जयंतीलाल भंडारी का लेख : बढ़ा विदेशी मुद्रा भंडार
इस समय हमारे देश के विदेशी मुद्रा भंडार के बढ़ने की कई और वजह भी हैं। चूंकि भारत कच्चे तेल की अधिकांश तरल विदेशी मुद्रा बाजार घंटे अपनी जरूरतों का 80 से 85 प्रतिशत आयात करता है और इस पर सबसे अधिक विदेशी मुद्रा खर्च होती है। ऐसे में कच्चे तेल की कीमतों में कमी लाभप्रद रही है। देश में कोविड-19 के कारण मार्च 2020 से लागू लॉकडाउन की वजह से जून 2020 तक पेट्रोल-डीजल की डिमांड कम हो गई थी, इसके अलावा कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट ने भी विदेशी मुद्रा भंडार के व्यय में कमी की है
जयंतीलाल भंडारी
इस समय कोविड-19 की चुनौतियों के बीच भी भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार अधिकांश तरल विदेशी मुद्रा बाजार घंटे बढ़ता जा रहा है। रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार देश का विदेशी मुद्रा भंडार 10 जुलाई को 516 अरब डॉलर से अधिक के ऐतिहासिक रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। यह कोई छोटी बात नहीं है कि कोरोना काल में वैश्विक अर्थव्यवस्था की तरह देश में भी गिरावट का दौर है, लेकिन विदेशी निवेशकों का भारत के प्रति विश्वास बना हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में 22 जुलाई को अमेरिका-भारत बिजनेस काउंसिल की इंडिया आइडियाज समिट में कहा कि कोविड-19 के बीच भारत के वैश्विक सहयोग की भूमिका से दुनिया का भारत में विश्वास बढ़ा है और अप्रैल से जून की अवधि में देश को बीस अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्राप्त हुआ है।
उल्लेखनीय है कि इस समय हमारे देश के विदेशी मुद्रा भंडार के बढ़ने की कई और वजह भी हैं। चूंकि भारत कच्चे तेल की अपनी जरूरतों का 80 से 85 प्रतिशत आयात करता है और इस पर सबसे अधिक विदेशी मुद्रा खर्च होती है। ऐसे में कच्चे तेल की कीमतों में कमी लाभप्रद रही है। देश में कोविड-19 के कारण मार्च 2020 से लागू लॉकडाउन की वजह से जून 2020 तक पेट्रोल-डीजल की डिमांड कम हो गई थी, इसके अलावा कच्चे तेल की कीमतों में भारी गिरावट ने भी विदेशी मुद्रा भंडार के व्यय में कमी की है। इसी तरह सोने के आयात में कमी से भी विदेशी मुद्रा के व्यय में कमी आई है। देश के आयात बिल में सोने के आयात का प्रमुख स्थान है। पिछले वित्त वर्ष 2019-20 में सोने का आयात घटने से विदेशी मुद्रा की बड़ी बचत हुई है।
