लेन-देन का जोखिम

लेनदेन जोखिम से तात्पर्य उस प्रतिकूल प्रभाव से है जो विदेशी विनिमय दर में उतार-चढ़ाव से पहले निपटान के लिए एक पूर्ण लेनदेन मुद्रा डेरिवेटिव के नुकसान पर हो सकता है। यह विनिमय दर या मुद्रा जोखिम है जो विशेष रूप से किसी व्यापार या अनुबंध में प्रवेश करने और फिर इसे बसाने के बीच के समय में देरी के साथ जुड़ा हुआ है।

चाबी छीन लेना

  • लेन-देन जोखिम यह मौका है कि मुद्रा विनिमय दर में उतार-चढ़ाव एक विदेशी मुद्रा डेरिवेटिव के नुकसान लेनदेन के मूल्य को पूरा करने के बाद बदल देगा, लेकिन अभी तक व्यवस्थित नहीं हुआ है।
  • जब एक अनुबंध या व्यापार में प्रवेश करने और इसे निपटाने से एक लंबे अंतराल मौजूद है, तो लेन-देन का जोखिम अधिक होगा।
  • अल्पकालिक विनिमय दर की चाल के प्रभाव को कम करने के लिए विदेशी मुद्रा और विकल्प अनुबंध जैसे डेरिवेटिव के उपयोग के माध्यम से लेन-देन जोखिम को कम किया जा सकता है।

लेन-देन जोखिम को समझना

आमतौर पर, जो कंपनियाँ अंतरराष्ट्रीय वाणिज्य में संलग्न होती हैं, उस विदेशी देश की मुद्रा में लागत होती है या किसी समय, अपने देश को वापस लाभ अर्जित करना होता है। जब उन्हें इन गतिविधियों में शामिल होना होता है, तो अक्सर विदेशी मुद्रा लेनदेन की शर्तों पर सहमत होने और सौदे को पूरा करने के लिए इसे निष्पादित करने के बीच समय की देरी होती है। यह अंतराल मुद्रा जोखिम के लिए एक अल्पकालिक जोखिम बनाता है, जो दूसरे के संबंध में एक मुद्रा की कीमत में संभावित परिवर्तन से उत्पन्न होता है । लेन-देन जोखिम इस तरह अप्रत्याशित लाभ और खुले लेनदेन से संबंधित नुकसान का कारण बन सकता है। कई संस्थागत निवेशक, जैसे हेज फंड और म्यूचुअल फंड, और बहुराष्ट्रीय निगम इस जोखिम को रोकने के लिए विदेशी मुद्रा, वायदा, विकल्प अनुबंध या अन्य डेरिवेटिव का उपयोग करते हैं।

व्यापार या अनुबंध की शुरूआत और उसके निपटान के बीच जितना अधिक समय का अंतर होता है, लेनदेन का जोखिम उतना अधिक होता है, क्योंकि विनिमय दर में उतार-चढ़ाव के लिए अधिक समय होता है। लेन-देन के एक पक्ष के लिए लेन-देन जोखिम अनिवार्य रूप से फायदेमंद है, लेकिन कंपनियों को यह सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय होना चाहिए कि वे उस राशि की रक्षा करें जो उन्हें प्राप्त होने की उम्मीद है।

उदाहरण

उदाहरण के लिए, यदि एक अमेरिकी कंपनी जर्मनी में बिक्री से लाभ को प्रत्यावर्तित कर रही है। इसे यूरो (EUR) का आदान-प्रदान करने की आवश्यकता होगी जो इसे अमेरिकी डॉलर (यूएसडी) के लिए प्राप्त होगा। कंपनी एक निश्चित EUR / USD विनिमय दर पर लेनदेन को पूरा करने के लिए सहमत है । हालांकि, आमतौर पर एक समय अंतराल होता है जब लेनदेन को अनुबंधित किया गया था जब निष्पादन या निपटान होता है। यदि उस समय की अवधि में, यूरो को यूएसडी बनाम मूल्यह्रास करना था, तो कंपनी को कम अमेरिकी डॉलर प्राप्त होंगे जब यह लेनदेन व्यवस्थित हो जाएगा।

यदि लेनदेन समझौते के समय EUR / USD की दर 1.20 थी, तो इसका मतलब है कि 1 यूरो में 1.20 USD का आदान-प्रदान किया जा सकता है। इसलिए, अगर पुनर्खरीद की जाने वाली राशि 1,000 यूरो है तो कंपनी 1,200 अमरीकी डालर की उम्मीद कर रही है। यदि निपटान के समय विनिमय दर 1.00 हो जाती है, तो कंपनी को केवल 1,000 USD प्राप्त होंगे। लेन-देन जोखिम के परिणामस्वरूप 200 अमरीकी डालर का नुकसान हुआ।

