के चलते उसने पूरे राज्‍य में यह आदेश जारी कर दिया कि उसका कोई भी सैनिक या अधिकारी शादी नहीं करेगा, मगर संत वैलेंटाइन ने क्‍लॉडियस के इस आदेश पर कड़ा विरोध जताया और पूरे राज्‍य में लोगों को शादी करने के लिए प्रेरित किया। संत वैलेंटाइन ने अनेक सैनिकों और अधिकारियों की शादी करवाई। ऐसे में अपने आदेश क्यों बुद्धि विकल्प? का विरोध देख आखिर क्लॉडियस ने 14 फरवरी सन 269 को संत वैलेंटाइन को फांसी पर चढ़वा दिया। तब से उनकी याद में यह दिन मनाया जाता है।

वैलेंटाइन डे से पहले मनाए जाते हैं ये सेवेन डे


रोज डे- वैलेंटाइन वीक की शुरुआत सात फरवरी यानि रोज डे से होती है। गुलाब प्यार का प्रतीक माना जाता है और अपने प्रेमी को दिया जाने वाला सबसे अच्छा तोहफा भी होता है। इस दिन आप जिससे प्यार करते हैं उन्हें गुलाब का फूल देकर अपनी भावनाओं से अवगत करवाते हैं। इस दिन प्यार करने वाले जोड़े एक-दूसरे को लाल गुलाब देना पसंद करते हैं।

प्रपोज डे- दूसरा दिन प्रपोज डे का होता है। इस दिन प्रेमी अपने क्रश को प्रपोज करता है। जिसके लिए सरप्राइज देकर या कुछ नया प्लान कर प्रपोज कर सकते हैं।

चॉकलेट डे- इस वीक का तीसरा दिन चॉकलेट डे होता है। कहा जाता है कि चॉकलेट स्वाद के साथ साथ रिश्तों में भी मिठास भर देती है। इस दिन खासकर लड़के अपनी प्रेमिकाओं को चॉकलेट गिफ्ट करते हैं और अपने प्यार का इजहार करने के लिए चॉकलेट का सहारा लेते हैं। इससे सामने वाले की नाराजगी को पल भर में दूर किया जा सकता है, वहीं अपने रुठे हुए प्रियजनों को इससे मनाया जा सकता है। इस दिन चॉकलेट देने से प्यार बढ़ता है।

टैडी डे- वीक का चौथा दिन टैडी डे होता है। लड़कियों को टैडी बहुत पसंद होता है। टैडी को पूरी दुनिया में प्यार का प्रतीक माना जाता है। बचपन के साथ ही यह आपकी जवानी के भी साथी होते हैं।

प्रॉमिस डे- पांचवा क्यों बुद्धि विकल्प? दिन प्रॉमिस डे होता है। ये तो सब जानते हैं वादा और विश्वास हर रिश्ते की आधार होता है। यह आपके हेल्दी रिलेशनशिप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इस दिन आप जिससे क्यों बुद्धि विकल्प? प्यार करते हैं उनसे कोई खास वादा कर सकते हैं। लेकिन ध्यान रहे ऐसा वादा ना कर बैठें जिसे आप बाद में निभा ना सकें।

किस डे- वैलेंटाइन वीक के छठे दिन को किस डे के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन प्रेमी युगल किस के जरिए अपने प्यार का अहसास पार्टनर को करवाते हैं।

हग डे- सातवां दिन हग डे होता है। इस दिन गले लगाकर आप बहुत से रुठे हुए अपने प्रियजनों को मना सकते हैं। इस दिन आप गर्मजोशी से एक-दूसरे को गले लगाकर अपनी भावनाओं का अहसास दिला सकते हैं। हग प्यार, केयर और प्रोटेक्शन को दर्शाता है।


वैलेंटाइन डे- आखिरी दिन वैलेंटाइन डे होता है और इस दिन के साथ ही एक हफ्ते से जारी प्यार के इस फेस्टिवल का अंत हो जाता है।

क्रूर होती शिक्षा !

क्रूर होती शिक्षा !

शिक्षक वह व्यक्ति है जो बच्चों के व्यक्तित्व का विकास कर उनमें अच्छे मूल्यों और आदर्शों को विकसित करता है। जिससे कि वो आगे चलकर देश के उत्तम नागरिक बनें। शिक्षकों के कंधों पर बहुत बड़ा दायित्व होता है। वास्तव में वे ही देश के भाग्य निर्माता होते हैं। स्कूल एक बगीचे के समान होता है और बच्चे छोटे-छोटे पौधे के समान होते हैं। शिक्षक की भूमिका एक कुशल माली के समान होती है, जिसकी जिम्मेदारी पौधों की देशभाल सावधानीपूर्वक करना, उन्हें हरा-भरा रखना तथा उन्हें विकसित करने के लिए समय-समय पर खाद-पानी देना ताकि वह सौंदर्य और पूर्णता को प्राप्त कर सकें। शिक्षक भी यही कार्य करता है। वह अपने अनुभव और कौशल द्वारा बच्चों के विकास में सहायता करता है। बच्चे स्कूलों में शिक्षकों से ही ज्ञान पाते हैं। यह भी सच है कि प्रत्येक बच्चे की बुद्धि इतनी परिपक्व नहीं होती कि वह सही गलत की पहचान खुद कर सके। ऐसी स्थिति में शिक्षक ही बच्चों के मार्गदर्शक होते हैं।