यह बात भी महत्वपूर्ण है अधिकांश तरल विदेशी मुद्रा बाजार घंटे कि पिछले वर्ष 2019-20 में देश के व्यापार घाटे में भी कमी आई है। इससे भी विदेशी मुद्रा भंडार को लाभ हुआ है। खासतौर से चीन से आयात कम हुए है और चीन के साथ व्यापार घाटे में कमी आने से भी विदेशी मुद्रा भंडार लाभांवित हुआ है। देश में लॉकडाउन के कारण विभिन्न वस्तुओं की मांग में गिरावट के चलते आयात भी काफी कम हुआ है, जिससे विदेशी मुद्रा भंडार से कम व्यय करना पड़ा है। खास बात यह भी कि कोविड-19 के बीच भी भारतीय अर्थव्यवस्था तुलनात्मक रूप से कम प्रभावित हुई है। भारतीय शेयर बाजार का रुख प्रतिकूल नहीं हुआ। भारत उभरते शेयर बाजारों में अच्छी स्थिति में बना रहा है। विदेशी संस्थागत निवेशकों ने भी भारतीय शेयर बाजार में पूंजी का प्रवाह बढ़ाया है।
निसंदेह किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में विदेशी मुद्रा भंडार का अहम योगदान होता है। जब वर्ष 1991 में चंद्रशेखर प्रधानमंत्री थे, तब हमारे देश की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी। अर्थव्यवस्था भुगतान संकट में फंसी हुई थी। उस समय के गंभीर हालात का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि विदेशी मुद्रा भंडार 1.1 अरब डॉलर ही रह गया था। इतनी कम रकम करीब दो-तीन हफ्तों के आयात के लिए भी पूरी नहीं थी। ऐसे में हमारे देश के केंद्रीय बैंक रिजर्व बैंक ने 47 टन सोना विदेशी बैंकों के पास गिरवी रख कर कर्ज लिया था।
फिर देश ने 1991 में नई आर्थिक नीति अपनाई गई। जिसका उद्देश्य वैश्वीकरण और निजीकरण को बढ़ाना रहा। इस नई नीति के पश्चात धीरे-धीरे देश के भुगतान संतुलन की स्थिति सुधरने लगी। वर्ष 1994 से भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ने लगा । 2002 के बाद इसने तेज गति पकड़ी। वर्ष 2004 में विदेशी मुद्रा भंडार बढ़कर 100 अरब डॉलर के पार पहुंचा। 5 जून, 2020 को विदेशी मुद्रा भंडार ने 501 अरब डॉलर के ऐतिहासिक स्तर को प्राप्त किया। इसके बाद जुलाई 2020 में विदेशी मुद्रा भंडार में और अधिक वृद्धि का परिदृश्य दिखाई दे रहा है।
विदेशी मुद्रा भंडार किसी भी देश के केंद्रीय बैंक द्वारा रखी गई धनराशि या अन्य परिसंपत्तियां हैं जिनका उपयोग जरूरत पड़ने पर वह अपनी देनदारियों का भुगतान कर सकता है। किसी भी देश के विदेशी मुद्रा भंडार में सामान्यतया चार तत्व शामिल होते हैं, विदेशी परिसंपत्तियां, स्वर्ण भंडार, आयएमएफ के पास रिज़र्व ट्रेंच तथा विशेष आहरण अधिकार। विदेशी मुद्रा भंडार को फॉरेक्स रिजर्व भी कहा जाता है। विदेशी मुद्रा भंडार को आमतौर पर किसी देश के अंतरराष्ट्रीय निवेश की स्थिति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।
निश्चित रूप से कोविड-19 की चुनौतियों के बीच भारत के विदेशी मुद्रा भंडार के ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंचने से भारत के लिए कई लाभ चमकते हुए दिखाई दे रहे हैं। विदेशी मुद्रा भंडार के वर्तमान स्तर से देश एक साल से भी अधिक के आयात खर्च की पूर्ति सरलता से कर सकता है। कोविड-19 के बीच विदेशी मुद्रा बाजार में अस्थिरता को कम करने के लिए देश का विदेशी मुद्रा भंडार प्रभावी भूमिका निभा सकता है। विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि से वैश्विक निवेशकों का विश्वास बढ़ा हैं और वे भारत मंी अधिक निवेश करने को प्रोत्साहित हो सकते हैं। कोविड-19 की अकल्पनीय आपदा से बेहतर ढंग से निपटने में विदेशी मुद्रा भंडार की प्रभावी भूमिका हो सकती है। चीन से बढ़ते सैन्य अधिकांश तरल विदेशी मुद्रा बाजार घंटे तनाव के मद्देनजर भारत सरकार जरूरी सैन्य हथियारों की तत्काल खरीदी का कोई भी निर्णय शीघ्रतापूर्वक भी ले सकता है। उम्मीद करें कि जुलाई 2020 से अर्थव्यवस्था में जिस तरह सुधार का परिदृश्य उभरकर दिखाई दे रहा है, उससे विदेशी निवेश बढ़ेगा, निर्यात बढ़ेंगे, आयात घटेंगे और विदेशी मुद्रा भंडार का स्तर और बढ़ते हुए दिखाई देगा।
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अर्थव्यवस्थाः साख पर लगा बट्टा
मूडीज ने रेटिंग घटाकर भारत को सबसे निचली निवेश श्रेणी में खड़ा कर दिया है और भारत के बारे में नजरिया एसऐंडपी और फिच जैसी एजेंसियों की तरह कर लिया है
एम.जी. अरुण
- नई दिल्ली,
- 12 जून 2020,
- (अपडेटेड 12 जून 2020, 3:08 PM IST)
सरकारी और व्यावसायिक इकाइयों के बॉन्ड की रेटिंग करने वाली मूडीज इन्वेस्टर सर्विसेज ने 1 जून को भारत की विदेशी मुद्रा और स्थानीय मुद्रा में दीर्घकालिक इशूअर रेटिंग एक अंक घटाकर 'बीएए2' से 'बीएए3' कर दिया है और यह भी कहा है कि नजरिया 'नकारात्मक' बना हुआ है. यह मूडीज के आकलन में निवेश के मामले में सबसे निचली रेटिंग है. बॉन्ड की क्रेडिट रेटिंग कॉर्पोरेट या सरकारी हुंडियों की साख का पता चलता है.
रेटिंग घटाने की वजह मूडीज ने 2017 से आर्थिक सुधारों पर कमजोर अमल, लगातार अपेक्षाकृत कमतर आर्थिक वृद्धि दर, सरकारों (केंद्र और राज्य) की काफी पतली वित्तीय हालत, और देश के वित्तीय क्षेत्र पर बढ़ते दबाव को बताया है.
मूडीज के भारत की रेटिंग को घटाकर बीएए3 करने से वह स्टैंडर्ड ऐंड पूअर्स (एसऐंडपी) और फिच की रेटिंग (बीबीबी-) के बराबर आ गई है, जो 'कचरा' वाली स्थिति से एक अंक ही ऊपर है. मूडीज ने नवंबर 2019 में ही 'नकारात्मक' नजरिया जाहिर कर दिया था, जो आज भी कायम है, जबकि एसऐंडपी और फिच का भारत के बारे में नजरिया फिलहाल 'स्थिर' बना हुआ है.
एडेलवाइस सेक्यूरिटीज की प्रमुख अर्थशास्त्री माधवी अरोड़ा कहती हैं, ''हमारी राय में यह तो होना ही था कि मूडीज रेटिंग घटाए और यह मोटे तौर पर यह बाजारों की ही स्थिति है. इसलिए विदेशी मुद्रा और रेट मार्केट में कोई अचानक उछाल थोड़े समय के लिए ही रहने की संभावना है.'' वाकई, शेयर बाजारों ने रेटिंग घटाए जाने को तवज्जो नहीं दी क्योंकि इसे पहले से इसकी उम्मीद थी. दरअसल, 2 जून को बॉम्बे शेयर बाजार का सेंसेक्स 522 अंक बढ़कर 33,826 पर पहुंच गया. दुनिया भर के बाजारों का रुझान सकारात्मक था, क्योंकि लंबे लॉकडाउन के बाद अर्थव्यवस्थाएं खुल रही थीं.
