उम्मीद है जेट एयरवेज, एतिहाद, ऋणदाता किसी सहमति पर पहुंच जायेंगे: सरकारी अधिकारी
मुंबई, 16 जनवरी (भाषा) जेट एयरवेज की वित्तीय सेहत को लेकर चिंता के बीच नागर विमानन मंत्रालय ने उम्मीद जताई है कि एयरलाइन, रणनीतिक भागीदार एतिहाद, उसके ऋणदाता स्थिति से निपटने के लिए किसी साझा योजना पर सहमत हो जाएंगे। जेट एयरवेज समय पर ऋण भुगतान में असफल रही है। एयरलाइन धन जुटाने के लिये प्रयास कर रही है और इसके लिये वह एतिहाद और ऋणदाताओं के साथ बातचीत कर रही है। प्रस्ताव है कि पूर्ण सेवाप्रदाता विमानन कंपनी जेट एयरवेज में एतिहाद अपनी हिस्सेदारी मौजूदा 24 प्रतिशत से और आगे बढ़ाये। नागर विमानन सचिव आर
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सरकारी प्रतिभूतियों में खुदरा निवेशकोंकी भागीदारी के लिए योजना शुरू
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरकारी प्रतिभूति बाजार में खुदरा निवेशकों को भागीदारी का अवसर देने तथा शिकायत निपटान प्रणाली में सुधार के लिए आज भारतीय रिजर्व बैंक की 2 योजनाओं का शुभारंभ किया और कहा कि इससे आम नागरिकों के निवेश की सुरक्षा सुनिश्चित होगी, साथ ही उन्हें स्थिर मुनाफा हो सकेगा। उन्होंने कहा कि इससे सरकार के लिए बुनियादी ढांचा और देश की अन्य जरूरतों में निवेश के लिए धन उपलब्ध हो सकेगा।
खुदरा प्रत्यक्ष योजना के माध्यम से रिजर्व बैंक की ओर से मुहैया कराई जा रही व्यवस्था में व्यक्तिगत निवेशक सीधे सरकारी प्रतिभूतियों (जी-सेक) में निवेश कर सकेंगे। इसके लिए कोई शुल्क नहीं लगेगा और न ही किसी फंड प्रबंधक की जरूरत होगी। ये सरकारी गारंटी वाले और उच्चतम संपत्ति श्रेणी की पेशकश है, जिसमें निवेश सुरक्षित होता है। इसमें कोई क्रेडिट जोखिम नहीं होगा, लेकिन इसमें ब्याज दर का जोखिम होगा, जिसे निवेशकों को ध्यान में रखना होगा।
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘अब तक हमारे मध्य वर्ग, सरकारी कर्मचरियों व वरिष्ठ नागरिकों को बैंक, बीमा व म्युचुअल फंड के माध्यम से सरकार की प्रतिभूतियों में धन लगाने का मौका मिलता था। अब वे सीधे और सुरक्षित तरीके से अपनी सुविधा के मुताबिक निवेश कर सकेंगे। यह निवेश का बेहतरीन तरीका है। निवेश में सुगमता और सुरक्षा राष्ट्र की संपदा में वृद्धि करेगा।’ उन्होंने कहा कि इससे आम नागरिकों की वित्तीय बचत में भरोसा बढ़ेगा।
खुदरा निवेशक सरकार द्वारा जारी प्राथमिक प्रतिभूतियों व द्वितीयक बाजार में निवेश कर सकेंगे। प्राथमिक बाजार के माध्यम से निवेश गैर प्रतिस्पर्धी योजना के मुताबिक बोली पेश कर सकेंगे। वहीं द्वितीयक बाजार में निवेशक एनडीएस-ओएम पर सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद और बिक्री कर सकेंगे। इसमें न्यूनतम निवेश 10,000 रुपये होगा, वहीं एक निवेशक प्रति प्रतिभूति 2 करोड़ रुपये तक निवेश कर सकेगा। यह जानना अहम है कि इस निवेश से आयकर लाभ नहीं जुड़ा हुआ है।
लेनदेन के लिए भुगतान बचत खाते से इंटरनेट बैंकिंग या यूनाइटेड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) के माध्यम से किया जा सकेगा। इसमें रिजर्व बैंक कोई शुल्क नहीं लगाएगा। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा, ‘प्रत्यक्ष खुदरा योजना से सरकारी प्रतिभूतियों का निवेशक आधार व्यापक होगा और और खुदरा निवेशक आसानी से सरकारके प्रतिभूति बाजार में हिस्सा ले सकेंगे।’
बॉण्ड यील्ड में वृद्धि: आर्थिक संवृद्धि के लिये चुनौती
(प्रारंभिक परीक्षा: विषय- राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व की सामयिक घटनाएँ, आर्थिक और सामाजिक विकास) (मुख्य परीक्षा: विषय- भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोज़गार से संबंधित विषय)
संदर्भ
अमेरिका एवं जापान जैसे विकसित देशों तथा भारत में सरकारी प्रतिभूतियों या बॉण्ड्स पर बढ़ती बॉण्ड यील्ड पर भारतीय रिज़र्व बैंक ने चिंता व्यक्त करते हुए इसे अर्थव्यवस्था की संवृद्धि में बाधक बताया है।
क्या है बॉण्ड यील्ड?
