महंगाई दुनिया भर में आम आदमी का निकाल रही दम, भारत में महंगाई आधारित मंदी की आशंका

फिक्स्ड डिपॉजिट की तुलना में मल्टी ऑप्शन डिपॉजिट सुपर बेस्ट, अच्छा ब्याज..जरूरत नो डिपॉजिट और डिपॉजिट बोनस के बीच मुख्य अंतर पर जब चाहो निकालो पैसा

एसबीआई की यह बेहतरीन स्कीम, सेविंग अकाउंट से जुड़ा होने से कोई टेंशन नहीं

फिक्स्ड डिपॉजिट की तुलना में मल्टी ऑप्शन डिपॉजिट सुपर बेस्ट, अच्छा ब्याज..जरूरत पर जब चाहो निकालो पैसा

Update: Sunday, February 20, 2022 @ 5:21 PM

फिक्स्ड डिपॉजिट (Fixed Deposit) लोगों का सबसे पसंदीदा निवेश का परंपरागत साधन है। सालों से इसने लोगों का भरोसा जीता हुआ है। फिक्स्ड डिपॉजिट में एक दिक्क्त यह है कि जरूरत पड़ने पर समय से पहले अगर आप पैसे निकालते हैं तो आपको प्री क्लोजर चार्ज (Pre Closure Charge) चुकाना होगा। ऐसे एसबीआई का मल्टी ऑप्शन डिपॉजिट निवेश का सही विकल्प साबित हो सकता है। इसमें निवेशक जब चाहे पैसा निकाल सकता है। एसबीआई मल्टी ऑप्शन डिपॉजिट (SBI Multi Option Deposit) के निवेशक एटीएम की मदद से भी पैसे निकाल सकते हैं। एसबीआई मल्टी ऑप्शन डिपॉजिट आपके सेविंग अकाउंट (Savings Account) से जुड़ा होता है। अगर सेविंग अकाउंट में उतने पैसे नहीं हैं] जितना आप निकालना चाहते हैं तो बाकी का बैलेंस एमओडी (MOD) से ट्रांसफर हो जाता है। यह निकासी एटीएम के मदद से भी की जा सकती है। हालांकि, यह 1000 के गुणक में होना जरूरी है।

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एसबीआई की वेबसाइट (SBI Website) पर उपलब्ध जानकारी के मुताबिक, जो एलिजिबिलिटी फिक्स्ड डिपॉजिट की है, वही क्राइटेरिया मल्टी ऑप्शन डिपॉजिट को लेकर है। एसबीआई एमओडी में कम से कम 10 हजार रुपया निवेश किया जा सकता है। उससे ज्यादा 1000 के गुणक में जमा किया जा सकता है। जमा करने के लिए कोई मैक्सिमम लिमिट नहीं है। एमओडी की अवधि की बात करें तो यह कम से कम 1 साल और अधिकतम 5 सालों के लिए हो सकती है।

10 हजार से ज्यादा इंट्रेस्ट होने पर नो डिपॉजिट और डिपॉजिट बोनस के बीच मुख्य अंतर कटेगा टीडीएस

अगर मल्टी ऑप्शन डिपॉजिट अकाउंट पर इंट्रेस्ट इनकम (Interest Income) 10 हजार से ज्यादा होगी तो टीडीएस काटा जाएगा। पैन कार्ड डिटेल जमा होने की स्थिति में यह 10 फीसदी और जमा नहीं होने की स्थिति में 20 फीसदी का टीडीएस (TDS) होगा। एमओडी अकाउंट के बदले लोन भी उठाया जा सकता है। इसमें भी नॉमिनेशन की सुविधा होती है। ऑटो रिन्यूएबल की सुविधा उपलब्ध नहीं है। यह अकाउंट एक ब्रांच से दूसरे ब्रांच में ट्रांसफर हो सकता है।

होली से पहले HDFC बैंक ने ग्राहकों को दिया बड़ा तोहफा, FD की दरों में किया बदलाव; लेकिन सिर्फ इन लोगों को मिलेगा फायदा

होली से पहले HDFC बैंक ने भी एफडी की दरों में बदलाव किया है। इससे पहले स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) और आईसीआईसीआई बैंक (ICICI Bank) ने एफडी की दरों में बदलाव किया था। एचडीएफसी बैंक के अनुसार नई दरें 1.