अरोड़ा के मुताबिक, बड़ा खतरा एसऐंडपी और फिच की रेटिंग में कमी की संभावना है. अरोड़ा कहती हैं, ''उनकी 'कचरा' श्रेणी की रेटिंग से नीचे होना बड़ा जोखिम (बाजारों के लिए) हो सकता है, लेकिन इससे पहले उनका नजरिया मौजूदा 'स्थिर' से 'नकारात्मक' होगा, जो अमूमन बड़ी बात होती है.'' केयर रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस का कहना है कि रेटिंग घटाए जाने का वक्त ''थोड़ा सही नहीं है'' क्योंकि कई देशों में असामान्य स्थितियां अधिकांश तरल विदेशी मुद्रा बाजार घंटे हैं. हालांकि सरकार को रेटिंग एजेंसियों की चिंताओं पर गौर करने की जरूरत है. सबनवीस कहते हैं, ''भारत सरकार पर इसका असर नहीं होगा क्योंकि वह विदेशी बाजारों से रकम नहीं उठाती. यह साख का सवाल है. लेकिन बाहर के व्यावसायिक बाजारों से रकम उठाने वाली भारतीय कंपनियों के लिए फंड की लागत बढ़ जाएगी.''
रेटिंग घटने का यह वाकया उसी वक्त हुजा, जब वित्त वर्ष 2020 की चौथी तिमाही के जीडीपी आंकड़े आए. चौथी तिमाही में वृद्धि दर घटकर 3.1 फीसद पर आ गई, जो 17 साल में नहीं दिखी थी. यानी निजी निवेश और मैन्युफैक्चरिंग में काफी गिरावट है. यह मंदी इस तथ्य के मद्देनजर काफी अहम है कि कोविड संक्रमण की रोकथाम के लिए लॉकडाउन तो मार्च में गिने-चुने दिनों तक ही थी. इससे जाहिर होता है कि वृद्धि दर घटने की वजहें लॉकडाउन के अलावा दूसरी थीं. वे वजहें अभी दूर नहीं हुई हैं और लॉकडाउन की रुकावटों के अलावा वे वजहें भी वृद्धि दर को नीचे खींचती रहेंगी.
मूडीज की रेटिंग घटाने के क्रम में इन कुछ गहरी वजहों की ओर इशारा किया गया है. पिछली कुछ तिमाहियों से वृद्धि दर गोता लगाती जा रही है. वित्त वर्ष 2020 की तीसरी तिमाही में देश की जीडीपी वृद्धि दर 4.5 फीसद थी जबकि दूसरी तिमाही में 4.8 फीसद. पर चौथी तिमाही में हालात बदतर हो गई. केयर रेटिंग्स की रिपोर्ट के मुताबिक, ''वित्त वर्ष 2020 की चौथी तिमाही में सभी प्रमुख क्षेत्रों में वृद्धि की कुल रफ्तार धीमी हुई है.'' सरकारी क्षेत्र को ही इस तिमाही में आर्थिक उत्पादन और मांग को बढ़ावा देता देखा गया और वह मैन्युफैक्चरिंग तथा निर्माण जैसे क्षेत्रों में नकारात्मक वृद्धि के दौर में कुछ साज-संभाल करता दिखा.
हाल की तिमाहियों में एक अहम समस्या मांग में भारी गिरावट रही है. सरकार के हाल के दौर में उठाए ज्यादातर कदम (केंद्रीय बजट की घोषणाओं सहित) आपूर्ति पक्ष के लिए रहे हैं. खर्च या निवेश करने की कोई ख्वाहिश नहीं दिखती. अर्थव्यवस्था का इंजन माने जाने वाली निजी खपत (जो जीडीपी का 60 फीसद है) पिछले साल चौथी तिमाही में 6.2 फीसद से घटकर वित्त वर्ष 2020 की चौथ तिमाही में 2.7 फीसद पर आ गई. इस चौथी तिमाही में 6.5 फीसद की तेज सिकुडऩ देखी गई. केयर रेटिंग्स की रिपोर्ट के मुताबिक, ''इससे आशंका होती है कि देश वायरस के प्रकोप की रोकथाम में नाकाम रहा तो आने वाले महीनों में घरेलू अर्थव्यवस्था की हालत बेहद बुरी होने वाली है.'' वैसे, सरकार की खर्च और कृषि की वृद्धि से भी मदद मिली.