- बॉण्ड यील्ड, किसी निवेशक को उसके बॉण्ड या सरकारी प्रतिभूति पर मिलने वाला एक प्रतिफल (Return) है।
- ब्याज दरों में वृद्धि के कारण बॉण्ड की कीमतें गिरने लगती हैं तथा बॉण्ड यील्ड बढ़ जाती है, जबकि ब्याज दर कम होने पर बॉण्ड की कीमतें बढ़ने से बॉण्ड यील्ड में गिरावट आती है।
- केंद्रीय बैंक की मौद्रिक नीति, विशेष रूप से ब्याज दरों के संदर्भ में बॉण्ड यील्ड को प्रभावित करने वाला प्रमुख कारक है। इसके अतिरिक्त, सरकार की राजकोषीय स्थिति, सरकारी उधारियाँ, वैश्विक बाज़ार तथा मुद्रास्फीति जैसे कारक भी इसे प्रभावित करते हैं।
बॉण्ड यील्ड में बढ़ोतरी से संबंधित चिंताएँ
- भारतीय रिज़र्व के अनुसार, बॉण्ड यील्ड में बढ़ोतरी कोविड-19 के कारण कमज़ोर वैश्विक अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने की दिशा में किये जा रहे सुधारों को बाधित कर सकती है।
- उच्च बॉण्ड यील्ड केंद्रीय बैंकों को अधिक मात्रा में बॉण्ड खरीदने के लिये प्रेरित कर सकती है। इससे ब्याज दरों में वृद्धि होती है, परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था में तरलता में कमी आती है तथा उत्पादन एवं उपभोग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- हालाँकि, यह ‘यील्ड कर्व’ के क्रमिक विकास को सुनिश्चित करता है किंतु इससे वित्तीय बाज़ारों को अस्थिरता का सामना करना पड़ेगा। साथ ही, यह उभरते बाज़ारों से पूँजी निर्गमन (Capital Outflow) को बढ़ा सकता है।
- बजट 2021-22 में केंद्र सरकार द्वारा वर्तमान वित्त वर्ष के लिये 80,000 करोड़ रुपए और सरकारी प्रतिभूतियों की चिंता किसे? आगामी वित्त वर्ष के लिये 12.80 लाख करोड़ रुपए की अतिरिक्त उधारी के कारण घरेलू बॉण्ड यील्ड में लगातार वृद्धि दर्ज की जा रही है। आर.बी.आई. द्वारा बॉण्ड यील्ड पर 6% की उच्चतम सीमा आरोपित किये जाने के सरकारी प्रतिभूतियों की चिंता किसे? बावजूद 10 वर्ष के बेंचमार्क बॉण्ड पर बॉण्ड यील्ड में लगातार वृद्धि हो रही है।
- वर्तमान समय भारत द्वारा आर्थिक संवृद्धि को पुनः प्राप्त करने की दृष्टि से चुनौतीपूर्ण है, ऐसे में बॉण्ड बाज़ार अनेक उपायों के बावजूद लाभहीन बना हुआ है।
- भारतीय अर्थव्यवस्था में एक तरफ जहाँ पूँजीगत व्यय में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हो रहा है और कॉर्पोरेट से प्राप्त आय भी उम्मीदों के अनुरूप है; वहीं दूसरी तरफ, उच्च मुद्रास्फीति के कारण दबाव की स्थिति बनी हुई है।
- ऐसे समय में जब उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति 5.8-6.4% की दर के साथ मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण की अधिकतम सीमा को पार करने की दिशा में बढ़ रही है, बॉण्ड यील्ड में वृद्धि अर्थव्यवस्था की संवृद्धि को प्रभावित करेगी।
- बॉण्ड यील्ड में वृद्धि से सरकार की उधारियों में वृद्धि होती है, जो बैंक प्रणाली में उपलब्ध निम्न तरलता को प्रभावित करती सरकारी प्रतिभूतियों की चिंता किसे? हैं। इसके चलते अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में भारतीय बॉण्ड की क्रेडिट रेटिंग भी कमज़ोर होगी।