हेजिंग ट्रांजैक्शन रिस्क

लेन-देन का जोखिम अलग-अलग मुद्राओं में काम करने वाले व्यक्तियों और निगमों के लिए मुश्किलें पैदा करता है, क्योंकि विनिमय दरें कम अवधि में काफी उतार-चढ़ाव कर सकती हैं। हालांकि, ऐसी रणनीतियाँ हैं जिनका उपयोग कंपनियां किसी भी संभावित नुकसान को कम करने के लिए कर सकती हैं। अस्थिरता के परिणामस्वरूप होने वाले संभावित नकारात्मक प्रभाव को कई हेजिंग तंत्रों के माध्यम से कम किया जा सकता है।

एक कंपनी भविष्य में एक निर्धारित तिथि के लिए मुद्रा मुद्रा डेरिवेटिव के नुकसान की दर में लॉक करने वाले एक अग्रेषित अनुबंध को निकाल सकती है । एक और लोकप्रिय और सस्ती हेजिंग रणनीति विकल्प है । एक विकल्प खरीदकर एक कंपनी लेनदेन के लिए ‘कम से कम’ दर निर्धारित कर सकती है। क्या विकल्प पैसे से बाहर हो जाना चाहिए तब कंपनी खुले बाजार में लेनदेन को अधिक अनुकूल दर पर निष्पादित कर सकती है। क्योंकि व्यापार और निपटान के बीच समय की अवधि अक्सर अपेक्षाकृत कम होती है, इस जोखिम जोखिम को रोकने के लिए एक निकट-अवधि का अनुबंध सबसे उपयुक्त है।

बिटकॉइन का बुलबुला: तीन माह में बिटकॉइन के मूल्य में 18 लाख रुपए की मुद्रा डेरिवेटिव के नुकसान गिरावट, उतार-चढ़ाव तेज होने से डिजिटल मुद्रा के ध्वस्त होने का खतरा बढ़ रहा

डिजिटल या आभासी मुद्रा-क्रिप्टोकरेंसी का विस्तार आश्चर्यजनक है। एकसाल पहले वेबसाइट कॉइनमार्केटकैप पर 6000 करेंसी लिस्टेड थी। आज 11145 हैं। उनका कुल मार्केट पूंजीकरण 2.44 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर आज 11.86 लाख करोड़ रुपए हो गया है। डिजिटल करेंसी की 63% ट्रेडिंग संस्थाएं और कंपनियां कर रही हैं। इसके बावजूद क्रिप्टोकरेंसी के बाजारों में जबर्दस्त उथल पुथल मची है। इससे डिजिटल करेंसी मुद्रा डेरिवेटिव के नुकसान के ध्वस्त होने की आंशकाओं ने जन्म लिया है।

बिटकॉइन का मू्ल्य अप्रैल में 47 लाख रुपए से घटकर मई में 22 लाख रुपए रह गया था। मुद्रा डेरिवेटिव के नुकसान आज यह 29 लाख रुपए के आसपास है। 29 जुलाई को तो बिटकॉइन का बाजार मूल्य 21 लाख रुपए पर आ गया था। हर गिरावट से सवाल उठता है कि गिरावट कितनी बदतर हो सकती है। क्रिप्टोकरेंसी में दांव पर बहुत कुछ लगा है। बिटकॉइन की गिरावट पर ट्रेडर्स भारी लेनदेन कर रहे हैं। करेंसी के धराशायी होने पर क्रिप्टो अर्थव्यवस्था बैठ जाएगी। डिजिटल रूप से बिटकॉइन बनाने वाले माइनर्स को नए कॉइन दिए जाते हैं। यदि मुद्रा में भारी गिरावट आएगी तो वे कॉइन बनाना बंद कर देंगे। निवेशक भी बाकी अन्य क्रिप्टोकरेंसी से छुटकारा पा लेंगे। डेटा फर्म चेन एनालिसिस के फिलिप ग्रेडवैल का कहना है, ताजा हलचल ने दर्शाया है कि बाकी डिजिटल करेंसी भी बिटकॉइन का अनुसरण करेंगी।

बिटकॉइन के पतन से बहुत नुकसान होगा। इसमें हेजफंड, यूनिवर्सिटी के धर्मादा फंड, म्युचुअल फंड और कुछ कंपनियों सहित अधिकतर संस्थागत निवेशकों को नुकसान उठाना पड़ेगा। डिजिटल करेंसी के ध्वस्त होने से क्रिप्टो एक्सचेंजों और क्रिप्टो कंपनियों को घाटा होगा।