राजधानी दिल्ली के एक प्राइमरी स्कूल में एक शिक्षिका द्वारा बच्ची को पहले कैंची से मारा गया और फिर उसे पहली मंजिल से नीचे फैंका गया। गनीमत है कि बच्ची जीवित बच गई लेकिन इस घटना ने स्कूली बच्चों के अभिभावकों को चिंतित कर दिया है। इस घटना ने न केवल बहुत सारे सवाल खड़े किए हैं, बल्कि शिक्षकों की भूमिका को भी संदेह के घेरे में ला दिया है। इससे पहले भी उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक प्राइवेट स्कूल में दो का टेबल नहीं सुनाने पर एक शिक्षक ने बच्चे के हाथ पर ड्रिल मशीन चला दी। राजस्थान के जालौर में मटके से पानी पीने पर अध्यापक ने 9 साल के मासूम बच्चे को इतना पीटा कि उसकी मौत हो गई। पटना में एक टीचर ने पांच साल के बच्चे को इतना पीटा कि उसके हाथ का डंडा टूट गया। उसने इतने पर भी बस नहीं किया और वह लात-घूंसों से बच्चे पर टूट पड़ा और उसे तब तक पीटता रहा जब तक बच्चा बेहोश नहीं हो गया। फीस न देने पर बच्चों से मारपीट की खबरें आती रहती हैं। कानूनी तौर पर स्कूली बच्चों को पीटना तो दूर डांटने-फटकारने पर भी सख्त मनाही है।

प्राइवेट स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने वाले अभिभावक तो इतने सजग हैं कि वह मामूली शिकायत मिलने पर ही शिक्षकों की शिकायत लेकर स्कूल पहुंच जाते हैं, लेकिन सरकारी स्कूलों में कई बार शिक्षकों की कुंठा की घटनाएं सामने आ जाती हैं। यद्यपि बच्चों को यातनाएं देने वाले शिक्षकों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाती है और मामला कुछ दिनों बाद शांत हो जाता है। एक सामान्य मनोदशा का व्यक्ति बच्चों के साथ ऐसा व्यवहार नहीं कर सकता। ऐसी घटनाओं के कारण तलाशे जाने की जरूरत है कि शिक्षक हिंसक क्यों हो उठते हैं? उनकी कुंडा के पीछे प​ारिवारिक, आर्थिक और सामाजिक कारण हो सकते हैं। आखिर उस शिक्षक की मनोदशा कैसी है कि वह हिंसक होकर बच्चों पर अत्याचार ढाने लगे।

शिक्षकों के मनोविज्ञान और मनोदशा का क्या कोई आंकलन किया जाता है। क्या उनमें शिक्षक बनने की योग्यता हासिल करने लायक संवेदनशीलता है। अगर बच्चों के प्रति उसके हृदय में कोई संवेदनशीलता या मानवीय दृष्टिकोण नहीं है तो वह शिक्षक नहीं शैतान के समान है। कई बार बच्चों का शरारतीपन या उदंडता पर गुस्सा अभिभावकों को भी आ जाता है तो स्वाभाविक है कि शिक्षकों को भी कभी-कभी गुस्सा आ जाता है। लेकिन इस गुस्से में शिक्षकों का बर्बरता की सीमा पार करना किसी भी तरह से उचित नहीं कहा जा सकता। अब वह दौर नहीं है जब अभिभावक अपने बच्चों को स्कूली शिक्षकों को सौंप कर यह कहते थे कि अब हमारी जिम्मेदारी खत्म और बच्चों को संवारने का काम आपका है। तब अभिभावक शिक्षकों द्वारा बच्चों को डांटने-फटकारने पर नाराज नहीं होते थे। जिस तरीके से शिक्षा का व्यवसायीकरण हो चुका है उसमें शिक्षकों का कोई सम्मान नजर नहीं आता। स्थितियां काफी बदल चुकी हैं, फिर भी शिक्षक के उत्तरदायित्व को कम नहीं आंका जा सकता। शिक्षक के बिना शिक्षा की प्रक्रिया चल ही नहीं सकती।

यदि शिक्षक योग्य नहीं होंगे तो शिक्षा की प्रक्रिया ठीक तरह से क्यों बुद्धि विकल्प? नहीं चल सकेगी। आज शिक्षक का कार्य केवल बच्चों को आकर्षित करना ही नहीं बल्कि बच्चों को समझने के लिए उन्हें बाल मनोविज्ञान का ज्ञान होना भी जरूरी है। अगर शिक्षक किसी मानसिक हालात से गुजर रहा है तो उसकी मनोवैज्ञानिक काउंसलिंग की व्यवस्था भी शिक्षण संस्थाओं में होनी चाहिए। संस्थान सरकारी हो या प्राइवेट शिक्षकों की कुंठा को परखने के ​लिए भी व्यवस्था होनी चाहिए अन्यथा शिक्षकों के बच्चों को पीटने की दिल दहला देने वाली घटनाएं सामने आती रहेंगी। बच्चों को मार कर नहीं प्यार से कंट्रोल करना चाहिए। ​हिंसक व्यवहार से बच्चों का क्यों बुद्धि विकल्प? कोमल मन प्रभावित हो जाता है। अगर हर बच्चे को अच्छा शिक्षक मिले तो वह बहुत कुछ करके दिखा सकता है। शिक्षकों की नियुक्ति से पहले यह भी देखना जरूरी है कि वह बच्चों के प्रति अपने व्यवहार को लेकर कितना सजग और सहनशील रहता है। अगर ऐसी घटनाएं होती रहीं तो यह समाज के ​लिए और स्कूली प्रबंधन के लिए चिंता की बात है।

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