- इसके अतिरिक्त, बॉण्ड यील्ड में नवीनतम वृद्धि अन्य विदेशी मुद्राओं की तुलना में रुपए को मज़बूती प्रदान करेगी, जो वित्तीय बाज़ार को प्रभावित करेगा। साथ ही, इससे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के बहिर्प्रवाह की गति भी बढ़ेगी।
- इससे निवेशक अधिक जोखिम के कारण दीर्घावधिक के निवेश फंड की बजाय अल्पावधिक फंड में निवेश करेंगे, जिससे दीर्घावधिक विकास परियोजनाएँ प्रभावित होंगी।
आर.बी.आई. द्वारा किये गए उपाय
अगले वित्त वर्ष में G-Sec में RBI की हिस्सेदारी 2 लाख करोड़ रुपये बढ़ेगी- रिपोर्ट
सरकार के 80.8 लाख करोड़ रुपये के बकाया बॉन्ड में वित्तीय संस्थानों के बाद केंद्रीय बैंक का हिस्सा दूसरे नंबर पर है. बकाया बॉन्ड में सबसे अधिक हिस्सेदार वित्तीय संस्थान हैं.
सरकार के अगले वित्त वर्ष 2022-23 के लिए रिकॉर्ड कर्ज लेने की योजना के मद्देनजर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की सरकारी प्रतिभूतियों (G-Sec) में हिस्सेदारी करीब 2 लाख करोड़ रुपये बढ़ सकती है. केंद्रीय बैंक के पास पहले ही 80.8 लाख करोड़ रुपये के बकाया सरकारी बॉन्ड (Government Bonds) में 17 फीसदी हिस्सेदारी है. एक रिपोर्ट में यह जानकारी देते हुए कहा गया है कि बड़े कर्ज कार्यक्रम की वजह से रिजर्व बैंक को कम-से-कम 2 लाख करोड़ रुपये के बॉन्ड के लिए खरीदार ढूंढने होंगे क्योंकि बैंक सामान्य तौर पर 10 साल से कम के लघु अवधि के लोन का विकल्प चुनते हैं.
बजट 2022-23 में केंद्र का सकल कर्ज रिकॉर्ड 14.3 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है. राज्यों के साथ मिलाकर सकल कर्ज 23.3 लाख करोड़ रुपये और नेट लोन 17.8 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है. बजट में अगले वित्त वर्ष में 3.1 लाख करोड़ रुपये के भुगतान का भी प्रस्ताव है.
आउटस्टैंडिंग बॉन्ड में RBI का हिस्सा दूसरे नंबर पर
सरकार के 80.8 लाख करोड़ रुपये के बकाया बॉन्ड में वित्तीय संस्थानों के बाद केंद्रीय बैंक का हिस्सा दूसरे नंबर पर है. बकाया बॉन्ड में सबसे अधिक हिस्सेदार वित्तीय संस्थान हैं.
एसबीआई रिसर्च (SBI Research) की रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी के अंत तक 2061 तक परिपक्व होने वाली सरकारी प्रतिभूतियां 80.8 लाख करोड़ रुपये थीं. इनमें से 37.8 फीसदी प्रतिभूतियां बैंकों के पास, 24.2 फीसदी बीमा कंपनियों के पास थीं. यानी कुल मिलाकर इनके पास 62 फीसदी प्रतिभूतियां थीं. वहीं केंद्रीय बैंक के पास 17 फीसदी प्रतिभूतियां थीं.
इसके विपरीत, सरकारी प्रतिभूतियों का विदेशी स्वामित्व मात्र 1.9 फीसदी है. यह ब्राजील में अपने साथियों में सबसे कम है, यह उच्च 44.5 फीसदी, मेक्सिको में 41.1 फीसदी, दक्षिण अफ्रीका में 35 फीसदी और चीन में 10.5 फीसदी है. जनवरी 2022 के अंत तक आउटस्टैंडिंग डेटेड सरकारी प्रतिभूतियां 80.76 लाख करोड़ रुपये थीं, जिसे 2061 तक रिडीम किया जा सकता है.