14 लाख करोड़ रुपए का नुकसान संभव
बिटकॉइन के पूरी तरह ध्वस्त होने से बहुत नुकसान हो सकता है। क्रिप्टोकरेंसी को पहले झटके से 14.82 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हो सकता है। गिरावट का प्रभाव कई चैनलों से अन्य एसेट्स पर पड़ेगा। बिटकॉइन में निवेश किया गया 90% पैसा डेरिवेटिव्स में लगाया गया है। इनमें से अधिकतर की ट्रेडिंग एफटीएक्स, बिनांस जैसे नियमन के दायरे से बाहर रहने वाले एक्सचेंजों से होती है। थोड़े से उतार-चढ़ाव का व्यापक असर होगा। एक्सचेंजों को भारी घाटा उठाना पड़ेगा।

जानें क्या होता है मुद्रा विनिमय समझौता (Currency Swap Agreement) तथा इसके इस्तेमाल के क्या फायदे हैं?

What is Currency Swap Agreement - in Hindi

नमस्कार दोस्तो! स्वागत है आपका जानकारी ज़ोन में जहाँ हम विज्ञान, प्रौद्योगिकी, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय राजनीति, अर्थव्यवस्था, ऑनलाइन कमाई तथा यात्रा एवं पर्यटन जैसे क्षेत्रों से महत्वपूर्ण एवं रोचक जानकारी आप तक लेकर आते हैं। आज इस लेख में हम बात करेंगें मुद्रा विनिमय समझौते या Currency Swap Agreement के बारे में, जानेंगे यह कैसे काम करता है तथा इसके क्या फायदे हैं।

मुद्रा विनिमय (Currency Swap)

मुद्रा विनिमय विभिन्न प्रकार के डेरिवेटिव वित्तीय उत्पादों में एक है, मुद्रा विनिमय से आशय मुद्राओं को अपास में बदलने से है। इसमें दो भिन्न देशों से संबंधित लोग अथवा संस्थाएं अपनी आवश्यकतानुसार किसी निश्चित राशि को एक निश्चित समय के लिए एक दूसरे की मुद्राओं में तत्कालीन विनिमय दर के अनुसार बदल देती हैं।

कोई भी दो लोग, संस्थाएं, कंपनियाँ आदि ऐसा करती हैं, क्योंकि उन्हें व्यापार आदि हेतु एक दूसरे की मुद्रा की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त इस प्रकार मुद्रा विनिमय के और भी फायदे हैं, जिनकी चर्चा नीचे की गई है।

मुद्रा विनिमय समझौते की प्रक्रिया

आइए इसकी कार्यप्रणाली को एक उदाहरण की सहायता से समझते हैं। मान लें “रमेश” जो कि, एक भारतीय उद्योगपति है को अमेरिका में अपनी एक फर्म के लिए एक लाख अमेरिकी डॉलर की पाँच वर्षों के लिए आवश्यकता है। एक डॉलर को 75 मुद्रा डेरिवेटिव के नुकसान रुपयों के बराबर समझा जाए तो एक लाख अमेरिकी डॉलर की रुपयों में कीमत 75 लाख रुपये होगी। वहीं “स्टीव” जो कि, एक अमेरिकी उद्योगपति है को भारत में अपनी किसी कंपनी के खर्च के लिए 75 लाख भारतीय रुपयों की 5 वर्षों के लिए आवश्यकता है

रमेश यदि किसी अमेरिकी बैंक से ऋण लेता है तो उसे स्टीव की तुलना में अधिक ब्याज चुकाना पड़ेगा इसके अतिरिक्त यदि भविष्य में रुपया डॉलर के मुकाबले कमजोर हुआ तो रमेश को ब्याज तथा मूलधन के रूप में अधिक भुगतान करना पड़ेगा। इसके अलावा स्टीव को भी भारतीय बैंक से ऋण लेने पर रमेश की तुलना में मुद्रा डेरिवेटिव के नुकसान अधिक ब्याज देना होगा। उदाहरण के तौर पर माना रमेश को भारत में 75 लाख रुपयों तथा अमेरिका में 1 लाख डॉलर का ऋण क्रमशः 10% तथा 8% की वार्षिक ब्याज दर पर मिलता है, जबकि स्टीव को यही ऋण 15% तथा 6% की सालाना ब्याज दर पर प्राप्त होता है।