होली से पहले HDFC बैंक ने ग्राहकों को दिया बड़ा तोहफा, FD की दरों में किया बदलाव; लेकिन सिर्फ इन लोगों को मिलेगा फायदा

होली से पहले HDFC बैंक ने भी एफडी की दरों में बदलाव किया है। इससे पहले स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) और आईसीआईसीआई बैंक (ICICI Bank) ने एफडी की दरों में बदलाव किया था। एचडीएफसी बैंक के अनुसार नई दरें 1 मार्च 2022 से प्रभावी रहेंगी। आइए जानते हैं कि बैंक की तरफ से किए गए इस संशोधन का फायदा किन लोगों को मिलेगा।

एचडीएफसी बैंक ने नाॅन-विड्राॅल (Non-Withdrable) वाले एफडी की दरों में बदलाव किया गया है। नई दरें 5 करोड़ रुपये या उससे अधिक के एफडी पर लागू होगा। इसका फायदा NRO और NRE को भी मिलेगा। आइए जानते हैं कि दरों में कितना परिवर्तन हुआ है।

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बैंक ने 5 करोड़ रुपये से 200 करोड़ रुपये के एफडी पर 4.7% ब्याज मिलेगा। इसकी समय सीमा 3 साल से 10 साल तक के लिए है। वहीं, 2 साल से अधिक और 3 साल से कम की एफडी पर 4.6% ब्याज मिलेगा। अगर कोई निवेशक एक 1 साल या उससे अधिक और 2 साल से कम की एफडी करता है तो उसे 4.55% ब्याज मिलेगा। जबकि 9 महीने या उससे अधिक और 1 साल के कम के एफडी पर 4.15% ब्याज अब मिलेगा। वहीं, 6 महीने या उससे अधिक लेकिन 9 महीने से कम के फिक्सड डिपाॅजिट पर 4% ब्याज दिया जा रहा है। सबसे कम ब्याज 91 दिन या उससे अधिक लेकिन 6 महीने से कम की एफडी पर 3.75% ब्याज मिल रहा है। 5 करोड़ रुपये से कम की एफडी पर ब्याज दरों में कोई बदलवा नहीं किया गया है।

सामान्य एफडी और Non-Withdrable फिक्सड डिपाॅजिट में क्या होता है अंतर?

सामान्य एफडी में जहां प्री-मैच्योर निकासी का विकल्प रहता है। तो वहीं Non-Withdrable फिक्सड डिपाॅजिट में प्री-मैच्योर निकासी का कोई विकल्प नहीं रहता है। इस तरह के डिपाॅजिट में निवेशक समय से पहले एफडी बंद नहीं कर सकते हैं। कुछ विशेष परिस्थितियों में छूट दी गई है। लेकिन तब प्रिंसिपल अमाउंट पर बैंक कोई ब्याज नहीं देगा।

जमा जुटाने, कर्ज देने की होड़ में जोखिम से बचाव के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठा रहे बैंक

मुंबईः नकदी की तंग होती स्थिति और कर्ज में दशक के उच्चतम स्तर की 18 प्रतिशत की वृद्धि तथा जमा में कमी के बीच एक रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि बैंक संपत्ति नो डिपॉजिट और डिपॉजिट बोनस के बीच मुख्य अंतर नो डिपॉजिट और डिपॉजिट बोनस के बीच मुख्य अंतर और देनदारी दोनों स्तरों पर जोखिम से बचाव को लेकर पर्याप्त उपाय नहीं कर रहे हैं। नकदी की कमी का प्रमुख कारण भारतीय रिजर्व बैंक का मुद्रास्फीति को काबू में लाने के लिए बैंकों से अतिरिक्त कोष को वापस लेना है। खुदरा मुद्रास्फीति पिछले 10 महीने से रिजर्व बैंक की संतोषजनक सीमा से ऊपर बनी हुई है। इसको देखते हुए आरबीआई ने महंगाई को काबू में लाने के लिए प्रमुख नीतिगत दर रेपो में पिछले छह महीने में 1.90 प्रतिशत की वृद्धि की है।