लगातार अधिक सरकारी खर्च से एक समस्या यह है कि सरकार का वित्तीय गणित गड़बड़ा सकता है. आखिर, वित्त वर्ष 2020 में देश का राजकोषीय घाटा सरकार के 3.8 फीसद के संशोधित लक्ष्य को पीछे छोड़कर 4.6 फीसद पर पहुंच गया. यही नहीं, सरकारी राजस्व में कमी की वजह से वित्त वर्ष 2021 के 7.96 लाख करोड़ रु. राजकोषीय घाटे के लक्ष्य का 35 फीसद तो अप्रैल महीने में ही हो गया. लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था थमी तो सरकारी राजस्व में भारी अधिकांश तरल विदेशी मुद्रा बाजार घंटे गिरावट आई है. सरकार को अप्रैल महीने में कुल राजस्व प्राप्ति 21,412 करोड़ रु. हुई जो पिछले साल में अप्रैल के मुकाबले 70 फीसद कम है. ये तमाम मुद्दे आने वाले दिनों में दुश्वारियों की आशंका जता रहे हैं.
देश के विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट, Gold Reserve भी हुआ कम
रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, 2 अप्रैल 2021 को समाप्त सप्ताह में एफसीए (FCA) में गिरावट की वजह से कुल मुद्रा भंडार . अधिक पढ़ें
- भाषा
- Last Updated : April 10, 2021, 01:00 IST
नई दिल्ली. देश का विदेशी मुद्रा भंडार (Foreign Exchange Reserves/Forex Reserves) दो अप्रैल को समाप्त सप्ताह में 2.415 अरब डॉलर घटकर 576.869 अरब डॉलर रह गया. भारतीय रिजर्व बैंक यानी आरबीआई (Reserve Bank of India) के शुक्रवार को जारी आंकड़ों में यह जानकारी दी गई है.
सप्ताह भर में आई 5.4 अरब डॉलर की कमी
इससे पहले के 26 मार्च को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 2.986 अरब डॉलर घटकर 579.285 अरब डॉलर रह गया था. इससे पहले 29 जनवरी 2021 को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 590.185 अरब डॉलर की रिकॉर्ड ऊंचाई को छू गया था.
एफसीए में गिरावट
रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार 2 अप्रैल 2021 को समाप्त समीक्षाधीन सप्ताह (Reporting Week) में विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों यानी एफसीए (Foreign Currency Assets) में गिरावट की वजह विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों में गिरावट की वजह से आई है. विदेशीमुद्रा परिसंपत्तियां, कुल विदेशी मुद्रा भंडार का अहम हिस्सा होती है. रिजर्व बैंक के साप्ताहिक आंकड़ों के अनुसार समीक्षाधीन अवधि में एफसीए 1.515 अरब डॉलर घटकर 536.438 अरब डॉलर रह गई. एफसीए को दर्शाया डॉलर में जाता है, लेकिन इसमें यूरो, पौंड और येन जैसी अन्य विदेशी मुद्रा सम्पत्तियां भी शामिल होती हैं.
स्वर्ण भंडार में गिरावट
रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार समीक्षाधीन सप्ताह में देश का स्वर्ण भंडार (Gold Reserves) 88.4 करोड़ डॉलर घटकर 34.023 अरब डॉलर रह गया. आंकड़ों के अनुसार, समीक्षाधीन सप्ताह में आईएमएफ (International Monetary Fund) में प्राप्त विशेष आहरण अधिकार 40 लाख डॉलर घटकर 1.486 अरब डॉलर रहा. इसी तरह आईएमएफ के पास आरक्षित मुद्रा भंडार भी 1.2 करोड़ डॉलर घटकर 4.923 अरब डॉलर रह गया.
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