यदि स्टीव अपने देश में किसी बैंक से एक लाख डॉलर का ऋण लेकर रमेश की अमेरिका स्थित फर्म को दे तथा बदले में रमेश किसी भारतीय बैंक से 75 लाख रुपयों का ऋण लेकर स्टीव की भारत स्थित कंपनी को दे दे, तो इस प्रकार दोनों को सस्ती ब्याज दरों में ऋण प्राप्त हो जाएगा। वर्ष के अंत में रमेश 75 लाख पर 10% के अनुसार 7,50,000 रुपयों का ब्याज अपने बैंक को अदा करेगा वहीं स्टीव एक लाख डॉलर पर 6% के अनुसार 6,000 डॉलर का भुगतान अपने बैंक को करेगा।

इसके पश्चात स्टीव की भारत स्थित कंपनी रमेश को 7,50,000 रुपयों का भुगतान करेगी जो उसने स्टीव को दिए गए ऋण की एवज़ में चुकाए हैं एवं रमेश की अमेरिका स्थित फर्म स्टीव को 6,मुद्रा डेरिवेटिव के नुकसान 000 डॉलर अदा करेगी जो उसने रमेश के लिए गए ऋण के ब्याज के रूप में दिए थे। इस प्रकार पाँच वर्षों की अवधि तक प्रत्येक वर्ष बैंकों को दिए गए ब्याज का भी दोनों कंपनियों द्वारा विनिमय कर लिया जाएगा।

पाँच वर्षों की अवधि के पश्चात रमेश एक लाख डॉलर का मूलधन स्टीव को लौटाएगा और स्टीव 75 लाख रुपयों का मूलधन रमेश को वापस करेगा। यह पूरी व्यवस्था मुद्रा विनिमय (Currency Swap) कहलाती है। मूलधन को लौटाने के समय रुपये तथा डॉलर की विनिमय दर पूर्व में भी निर्धारित की जा सकती है या तत्कालीन दर पर भी विनिमय किया जा सकता है।

इस प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण फायदा यह है कि, इसके द्वारा मुद्रा को देश के बाहर भेजने की आवश्यकता नहीं होती। इसके अतिरिक्त यदि रमेश भारत के बजाए अमेरिका से ऋण लेता तो उसे प्रतिवर्ष ब्याज के रूप में 8,000 डॉलर चुकाने पड़ते किन्तु यदि रुपया समय के साथ डॉलर के मुकाबले कमज़ोर हुआ तो इन 8,000 डॉलर के ब्याज हेतु रमेश को अधिक रुपयों की आवश्यकता पड़ेगी।

देशों के मध्य मुद्रा विनिमय समझौते

लोगों के अलावा विभिन्न देशों की सरकारें भी इसका उपयोग करती हैं। जैसा कि, आप जानते हैं वर्तमान में अमेरिकी डॉलर एक प्रमुख वैश्विक मुद्रा के रूप में प्रचलन में है। ऐसे में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए किसी भी देश को डॉलर की आवश्यकता होती है अतः सभी देशों के लिए विदेशी मुद्रा भंडार में अधिक मात्रा में डॉलर हो यह अहम हो जाता है। इस प्रकार माँग बड़ने के कारण अमेरिकी डॉलर अन्य देशों की घरेलू मुद्रा की तुलना में मजबूत होता जाता है तथा वैश्विक बाजार में अमेरिकी मुद्रा का प्रभुत्व एवं एकाधिकार बढ़ता है।

किसी आर्थिक संकट या व्यापार घाटे की स्थिति में देश के केंद्रीय बैंक को विदेशी मुद्रा भंडार से उसकी भरपाई करनी पड़ती है ताकि उस देश की घरेलू मुद्रा और डॉलर की विनिमय दर स्थिर बनी रहे। किंतु यदि आर्थिक संकट बड़ा हो अर्थात विदेशी मुद्रा भंडार में उपलब्ध डॉलर से भी जब घाटे की पूर्ति न कि जा सके तब ऐसी स्थिति में IMF जैसी संस्थाओं या किसी देश से ऋण लेने की आवश्यकता पड़ती है, साल 1991 में आया आर्थिक संकट इसका उदाहरण है।

समझौते की आवश्यकता

हमने आर्थिक संकट से निपटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय ऋण की चर्चा की किन्तु विदेशी मुद्रा में ऋण लेने का एक मुख्य नुकसान यह है की भविष्य में यदि भारतीय रुपया डॉलर की तुलना में कमजोर हुआ तो भारत को ऋण में ली गई राशि से अधिक मूलधन चुकाना पड़ेगा। इसके अलावा उच्च ब्याज दर भी एक महत्वपूर्ण मुद्रा डेरिवेटिव के नुकसान समस्या है।