आरबीआई को खुदरा मुद्रास्फीति दो प्रतिशत घट-बढ़ नो डिपॉजिट और डिपॉजिट बोनस के बीच मुख्य अंतर के साथ चार प्रतिशत पर रखने की जिम्मेदारी मिली हुई है। बैंकों में शुद्ध रूप से अप्रैल, 2022 में औसतन 8.3 लाख करोड़ रुपए की नकदी डाली गई। यह अब करीब एक-तिहाई कम होकर तीन लाख करोड़ रुपए पर आ गई है। इसके अलावा, सरकार ने दिवाली के सप्ताह में अपने नकद शेष का एक बड़ा हिस्सा खर्च किया है और इसके परिणामस्वरूप शुद्ध एलएएफ (नकदी समायोजन सुविधा) में सुधार हुआ है। इसके अलावा सरकार और निजी क्षेत्र के बोनस भुगतान से भी मदद मिली।

नकदी समायोजन सुविधा (एलएएफ) मौद्रिक नीति में उपयोग किया जाने वाला एक उपाय है। इसके जरिए रिजर्व बैंक अर्थव्यवस्था में नकदी प्रबंधन के लिए रेपो दर और रिवर्स रेपो दर का उपयोग करता है। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) समूह के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष ने एक रिपोर्ट में कहा कि बैंकों नो डिपॉजिट और डिपॉजिट बोनस के बीच मुख्य अंतर में एक तरफ ब्याज दर बढ़ी है, दूसरी तरफ नकदी को सोच-विचार कर कम किया गया है। लेकिन एक चीज अभी भी नहीं बदली है। वह है कर्ज को लेकर जोखिम का पर्याप्त रूप से प्रबंधन। उन्होंने कहा कि एक तरफ कर्ज की मांग एक नो डिपॉजिट और डिपॉजिट बोनस के बीच मुख्य अंतर दशक के उच्चस्तर पर है जबकि नकदी की स्थिति उल्लेखनीय रूप से कम हुई है।

रिपोर्ट के अनुसार, भले ही बैंक व्यवस्था में शुद्ध एलएएफ घाटा देखा जा रहा है लेकिन बाजार सूत्रों का कहना है कि मुख्य कोष की लागत के ऊपर कर्ज को लेकर जो जोखिम है, उसका पूरा ध्यान नहीं रखा गया है। उदाहरण के लिए एक साल से कम अवधि का कार्यशील पूंजी कर्ज छह प्रतिशत से कम दर पर दिया जा रहा है और यह एक महीने/तीन महीने के ट्रजरी बिल की दर से जुड़ा है जबकि 10 और 15 साल के कर्ज की लागत सात प्रतिशत से कम है।

उल्लेखनीय है कि 10 साल की अवधि वाली सरकारी प्रतिभूतियां करीब 7.46 के आसपास कारोबार कर रही हैं। जबकि 91 दिन की अवधि वाले ट्रेजरी बिल 6.44 की दर पर कारोबार कर रहे हैं। वहीं 364 दिन का ट्रेजरी बिल की लागत 6.97 प्रतिशत है। बैंकों में मुख्य कोष जुटाने की औसत लागत करीब 6.2 प्रतिशत है जबकि रिवर्स रेपो दर 5.65 प्रतिशत है। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि बैंक वर्तमान में जमा राशि जुटाने के लिए ब्याज दर बढ़ाने की होड़ में हैं। चुनिंदा परिपक्वता अवधि की जमाओं पर ब्याज दर 7.75 प्रतिशत तक कर दी गयी है।

इसके अलावा, बैंक अब 390 दिनों के लिए जमा प्रमाणपत्र (सीडी) 7.97 प्रतिशत की दर पर जुटा रहे हैं। जबकि कुछ बैंक 92 दिनों के लिए सीडी 7.15 प्रतिशत पर जुटा रहे हैं यानी वित्तपोषण अंतर को जमा प्रमाणपत्र के जरिए पूरा किया जा रहा है। कुल जमा प्रमापणत्र 21 अक्टूबर की स्थिति के अनुसार 2.41 लाख करोड़ रुपए रहा, जो एक साल पहले इसी अवधि में 57 हजार करोड़ रुपए था। घोष ने रिपोर्ट में कहा गया है कि बॉन्ड प्रतिफल भी अप्रैल, 2022 के बाद 2.55 प्रतिशत बढ़ा है और अक्टूबर, 2022 में 6.92 प्रतिशत रहा। रिपोर्ट के अनुसार, अच्छी बात यह है कि कोष जुटाने और कर्ज देने को लेकर जो होड़ है, वह एएए दर्जे वाले कर्जदारों तक सीमित हैं।

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