एसबीआई के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि मार्च 2010 के बाद से बैंकों की कुल हिस्सेदारी में 10 फीसदी की गिरावट आई है, जब उनके पास 47.25 फीसदी की हिस्सेदारी थी, क्योंकि बैंकों का झुकाव कम अवधि की ओर था, 10 साल या उससे कम की पेशकश के लिए बीमा कंपनियों और अन्य लोगों के लिए हायर टेन्योर को छोड़कर.
घोष ने यह भी कहा कि वित्त वर्ष 2013 के बाजार उधार का आकार 14.3 लाख करोड़ रुपये है और वैश्विक बॉन्ड सूचकांकों में G-Sec को शामिल करने पर कोई प्रगति नहीं हुई है. फिर भी सरकारी प्रतिभूतियों की चिंता किसे? यह सवाल उठता है कि क्या आरबीआई को एक प्रयास में लिक्विडिटी सामान्य करने में देरी करनी पड़ सकती है.
IDBI Bank : विदेशी बैंक के पास जाने पर भी आईडीबीआई बैंक बना रहेगा प्राथमिक डीलर
IDBI Bank : विदेशी बैंक के पास जाने पर भी आईडीबीआई बैंक प्राथमिक डीलर बना रहेगा. सरकार ने गत सात अक्टूबर को आईडीबीआई बैंक के निजीकरण के सरकारी प्रतिभूतियों की चिंता किसे? लिए बोलियां आमंत्रित करते हुए कहा था कि वह और एलआईसी इसमें अपनी पूरी 60.72 प्रतिशत हिस्सेदारी को बेचने जा रही है. प्रारंभिक बोलियां लगाने की अंतिम तारीख 16 दिसंबर है.
Published: December 7, 2022 8:02 AM IST
IDBI Bank : वित्त मंत्रालय ने मंगलवार को स्पष्ट किया कि आईडीबीआई बैंक की बहुलांश हिस्सेदारी और प्रबंधकीय नियंत्रण किसी विदेशी बैंक के पास चले जाने की स्थिति में भी बैंक प्राथमिक डीलर के तौर पर बना रहेगा.
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प्राथमिक डीलर के तौर पर आईडीबीआई बैंक सरकारी प्रतिभूतियों के संदर्भ में भी बाजार गतिविधियां संचालित करता है. बैंक का कोष सरकारी बॉन्डों की प्राथमिक नीलामी में सक्रियता से शिरकत करता है.
वित्त मंत्रालय के निवेश एवं लोक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग (DIPAM) ने आईडीबीआई बैंक की 50 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी किसी विदेशी बैंक के पास जाने की स्थिति में प्राथमिक डीलर के तौर पर बैंक की भूमिका के बारे में पूछे जाने पर कहा, “आईडीबीआई बैंक के प्राथमिक डीलर कारोबार पर इसका कोई असर पड़ने की संभावना नहीं है.”
प्राथमिक डीलर भारतीय रिजर्व बैंक के पास पंजीकृत वे इकाइयां होती हैं जो सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद एवं बिक्री करती हैं. उनके पास सीधे रिजर्व बैंक से सरकारी प्रतिभूतियों की खरीदारी करने और अन्य खरीदारों के बेचने का लाइसेंस होता है.
दीपम विभाग (DIPAM Department) ने यह स्पष्टीकरण आईडीबीआई बैंक के लिए बोली लगाने के इच्छुक बोलीकर्ताओं की तरफ से आ रही आशंकाओं को दूर करने के लिए दिया है. इसके पहले सरकार यह स्पष्ट कर चुकी है कि रणनीतिक बिक्री में किसी विदेशी बैंक के सफल होने पर भी आईडीबीआई बैंक ‘निजी क्षेत्र का भारतीय बैंक’ बना रहेगा.
सरकार ने गत सात अक्टूबर को आईडीबीआई बैंक के निजीकरण के लिए बोलियां आमंत्रित करते हुए कहा था कि वह और एलआईसी इसमें अपनी पूरी 60.72 प्रतिशत हिस्सेदारी को बेचने जा रही है. प्रारंभिक बोलियां लगाने की अंतिम तारीख 16 दिसंबर है.
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