इन्हीं समस्याओं के समाधान के रूप में मुद्रा विनिमय या Currency Swap समझौता सामने आया है। इसके तहत कोई दो देश यह समझौता करते हैं कि, किसी निश्चित सीमा तक वे देश निर्धारित विनिमय दर (Exchange Rate) तथा कम ब्याज पर एक दूसरे की घरेलू मुद्रा या कोई तीसरी मुद्रा जैसे डॉलर खरीद सकेंगे।

भारत की स्थिति

साल 2018 में भारत तथा जापान के मध्य 75 बिलियन डॉलर का मुद्रा विनिमय समझौता (Currency Swap Agreement in Hindi) हुआ है। इसके अनुसार भारत अल्पकालिक आवश्यकताओं की पूर्ति या व्यापार घाटे की परिस्थिति में अपनी मुद्रा देकर जापान से 75 बिलियन डॉलर तक की राशि के येन या डॉलर तय विनिमय दर पर एक निश्चित अवधि के लिए खरीद सकता है।

अवधि पूर्ण हो जाने पर जापान भारत को उसकी मुद्रा लौटाकर दिए गए डॉलर या येन वापस ले लेगा जैसा की हमने रमेश तथा स्टीव के उदाहरण में देखा। इसके अतिरिक्त सार्क देशों के साथ भी 2 बिलियन डॉलर का समझौता करने का लक्ष्य है, जिसके चलते जुलाई 2020 में श्रीलंका से 400 मिलियन डॉलर का मुद्रा विनिमय समझौता किया जा चुका है।

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चीन ने कहा, क्रिप्टो करेंसी में सभी लेन-देन अवैध, बिटकॉइन की कीमत गिरी

बीजिंग, 24 सितंबर (एपी) चीन के केंद्रीय बैंक ने शुक्रवार को बड़ा कदम उठाते हुए बिटकॉइन और इस प्रकार की अन्य आभासी मुद्राओं में किये जाने वाले सभी प्रकार के लेन-देन मुद्रा डेरिवेटिव के नुकसान को अवैध घोषित कर दिया। साथ ही अनधिकृत तरीके से डिजिटल मुद्रा के उपयोग पर पाबंदी लगाने को लेकर अभियान शुरू किया है। शुक्रवार को जारी नोटिस में कहा गया है कि बिटकॉइन, एथेरेम और अन्य डिजिटल मुद्राओं ने वित्तीय प्रणाली को बाधित किया है। इसका उपयोग काले धन को वैध बनाने और अन्य अपराधों में किया जा रहा है। चीन का केंद्रीय बैंक पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना ने अपनी

शुक्रवार को जारी नोटिस में कहा गया है कि बिटकॉइन, एथेरेम और अन्य डिजिटल मुद्राओं ने वित्तीय प्रणाली को बाधित किया है। इसका उपयोग काले धन को वैध बनाने और अन्य अपराधों में किया जा रहा है।

चीन का केंद्रीय बैंक पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना ने अपनी वेबसाइट पर जारी नोटिस में कहा, ‘‘मुद्राओं की तरह उपयोग होने वाले डिजिटल करेंसी डेरिवेटिव सौदे अवैध वित्तीय गतिविधियां हैं और यह प्रतिबंधित है।’’

इस घोषणा के कुछ ही घंटों बाद बिटकॉइन की कीमत 9 प्रतिशत से ज्यादा घटकर 41,085 डॉलर पर आ गयी। एथेरेम की कीमत 10 प्रतिशत कम होकर 2,800 डॉलर पर आ गयी। इस प्रकार की अन्य मुद्राओं का भी यही हाल हुआ है।

चीनी बैंकों ने क्रिप्टो करेंसी पर 2013 में पाबंदी लगा दी थी लेकिन सरकार ने इस साल अनुस्मरण पत्र जारी किया। यह बताता है कि क्रिप्टो करेंसी को लेकर आधिकारिक स्तर पर चिंता है। सरकार इस प्रकार की मुद्राओं के जरिये लेन-देन से वित्तीय प्रणाली को होने वाले नुकसान को लेकर चिंतित है।

क्रिप्टोकरेंसी के प्रवर्तकों का कहना है कि इससे एक गोपनीयता रहती है और लचीलापन रहता है, लेकिन चीनी नियामकों को चिंता है कि वे वित्तीय प्रणाली पर सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के नियंत्रण को कमजोर कर सकते हैं। यह भी कहा जाता है कि इससे आपराधिक गतिविधि को छिपाने में मदद हो सकती है।

पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना नकद-रहित लेन-देन को लेकर देश की मुद्रा युआन का डिजिटल संस्करण विकसित कर रहा है। इस पर सरकार का पूर्ण रूप से नियंत्रण होगा।

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